धनबाद: जिले के गोविंदपुर इलाके में डकैतों की देवी के नाम से विराजमान एक काली मंदिर है. जिसे आज वन काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है लोग कहते हैं कि काफी दिनों पहले यहां से डकैत लोग मां काली से मन्नत मांगकर डकैती करने के लिए जाते थे और मां काली उनकी मनोकामना भी पूरी करती थी.
मन्नत मांगकर होती थी डकैती
इस वन काली मंदिर के अगल-बगल घर बन गए हैं. जंगल से घिरा यह मंदिर अब एक आबादी वाले इलाके में तब्दील हो गया है. पहले जमाने में यह बिल्कुल ही घना जंगल हुआ करता था और यहां पर डकैतों के अलावा कोई भी नहीं पहुंच पाता था. डकैत लोग मन्नत मांगकर डकैती करने के लिए जाया करते थे और अपना बंटवारा भी इसी मां काली के चौखट पर करते थे. अब इस मंदिर में सिर्फ धनबाद जिले के ही लोग नहीं बल्कि सभी इलाकों से लोग मां काली के दर्शन के लिए आते हैं. यहां पर विदेशी मेहमान भी मां काली की दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. हर मंगलवार और शनिवार के दिन यहां पर सैकड़ों की संख्या में महिलाएं भजन कीर्तन के लिए पहुंचती हैं. महिलाओं ने कहा कि यहां पर आने के बाद उनकी सभी परेशानियां दूर हो गयी.
मंदिर में छत नहीं
इन सब के विपरीत इस मंदिर के ऊपर छत नहीं है. इसके बारे में ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि काली मां को खुली छत ही पसंद है और वह रात भर इन्हीं जंगलों में विचरण करती हैं. ऐसा नहीं है कि लोगों ने छत बनाने का प्रयास नहीं किया, लेकिन दूसरे दिन ही नतीजा कुछ अलग निकला. जिसके डर से आज कोई भी छत नहीं बनाना चाहते और मां काली बिल्कुल बिना छत के ही हैं. मंदिर के पुजारी सनत लायक ने बतलाया कि हमारे दादा जी काफी दिनों पहले यहां पर मुख्य पुजारी थे और मां काली ने मेरे दादाजी के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी स्वप्न में दिखाई दी थी. मां ने कहा था कि वो बिना छत का ही रहना पसंद करेंगी. उसके बाद कुछ लोगों ने छत बनाने का प्रयास किया, लेकिन दूसरे दिन वह छत ढह गया और उसके बाद डर से कोई छत नहीं बनाते हैं.