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बोकारो में पेयजल संकट गंभीर, नाली के पानी से काम चला रहे ग्रामीण

बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड में पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं. हालत ये है कि लोग अब डांरि का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीण इलाके के लोग सुबह-सुबह घर से 3 किलोमीटर दूर डांरि से पानी भरकर लाते हैं.

देखिए स्पेशल स्टोरी
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Published : May 27, 2019, 3:33 PM IST

बोकारो: लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान के अलावे स्वच्छ पानी की जरूरत होती है. पिछले 70 सालों से देश में रोटी, कपड़ा और मकान की कमी को लोग मिटाने में लगे हैं. पिछले कुछ दशकों में जो नई समस्या सामने निकलकर आई है वो है स्वच्छ पानी. शहरी इलाकों के बाद अब ग्रामीण इलाकों में भी पानी की समस्या बढ़ती जा रही है.

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बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड में पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं. हालत ये है कि लोग अब डांरि का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीण इलाके के लोग सुबह-सुबह घर से 3 किलोमीटर दूर डांरि से पानी भरकर लाते हैं. यहां पानी रोजाना सिस्टम को पानी-पानी करता है. सरकार की तरफ से मदद नहीं मिलने पर अब लोग इस गड्ढे का पानी पीना ही अपनी किस्मत समझते हैं. कई बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट चुके ग्रामीण अब थक चुके हैं. पानी के कारण इस गांव में अब शादी-विवाह भी नहीं होता.


लोकसभा चुनाव में विकास की बातें खूब हुई. नेताओं ने बड़े-बड़े मंच से भाषण दिए, लेकिन क्या नाली का पानी पीना ही विकास है या आजादी के 70 साल बाद भी पानी और भोजन की तलाश करना विकास है?

बोकारो: लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान के अलावे स्वच्छ पानी की जरूरत होती है. पिछले 70 सालों से देश में रोटी, कपड़ा और मकान की कमी को लोग मिटाने में लगे हैं. पिछले कुछ दशकों में जो नई समस्या सामने निकलकर आई है वो है स्वच्छ पानी. शहरी इलाकों के बाद अब ग्रामीण इलाकों में भी पानी की समस्या बढ़ती जा रही है.

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बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड में पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं. हालत ये है कि लोग अब डांरि का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीण इलाके के लोग सुबह-सुबह घर से 3 किलोमीटर दूर डांरि से पानी भरकर लाते हैं. यहां पानी रोजाना सिस्टम को पानी-पानी करता है. सरकार की तरफ से मदद नहीं मिलने पर अब लोग इस गड्ढे का पानी पीना ही अपनी किस्मत समझते हैं. कई बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट चुके ग्रामीण अब थक चुके हैं. पानी के कारण इस गांव में अब शादी-विवाह भी नहीं होता.


लोकसभा चुनाव में विकास की बातें खूब हुई. नेताओं ने बड़े-बड़े मंच से भाषण दिए, लेकिन क्या नाली का पानी पीना ही विकास है या आजादी के 70 साल बाद भी पानी और भोजन की तलाश करना विकास है?

Intro:देश बदल रहा है। आगे बढ़ रहा है। चमचमाती सड़कें, झिलमिलती शहरे। मने हर ओर विकास। हमने अंतरिक्ष, चांद में, मंगल पर जाने के सपने को हकीकत में बदलने का गौरव हासिल किया है। लेकिन दूसरी ओर की तस्वीर कुछ ज्यादा ही भयावह है। आजादी के 70 साल बाद भी आम लोगों को प्यास बुझाने के लिए साफ पानी मयस्सर नहीं है। शुद्ध पेयजल अभी भी सपना ही है। साफ स्वच्छ पानी के अभाव में लोग अभी भी गंदे तालाब, नाले और डांरि का पानी पीकर प्यास बुझाने को मजबूर हैं। अब तो पानी रिश्तो के आड़े आने लगा है। पानी नहीं होने की वजह से कई गांव में रिश्ता करने से भी लोग कतराने लगे हैं। इसी का एक उदाहरण है बोकारो जिले का पेटरवार प्रखंड का रंगनियागोड़ा गांव जहां। डांरि का गंदा पानी पीना ग्रामीणों की नियति है। यहां पानी रोजाना सिस्टम को पानी पानी करता है। लेकिन किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया है। कहने वाले कहते हैं कोई तब तो सुध ले जब उसकी आंखों में पानी बचा हो। विकास के दावे को मुहचिढाता यह बोकारो जिले का चलकरी दक्षिण पंचायत का गांव रंगनियागोड़ा गांव है। बूंद-बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीण जंगल के उबर खाबर रास्ते को तय कर पसीना बहाते हुए पानी के लिए ही डांरि के पास पहुंचते हैं और इस डांरि के पानी से अपनी दैनिक क्रिया की शुरुआत करते हैं। पानी की गंदगी को देखकर कोई प्यासा बिन पिए ही तड़प तड़प का मरजाना पसंद करेगा। लेकिन गांव के लोग इस पानी को अपनी नियति मान बैठे हैं। गांव की सरकार भी मानती है ये पानी भी ना हो तो यहां के लोगों का जीवन बसर मुश्किल है।
बाइट-श्याम रजवार, मुखिया


Body:विकास की दावा करने वाली सरकारों को पानी पानी करने के लिए ग्रामीणों की तड़प ही काफी है। सरकारी व्यवस्था को आईना दिखाता यय गांव अब रिश्ते से महरूम होने लगा है। इस गांव में रिश्ता जोड़ने से पहले लोग सौ बार सोचते हैं। क्योंकि रिश्ते के बीच पानी जो आने लगा है।
बाइट ग्रामीण महिला


Conclusion:पानी के लिए बे पानी ग्रामीण रोजाना व्यवस्था को गंदा पानी पी पीकर पूछती है और अपने लिए पानी की व्यवस्था चाहती है। ताकि वह भी इंसान की जिंदगी जी सके। लेकिन सिस्टम है कि मानती ही नही की लोग बे पानी है।
ptc
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