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जानें बिना छत की वन काली मंदिर का रहस्य, कभी डकैतों की भी पूरी होती थी यहां मन्नत!

धनबाद के गोविंदपुर इलाके में डकैतों की देवी के नाम से विराजमान एक काली मंदिर है. जिसे आज वन काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस वन काली मंदिर के अगल-बगल घर बन गए हैं. जंगल से घिरा यह मंदिर अब एक आबादी वाले इलाके में तब्दील हो गया है. पहले जमाने में यह बिल्कुल ही घना जंगल हुआ करता था और यहां पर डकैतों के अलावा कोई भी नहीं पहुंच पाता था.

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Published : Jun 30, 2019, 2:43 AM IST

Updated : Jun 30, 2019, 7:56 AM IST

धनबाद: जिले के गोविंदपुर इलाके में डकैतों की देवी के नाम से विराजमान एक काली मंदिर है. जिसे आज वन काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है लोग कहते हैं कि काफी दिनों पहले यहां से डकैत लोग मां काली से मन्नत मांगकर डकैती करने के लिए जाते थे और मां काली उनकी मनोकामना भी पूरी करती थी.

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मन्नत मांगकर होती थी डकैती
इस वन काली मंदिर के अगल-बगल घर बन गए हैं. जंगल से घिरा यह मंदिर अब एक आबादी वाले इलाके में तब्दील हो गया है. पहले जमाने में यह बिल्कुल ही घना जंगल हुआ करता था और यहां पर डकैतों के अलावा कोई भी नहीं पहुंच पाता था. डकैत लोग मन्नत मांगकर डकैती करने के लिए जाया करते थे और अपना बंटवारा भी इसी मां काली के चौखट पर करते थे. अब इस मंदिर में सिर्फ धनबाद जिले के ही लोग नहीं बल्कि सभी इलाकों से लोग मां काली के दर्शन के लिए आते हैं. यहां पर विदेशी मेहमान भी मां काली की दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. हर मंगलवार और शनिवार के दिन यहां पर सैकड़ों की संख्या में महिलाएं भजन कीर्तन के लिए पहुंचती हैं. महिलाओं ने कहा कि यहां पर आने के बाद उनकी सभी परेशानियां दूर हो गयी.


मंदिर में छत नहीं
इन सब के विपरीत इस मंदिर के ऊपर छत नहीं है. इसके बारे में ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि काली मां को खुली छत ही पसंद है और वह रात भर इन्हीं जंगलों में विचरण करती हैं. ऐसा नहीं है कि लोगों ने छत बनाने का प्रयास नहीं किया, लेकिन दूसरे दिन ही नतीजा कुछ अलग निकला. जिसके डर से आज कोई भी छत नहीं बनाना चाहते और मां काली बिल्कुल बिना छत के ही हैं. मंदिर के पुजारी सनत लायक ने बतलाया कि हमारे दादा जी काफी दिनों पहले यहां पर मुख्य पुजारी थे और मां काली ने मेरे दादाजी के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी स्वप्न में दिखाई दी थी. मां ने कहा था कि वो बिना छत का ही रहना पसंद करेंगी. उसके बाद कुछ लोगों ने छत बनाने का प्रयास किया, लेकिन दूसरे दिन वह छत ढह गया और उसके बाद डर से कोई छत नहीं बनाते हैं.

धनबाद: जिले के गोविंदपुर इलाके में डकैतों की देवी के नाम से विराजमान एक काली मंदिर है. जिसे आज वन काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है लोग कहते हैं कि काफी दिनों पहले यहां से डकैत लोग मां काली से मन्नत मांगकर डकैती करने के लिए जाते थे और मां काली उनकी मनोकामना भी पूरी करती थी.

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मन्नत मांगकर होती थी डकैती
इस वन काली मंदिर के अगल-बगल घर बन गए हैं. जंगल से घिरा यह मंदिर अब एक आबादी वाले इलाके में तब्दील हो गया है. पहले जमाने में यह बिल्कुल ही घना जंगल हुआ करता था और यहां पर डकैतों के अलावा कोई भी नहीं पहुंच पाता था. डकैत लोग मन्नत मांगकर डकैती करने के लिए जाया करते थे और अपना बंटवारा भी इसी मां काली के चौखट पर करते थे. अब इस मंदिर में सिर्फ धनबाद जिले के ही लोग नहीं बल्कि सभी इलाकों से लोग मां काली के दर्शन के लिए आते हैं. यहां पर विदेशी मेहमान भी मां काली की दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. हर मंगलवार और शनिवार के दिन यहां पर सैकड़ों की संख्या में महिलाएं भजन कीर्तन के लिए पहुंचती हैं. महिलाओं ने कहा कि यहां पर आने के बाद उनकी सभी परेशानियां दूर हो गयी.


मंदिर में छत नहीं
इन सब के विपरीत इस मंदिर के ऊपर छत नहीं है. इसके बारे में ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि काली मां को खुली छत ही पसंद है और वह रात भर इन्हीं जंगलों में विचरण करती हैं. ऐसा नहीं है कि लोगों ने छत बनाने का प्रयास नहीं किया, लेकिन दूसरे दिन ही नतीजा कुछ अलग निकला. जिसके डर से आज कोई भी छत नहीं बनाना चाहते और मां काली बिल्कुल बिना छत के ही हैं. मंदिर के पुजारी सनत लायक ने बतलाया कि हमारे दादा जी काफी दिनों पहले यहां पर मुख्य पुजारी थे और मां काली ने मेरे दादाजी के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी स्वप्न में दिखाई दी थी. मां ने कहा था कि वो बिना छत का ही रहना पसंद करेंगी. उसके बाद कुछ लोगों ने छत बनाने का प्रयास किया, लेकिन दूसरे दिन वह छत ढह गया और उसके बाद डर से कोई छत नहीं बनाते हैं.

Intro:धनबाद: जिले के गोविंदपुर इलाके में डकैतों की देवी के नाम से विराजमान एक काली मंदिर है. जिसे आज वन काली मंदिर के नाम से जाना जाता है.यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है लोग कहते हैं की काफी दिनों पहले यहां से डकैत लोग मां काली से मन्नत मांग कर डकैती करने के लिए जाते थे और मां काली उनकी भी मनोकामना को पूर्ण करते थी, क्योंकि उस समय इस इलाके में घना जंगल था और लोग इस इलाके में नहीं आते थे.सुनसान इलाके में सिर्फ डकैत ही यहां पर मां काली की पूजा करने के लिए पहुंच पाते थे लेकिन आज नजारा कुछ अलग है.


Body:आज इस वन काली मंदिर के अगल-बगल घर बन गए हैं. जितने भी जमीन है वह बिक गए हैं और यह एक आबादी वाले इलाके में तब्दील हो गया है, लेकिन पहले जमाने में यह बिल्कुल ही घना जंगल हुआ करता था और यहां पर डकैतों के अलावा कोई भी नहीं पहुंच पाता था.लोग मन्नत मांग कर डकैती करने के लिए जाया करते थे और अपना बंटवारा भी इसी मां काली के चौखट पर ही डकैती के बाद बंटवारा भी करते थे. यहां के लोग और मुख्य पुजारी भी इसी बात को साबित करते हैं.

आज इस मंदिर में सिर्फ धनबाद जिले के ही लोग नहीं बल्कि सभी इलाकों से लोग मां काली के दर्शन के लिए आते हैं और तो और यहां पर विदेशी मेहमान भी मां काली का दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन यहां पर सैकड़ों की संख्या में महिलाएं भजन कीर्तन के लिए पहुंचती हैं.महिलाओं ने कहा कि यहां पर आने के बाद उनकी सभी परेशानियां दूर हो गयी. इन महिलाओं ने कहा जब तक हमारे शरीर में सांस है तब तक हम इस मंदिर में आना नहीं छोड़ेंगे. यहां पर आने से सुकून मिलता है.

लेकिन इन सब के विपरीत इस मंदिर के ऊपर छत नहीं है.जब इसके बारे में ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि काली मां को खुली छत ही पसंद है और वह रात भर इन्हीं जंगलों में विचरण करती हैं. ऐसा नहीं है कि लोगों ने छत बनाने का प्रयास नहीं किया कई बार प्रयास किया गया लेकिन दूसरे दिन ही नतीजा कुछ अलग निकला. जिसके डर से आज कोई भी छत नहीं बनाना चाहते और मां काली बिल्कुल बिना छत के ही हैं.अगल- बगल धर्मशाला भी बना हुआ है जो छत के हैं, और मां काली के मंदिर के ठीक बाहर एक सेड भी है जहां पर बली की जाती है लेकिन वह भी छत के हैं, लेकिन मंदिर के ऊपरी हिस्से में आज ही छत नहीं है.




Conclusion:मंदिर के पुजारी सनत लायक ने बतलाया कि हमारे दादा जी काफी दिनों पहले यहां पर मुख्य पुजारी थे और मां काली ने मेरे दादाजी के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी स्वप्न में दिखाई दिए थे और कहा था कि मैं बिना छत का ही रहना पसंद करूंगी. उसके बाद कुछ लोगों ने छत बनाने का प्रयास किया लेकिन दूसरे दिन वह छत ढह गया और उसके बाद डर से कोई छत नहीं बनाते हैं. दिवाली के ठीक एक दिन पहले यहां पर काली पूजा के दिन 30-35 क्विंटल चावल का खिचड़ी बनता है,10 से 15 क्विंटल दूध से फिर भी बनती है जो भोग लगता है. इसके अलावे भारी संख्या में बकरे की बलि भी उसी दिन यहां पर दी जाती है.

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1. चित्रा देवी-श्रद्धालु
2. मोहिनी देवी- श्रद्धालु
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4 सनत लायक-पुजारी
Last Updated : Jun 30, 2019, 7:56 AM IST
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