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दुर्दशा का शिकार मध्यान्ह भोजन, बच्चों के बैठने के लिए नहीं है प्रबंध

झारखंड में मध्यान्ह भोजन योजना अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं हो रही है. योजना की शुरुआत स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन स्कूल में बच्चों की संख्या कम हो रही है. सुदूर ग्रामीण क्षेत्र तो छोड़ीए. शहर के बीचोंबीच स्थित स्कूलों की हालत भी काफी दयनीय है. मिड डे मिल देने को लेकर किसी भी तरह की सतर्कता नहीं बरती जाती है.

जानकारी देते संवाददाता चंदन भट्टाचार्या
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Published : Jun 19, 2019, 4:11 PM IST

रांची: झारखंड में मध्यान्ह भोजन योजना अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं हो रही है. योजना की शुरुआत स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन स्कूल में बच्चों की संख्या कम हो रही है. एक आंकड़े के मुताबिक बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है.

जानकारी देते संवाददाता चंदन भट्टाचार्या


मध्यान्ह भोजन परोसने की तरीका भी स्कूलों में सही नहीं है. बेतरतीब तरीके से भोजन परोसे जाते हैं और बच्चे जहां-तहां बैठकर भोजन करने को विवश हैं, जबकि विषाक्त मध्यान्ह भोजन खाने से अब तक राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत हो चुकी है. स्कूलों में शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज हो ड्रॉप आउट की संख्या कम किया जा सके. इसे लेकर देशभर में स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन देने की योजना 15 अगस्त 1995 में शुरू हुई थी. शुरुआती दौर में यह योजना कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिए शुरू की गई थी. वर्ष 2008 में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए यह योजना शुरू की गई.


झारखंड में भी योजना संचालित है, लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्र तो छोड़ीए. शहर के बीचोंबीच स्थित स्कूलों की हालत भी काफी दयनीय है. मिड डे मिल देने को लेकर किसी भी तरह की सतर्कता नहीं बरती जाती है. किचन अवस्थित है. गंदगी का आलम है. वहीं बच्चों को बेतरतीब तरीके से खाना परोसा जाता है. बैठने के लिए एक दरी तक इन बच्चों को मुहैया नहीं कराई गई है. बच्चे पेड़ के नीचे बरामदा में जहां-तहां बैठकर खाने को मजबूर है.


ईटीवी भारत की टीम ने इसका रियलिटी टेस्ट करने के उद्देश्य से रांची के बीचोंबीच स्थित करम टोली राजकीयकृत विद्यालय का मुआयना किया. उसी दौरान मध्यान्ह भोजन परोसे जा रहे थे. इस दृश्य को देखकर मन विचलित हो उठा. छोटे-छोटे नन्हे-नन्हे बच्चे लाइन में खड़े होकर भोजन ले रहे थे और जहां-तहां बैठकर भोजन कर रहे हैं. न तो इनके लिए बैठने के प्रबंध है और न ही किसी तरह की व्यवस्था ही दी जा रही है. पेयजल के नाम पर नगर निगम द्वारा एक काले रंग के सिंटेक्स टंकी लगा दी गई है. जिस पानी का उपयोग बच्चे पीने में भी करते हैं और बर्तन धोने में भी, जबकि इस योजना के तहत कक्षा 1 से 5 के बच्चों को प्रतिदिन 450 कैलोरी और कक्षा 6 से 8 के बच्चों को 700 कैलोरी युक्त पका हुआ भोजन देना है. इसमें 60 फीसदी राशि केंद्र और 40% राशि राज्य सरकार देती है.


राज्य गठन के बाद भी नहीं सुधरी सिस्टम
राज्य के गठन के इतने दिन होने के बावजूद भी मध्यान्ह भोजन संचालन के सिस्टम को अब तक दुरुस्त नहीं किया जा सका है. यहां तक कि मध्यान्ह भोजन की निगरानी अच्छी तरीके से नहीं की जाती है. यही वजह है कि झारखंड में आए दिन मध्यान्ह भोजन खाने से बच्चों के बीमार होने का मामला सामने आते रहता है. वर्ष 2015 के प्रतिवेदन में महालेखाकार ने भी राज्य में मध्यान्ह भोजन योजना की स्थिति पर चिंता जताई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में अब तक मध्यान भोजन जांच की ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है. जिससे भोजन में कैलोरी और प्रोटीन की जांच की जा सके.

रांची: झारखंड में मध्यान्ह भोजन योजना अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं हो रही है. योजना की शुरुआत स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन स्कूल में बच्चों की संख्या कम हो रही है. एक आंकड़े के मुताबिक बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है.

जानकारी देते संवाददाता चंदन भट्टाचार्या


मध्यान्ह भोजन परोसने की तरीका भी स्कूलों में सही नहीं है. बेतरतीब तरीके से भोजन परोसे जाते हैं और बच्चे जहां-तहां बैठकर भोजन करने को विवश हैं, जबकि विषाक्त मध्यान्ह भोजन खाने से अब तक राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत हो चुकी है. स्कूलों में शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज हो ड्रॉप आउट की संख्या कम किया जा सके. इसे लेकर देशभर में स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन देने की योजना 15 अगस्त 1995 में शुरू हुई थी. शुरुआती दौर में यह योजना कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिए शुरू की गई थी. वर्ष 2008 में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए यह योजना शुरू की गई.


झारखंड में भी योजना संचालित है, लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्र तो छोड़ीए. शहर के बीचोंबीच स्थित स्कूलों की हालत भी काफी दयनीय है. मिड डे मिल देने को लेकर किसी भी तरह की सतर्कता नहीं बरती जाती है. किचन अवस्थित है. गंदगी का आलम है. वहीं बच्चों को बेतरतीब तरीके से खाना परोसा जाता है. बैठने के लिए एक दरी तक इन बच्चों को मुहैया नहीं कराई गई है. बच्चे पेड़ के नीचे बरामदा में जहां-तहां बैठकर खाने को मजबूर है.


ईटीवी भारत की टीम ने इसका रियलिटी टेस्ट करने के उद्देश्य से रांची के बीचोंबीच स्थित करम टोली राजकीयकृत विद्यालय का मुआयना किया. उसी दौरान मध्यान्ह भोजन परोसे जा रहे थे. इस दृश्य को देखकर मन विचलित हो उठा. छोटे-छोटे नन्हे-नन्हे बच्चे लाइन में खड़े होकर भोजन ले रहे थे और जहां-तहां बैठकर भोजन कर रहे हैं. न तो इनके लिए बैठने के प्रबंध है और न ही किसी तरह की व्यवस्था ही दी जा रही है. पेयजल के नाम पर नगर निगम द्वारा एक काले रंग के सिंटेक्स टंकी लगा दी गई है. जिस पानी का उपयोग बच्चे पीने में भी करते हैं और बर्तन धोने में भी, जबकि इस योजना के तहत कक्षा 1 से 5 के बच्चों को प्रतिदिन 450 कैलोरी और कक्षा 6 से 8 के बच्चों को 700 कैलोरी युक्त पका हुआ भोजन देना है. इसमें 60 फीसदी राशि केंद्र और 40% राशि राज्य सरकार देती है.


राज्य गठन के बाद भी नहीं सुधरी सिस्टम
राज्य के गठन के इतने दिन होने के बावजूद भी मध्यान्ह भोजन संचालन के सिस्टम को अब तक दुरुस्त नहीं किया जा सका है. यहां तक कि मध्यान्ह भोजन की निगरानी अच्छी तरीके से नहीं की जाती है. यही वजह है कि झारखंड में आए दिन मध्यान्ह भोजन खाने से बच्चों के बीमार होने का मामला सामने आते रहता है. वर्ष 2015 के प्रतिवेदन में महालेखाकार ने भी राज्य में मध्यान्ह भोजन योजना की स्थिति पर चिंता जताई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में अब तक मध्यान भोजन जांच की ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है. जिससे भोजन में कैलोरी और प्रोटीन की जांच की जा सके.

Intro:रेडी टू एयर....

रांची.
झारखंड में मध्यान्ह भोजन योजना अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं हो रही है .योजना की शुरुआत स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी और झारखंड के सरकारी स्कूल में बच्चों की संख्या कम हो रही है.एक आंकड़े के मुताबिक बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है .वहीं मध्यान्ह भोजन परोसने की तरीका भी स्कूलों में सही नहीं है .बेतरतीब तरीके से भोजन परोसे जाते हैं और बच्चे जहां तहां बैठकर भोजन करने को विवश है जबकि विषाक्त मध्यान्ह भोजन खाने से अब तक राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत हो चुकी है..


Body:स्कूलों में शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज हो ड्रॉपआउट की संख्या कम किया जा सके इसे लेकर देशभर में स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन देने की योजना 15 अगस्त 1995 में शुरू हुई थी. शुरुआती दौर में यह योजना कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिए शुरू की गई थी. वर्ष 2008 में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए यह योजना शुरू की गई .झारखंड में भी योजना संचालित है. लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्र तो छोड़ीए .शहर के बीचोंबीच स्थित स्कूलों की हालत भी काफी दयनीय है .मिडडे मिल देने को लेकर किसी भी तरह की सतर्कता नहीं बरती जाती है .किचन अवस्थित है .गंदगी का आलम है .वहीं बच्चों को बेतरतीब तरीके से खाना परोसा जाता है. वहीं बैठने के लिए एक दरी तक इन बच्चों को मुहैया नहीं कराई गई है .बच्चे पेड़ के नीचे बरामदा में जहां-तहां बैठकर खाने को मजबूर है .हमारी टीम ने इसका रियलिटी टेस्ट करने के उद्देश्य से रांची के बीचोंबीच स्थित करम टोली राजकीयकृत विद्यालय का मुआयना किया. उसी दौरान मध्यान्ह भोजन परोसे जा रहे थे .इस दृश्य को देखकर मन विचलित हो उठा .छोटे -छोटे नन्हे नन्हे बच्चे लाइन में खड़े होकर भोजन ले रहे हैं और जहां तहां बैठकर भोजन कर रहे हैं .ना तो इनके लिए बैठने के प्रबंधन है और ना ही किसी तरह की व्यवस्था ही दी जा रही है .पेयजल का नाम पर नगर निगम द्वारा एक काले रंग के सिंटेक्स टंकी लगा दी गई है. जिस पानी का उपयोग बच्चे पीने में भी करते हैं और बर्तन धोने में भी .जबकि इस योजना के तहत कक्षा 1 से 5 के बच्चों को प्रतिदिन 450 कैलोरी और कक्षा 6 से 8 के बच्चों को 700 कैलोरी युक्त पका हुआ भोजन देना है. इसमें 60 फीसदी राशि केंद्र और 40% राशि राज्य सरकार देती है.

राज्य गठन के बाद भी नही सुधरी सिस्टम:

राज्य के गठन के इतने दिन होने के बावजूद भी मध्यान्ह भोजन संचालन के सिस्टम को अब तक दुरुस्त नहीं किया जा सका है. यहां तक कि मध्यान्ह भोजन की निगरानी अच्छी तरीके से नहीं की जाती है .यही वजह है कि झारखंड में आए दिन मध्यान्ह भोजन खाने से बच्चों के बीमार होने का मामला सामने आते रहता है वर्ष 2015 के प्रतिवेदन में महालेखाकार ने भी राज्य में मध्यान्ह भोजन योजना की स्थिति पर चिंता जताई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में अब तक मध्यान भोजन जांच की ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है. जिससे भोजन में कैलोरी और प्रोटीन की जांच की जा सके . निगरानी के नाम पर खानापूर्ति हो रही है नन्हे नन्हे बच्चे बेतरतीब तरीके से खाना खाने को मजबूर है.


चंदन भट्टाचार्या-WT


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