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रूस-यूक्रेन युद्ध : 'आर्थिक संकट की ओर बढ़ रही दुनिया', रूस को अपने पेमेंट सिस्टम न होने की खल रही कमी - रूस का 100 अरब डॉलर का कर्ज विदेशी बैंकों में

यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लग चुके हैं. लेकिन इस प्रतिबंध से न सिर्फ रूस, बल्कि यूरोप और अमेरिकी कंपनियों को भी आर्थिक नुकसान हो रहा है. रूस का 100 अरब डॉलर का कर्ज विदेशी बैंकों में है. अब ये बैंक पसोपेश में हैं कि इतने बड़े कर्ज का क्या होगा. कुछ ऐसी ही स्थिति यूक्रेन के कर्ज का भी है. विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया बड़े आर्थिक संकट की ओर बढ़ रही है, बहुत कुछ 2008 के संकट की तरह. इस बीच कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि पुतिन अगर भारतीय पेमेंट सिस्टम के मॉडल को अपनाया होता, तो उनकी स्थिति बेहतर होती.

putin , president russia
रूस के राष्ट्रपति पुतिन
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Published : Mar 6, 2022, 2:34 PM IST

Updated : Mar 6, 2022, 5:10 PM IST

नई दिल्ली : यूक्रेन की राजधानी कीव और अन्य शहरों पर रूसी हमले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चतता को बढ़ा दिया है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस युद्ध की निंदा करते हुए पश्चिमी देशों ने रूस के वित्तीय संस्थानों और व्यक्तियों को लक्षित करते हुए कुछ आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की है.

इन प्रतिबंधों में कुछ रूसी बैकों को अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्विफ्ट संदेश प्रणाली से हटाना, रूसी कंपनियों और उद्योगियों की पश्चिमी देशों में मौजूद संपत्ति को फ्रीज करना और रूस के केंद्रीय बैंक को 630 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करने से रोकना शामिल है.

इन कदमों के बाद कई रेटिंग एजेंसियों ने रूस की क्रेडिट रेटिंग को कम करके जंक स्टेटस (निवेश अधिक खतरे में) कर दिया है या संकेत दिया है कि जल्द वे ऐसा करेंगी. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वे मानती हैं कि रूस द्वारा कर्जे का भुगतान करने में चूकने की आशंका पहले से अधिक है. वैश्विक बैंकों के समूह के मुताबिक, भुगतान करने में चूकने की आशंका बहुत अधिक है.

बैंकों को खतरा

विदेशी बैंकों में करीब 100 अरब डॉलर का रूसी कर्ज है. इससे रूस के बाहर बैंकों के लिए खतरे को लेकर सवाल पैदा हो गया है और भुगतान में चूक की संभावना के कारण 2008 की तरह नकदी संकट उत्पन्न होने की आशंका है. ऐसी स्थिति में बैंक अन्य बैंक की ऋण चुकाने की क्षमता को लेकर घबरा जाते हैं और एक दूसरे को कर्ज देना बंद कर देते हैं.

रूस पर लगे प्रतिबंध का असर सबसे अधिक यूरोपीय बैंकों, खासतौर पर ऑस्ट्रिया, फ्रांस और इटली के बैंकों पर पड़ेगा. बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआईएस) के आंकड़ों के मुताबिक, फ्रांस और इटली के बैंकों का करीब 25-25 अरब डॉलर कर्ज रूस पर है जबकि ऑस्ट्रियन बैंकों का 17.5 अरब डॉलर कर्ज रूस पर है.

इनकी तुलना में अमेरिकी बैंक 2014 में क्रीमिया के कब्जे के बाद से ही रूस की अर्थव्यवस्था से अपना संबंध घटा रहे हैं. हालांकि, इसके बावजूद सिटीग्रुप का करीब 10 अरब डॉलर रूस में लगा है, परंतु बैंक की कुल परिसंपत्ति के मुकाबले यह बहुत छोटी राशि है. यूक्रेन के भी कर्ज का भुगतान करने में चूकने की आशंका है. यूक्रेन के 60 अरब के बॉन्ड कर्ज की रेटिंग भी गिराकर जंक कर दी गई है.

कर्ज के अलावा अन्य कारणों से भी कई बैंक प्रभावित होंगे, क्योंकि वे या तो यूक्रेन में या रूस में बैंकिंग सेवा देते हैं. रेटिंग एजेंसी फिच के मुताबिक, फ्रांसीसी बैंक बीएनपी परीबास और क्रेडिट एग्रीकोल का संपर्क यूक्रेन से सबसे अधिक है, क्योंकि उनकी स्थानीय अनुषंगी शाखाएं उस देश में काम कर रही हैं. सोसाइटी जनरल और यूनीक्रेडिट उन बैंकों में शामिल हैं, जिनका वृहद परिचालन रूस में है और उनका रूस पर सबसे अधिक कर्ज है.

इसके अलावा यूरोपीय बैंकों के लिए एक और खराब खबर यूरो को डॉलर में बदलने पर आने वाले खर्च में वृद्धि है. बैंक इस बाजार का इस्तेमाल अधिकतर अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए डॉलर जुटाने में करते हैं, ऐसे में उच्च दर होने से उनके मुनाफे पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा.

भुगतान में चूक से बैंकों पर कुल मिलाकर खतरा कितना गंभीर ?

अमेरिकी निवेश कंपनी मॉर्निंग स्टार का मानना है कि यूरोपीय बैंकों का और अकेले अमेरिकी बैंक का रूस से संपर्क उनके विलायकता के संबंध में महत्वहीन है. फिर भी खबर है कि यूरोपीय, अमेरिकी और जापानी बैंकों को गंभीर नुकसान हो सकता है और यह संभवत: 150 अरब डॉलर तक हो सकता है.

बैंक अन्य तरीके से भी प्रभावित हो सकते हैं. उदाहरण के लिए स्विट्जरलैंड, साइप्रस और अमेरिका रूसी उन उद्योगपतियों के बड़े ठिकाने हैं जो अपनी नकदी विदेश में जमा करना चाहते हैं. साइप्रस रूसी अमीरों को गोल्डन पासपोर्ट से आकर्षित करता है. इन देशों के संस्थानों पर इन प्रतिबंधों से कारोबार खोने का खतरा है. उदाहरण के लिए ब्रिटिश बैंक लॉयड्स और नैटवेस्ट के शेयरों में यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के बाद से 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है.

बैंकों से परे

बैंकों के अलावा युद्ध से उन कारोबारों को भी उल्लेखनीय नुकसान हो रहा है, जिनके रूस में हित हैं. जिस कंपनी का धन रूसी कारोबारी के पास है, उसे वापस पाने में संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि रूबल के दाम में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है और स्विफ्ट पाबंदी से भुगतान में परेशानी आएगी. उदाहरण के लिए रॉयटर्स ने खबर दी है कि अमेरिकी कंपनियों का 15 अरब डॉलर रूस में फंसा है. इनमें से अधिकतर राशि को बट्टा खाता में डालना पड़ सकता है जिससे इन्हें नुकसान होगा. एक खतरा यह है कि इससे इन कंपनियों के शेयरों की बिकवाली भय से होगी जिससे बाजार को झटका लगेगा, जैसा कि 2007-2008 में बैंकों के साथ हुआ था.

संक्षेप में कहें तो इस युद्ध का वृहद प्रभाव हो सकता है और यह आने वाले दिनों और हफ्तों में और स्पष्ट दिखाई देगा. वैश्विक अर्थव्यस्था महामारी से अब भी उबर रही है और उल्लेखनीय मुद्रास्फीति का सामना कर रही है. बाजार संवेदनशील स्थिति में हैं. रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले ने इस प्रतिकूल स्थिति का और विस्तार किया है.

आर्थिक सिस्टम को लेकर भारत से सीख सकता था रूस

रूस इस आर्थिक संकट से बहुत कुछ अपनी अर्थव्यवस्था को बचा सकता था, यदि उसने समय रहते ही अपना आर्थिक पेमेंट सिस्टम विकसित कर लिया होता. जैसा कि भारत ने किया है. खासकर तब से जबसे मोदी सरकार लगातार भारतीय पेमेंट सिस्टम को मजबूत करने पर जोर दे रही है. मीडिया रिपोर्ट में ऐसी कई खबरें हैं, जहां बताया जा रहा है कि अगर पुतिन ने मोदी सरकार की तरह कुछ फैसले किए होते, तो उनकी स्थिति आज बेहतर होती. खासकर पेमेंट सिस्टम को लेकर.

भारत ने अपना पेमेंट सिस्टम डेवलप किया है. इसमें रुपे कार्ड, यूपीआई सिस्टम और रूपया एक्सचेंज सिस्टम है. भारत के पास अपना सैटेलाइट सिस्टम भी है. अब भारत डिजिटल करेंसी को भी ला रहा है. इसका मतलब यह है कि अगर भारत का किसी दूसरे देश से युद्ध होता है और अमेरिकी कंपनियां भारत को वित्तीय आधार पर थामने की कोशिश करेंगी, तो वह सफल नहीं हो सकेंगी. क्योंकि भारत ने अपनी व्यवस्था विकसित कर ली है.

क्या है यूपीआई

यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payments Interface) डिजिटल पेमेंट का एक तरीका है. यह आपके बैंक अकाउंट से जुड़ा होता है. इसके जरिए आप सुरक्षित तरीके से पेमेंट कर सकते हैं. इसके जरिए सभी तरह के पेमेंट सुरक्षित तरीके से किए जा सकते हैं. इसमें ऑनलाइन शॉपिंग और फंड ट्रासफर भी शामिल है. यह सिस्टम इम्मिडिएट पेमेंट सर्विस पर काम करता है. आप अपने फोन में अपना यूपीआई पिन नंबर जेनरेट करते हैं. इसके जरिए ही पेमेंट होता है. हर बैंक का अपना यूपीआई होता है. 25 अगस्त 2016 से यह व्यवस्था शुरू हुई.

क्या है डिजिटल करेंसी

आसान भाषा में कहें तो डिजिटल करेंसी बैंकनोट के बराबर है. यह उसका इलेक्ट्रॉनिक रूप है. इसे बैंक या एटीएम से नकद (कागज के रूप में) निकाला नहीं जा सकता है. मगर आप किसी से 100 रुपये का कागज वाले नोट के बदले उतने ही मूल्य का ई-रुपया ले सकते हैं. डिजिटल करेंसी को देश का सेंट्रल बैंक जारी करता है. यह उस देश की केंद्रीय बैंक की बैलेंसशीट (Balance Sheet) में भी शामिल होती है. इस बार बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी घोषणा की थी.

क्या है रूपे कार्ड

रुपे कार्ड, क्रेडिट/डेबिट कार्ड का भारतीय संस्करण है. 2012 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने रुपे कार्ड (RuPay) लॉन्च किया था. प्रोसेसिंग शुल्क कम होने से लेन-देन में रुपे कार्ड का उपयोग मास्टरकार्ड/वीजा कार्ड से 23% सस्ता है. लेने-देन की सभी जानकारी बस भारत तक ही सीमित रहती है.

ये भी पढे़ं : रूस तीसरे परमाणु संयंत्र की तरफ बढ़ रहा: जेलेंस्की

नई दिल्ली : यूक्रेन की राजधानी कीव और अन्य शहरों पर रूसी हमले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चतता को बढ़ा दिया है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस युद्ध की निंदा करते हुए पश्चिमी देशों ने रूस के वित्तीय संस्थानों और व्यक्तियों को लक्षित करते हुए कुछ आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की है.

इन प्रतिबंधों में कुछ रूसी बैकों को अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्विफ्ट संदेश प्रणाली से हटाना, रूसी कंपनियों और उद्योगियों की पश्चिमी देशों में मौजूद संपत्ति को फ्रीज करना और रूस के केंद्रीय बैंक को 630 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करने से रोकना शामिल है.

इन कदमों के बाद कई रेटिंग एजेंसियों ने रूस की क्रेडिट रेटिंग को कम करके जंक स्टेटस (निवेश अधिक खतरे में) कर दिया है या संकेत दिया है कि जल्द वे ऐसा करेंगी. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वे मानती हैं कि रूस द्वारा कर्जे का भुगतान करने में चूकने की आशंका पहले से अधिक है. वैश्विक बैंकों के समूह के मुताबिक, भुगतान करने में चूकने की आशंका बहुत अधिक है.

बैंकों को खतरा

विदेशी बैंकों में करीब 100 अरब डॉलर का रूसी कर्ज है. इससे रूस के बाहर बैंकों के लिए खतरे को लेकर सवाल पैदा हो गया है और भुगतान में चूक की संभावना के कारण 2008 की तरह नकदी संकट उत्पन्न होने की आशंका है. ऐसी स्थिति में बैंक अन्य बैंक की ऋण चुकाने की क्षमता को लेकर घबरा जाते हैं और एक दूसरे को कर्ज देना बंद कर देते हैं.

रूस पर लगे प्रतिबंध का असर सबसे अधिक यूरोपीय बैंकों, खासतौर पर ऑस्ट्रिया, फ्रांस और इटली के बैंकों पर पड़ेगा. बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआईएस) के आंकड़ों के मुताबिक, फ्रांस और इटली के बैंकों का करीब 25-25 अरब डॉलर कर्ज रूस पर है जबकि ऑस्ट्रियन बैंकों का 17.5 अरब डॉलर कर्ज रूस पर है.

इनकी तुलना में अमेरिकी बैंक 2014 में क्रीमिया के कब्जे के बाद से ही रूस की अर्थव्यवस्था से अपना संबंध घटा रहे हैं. हालांकि, इसके बावजूद सिटीग्रुप का करीब 10 अरब डॉलर रूस में लगा है, परंतु बैंक की कुल परिसंपत्ति के मुकाबले यह बहुत छोटी राशि है. यूक्रेन के भी कर्ज का भुगतान करने में चूकने की आशंका है. यूक्रेन के 60 अरब के बॉन्ड कर्ज की रेटिंग भी गिराकर जंक कर दी गई है.

कर्ज के अलावा अन्य कारणों से भी कई बैंक प्रभावित होंगे, क्योंकि वे या तो यूक्रेन में या रूस में बैंकिंग सेवा देते हैं. रेटिंग एजेंसी फिच के मुताबिक, फ्रांसीसी बैंक बीएनपी परीबास और क्रेडिट एग्रीकोल का संपर्क यूक्रेन से सबसे अधिक है, क्योंकि उनकी स्थानीय अनुषंगी शाखाएं उस देश में काम कर रही हैं. सोसाइटी जनरल और यूनीक्रेडिट उन बैंकों में शामिल हैं, जिनका वृहद परिचालन रूस में है और उनका रूस पर सबसे अधिक कर्ज है.

इसके अलावा यूरोपीय बैंकों के लिए एक और खराब खबर यूरो को डॉलर में बदलने पर आने वाले खर्च में वृद्धि है. बैंक इस बाजार का इस्तेमाल अधिकतर अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए डॉलर जुटाने में करते हैं, ऐसे में उच्च दर होने से उनके मुनाफे पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा.

भुगतान में चूक से बैंकों पर कुल मिलाकर खतरा कितना गंभीर ?

अमेरिकी निवेश कंपनी मॉर्निंग स्टार का मानना है कि यूरोपीय बैंकों का और अकेले अमेरिकी बैंक का रूस से संपर्क उनके विलायकता के संबंध में महत्वहीन है. फिर भी खबर है कि यूरोपीय, अमेरिकी और जापानी बैंकों को गंभीर नुकसान हो सकता है और यह संभवत: 150 अरब डॉलर तक हो सकता है.

बैंक अन्य तरीके से भी प्रभावित हो सकते हैं. उदाहरण के लिए स्विट्जरलैंड, साइप्रस और अमेरिका रूसी उन उद्योगपतियों के बड़े ठिकाने हैं जो अपनी नकदी विदेश में जमा करना चाहते हैं. साइप्रस रूसी अमीरों को गोल्डन पासपोर्ट से आकर्षित करता है. इन देशों के संस्थानों पर इन प्रतिबंधों से कारोबार खोने का खतरा है. उदाहरण के लिए ब्रिटिश बैंक लॉयड्स और नैटवेस्ट के शेयरों में यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के बाद से 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है.

बैंकों से परे

बैंकों के अलावा युद्ध से उन कारोबारों को भी उल्लेखनीय नुकसान हो रहा है, जिनके रूस में हित हैं. जिस कंपनी का धन रूसी कारोबारी के पास है, उसे वापस पाने में संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि रूबल के दाम में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है और स्विफ्ट पाबंदी से भुगतान में परेशानी आएगी. उदाहरण के लिए रॉयटर्स ने खबर दी है कि अमेरिकी कंपनियों का 15 अरब डॉलर रूस में फंसा है. इनमें से अधिकतर राशि को बट्टा खाता में डालना पड़ सकता है जिससे इन्हें नुकसान होगा. एक खतरा यह है कि इससे इन कंपनियों के शेयरों की बिकवाली भय से होगी जिससे बाजार को झटका लगेगा, जैसा कि 2007-2008 में बैंकों के साथ हुआ था.

संक्षेप में कहें तो इस युद्ध का वृहद प्रभाव हो सकता है और यह आने वाले दिनों और हफ्तों में और स्पष्ट दिखाई देगा. वैश्विक अर्थव्यस्था महामारी से अब भी उबर रही है और उल्लेखनीय मुद्रास्फीति का सामना कर रही है. बाजार संवेदनशील स्थिति में हैं. रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले ने इस प्रतिकूल स्थिति का और विस्तार किया है.

आर्थिक सिस्टम को लेकर भारत से सीख सकता था रूस

रूस इस आर्थिक संकट से बहुत कुछ अपनी अर्थव्यवस्था को बचा सकता था, यदि उसने समय रहते ही अपना आर्थिक पेमेंट सिस्टम विकसित कर लिया होता. जैसा कि भारत ने किया है. खासकर तब से जबसे मोदी सरकार लगातार भारतीय पेमेंट सिस्टम को मजबूत करने पर जोर दे रही है. मीडिया रिपोर्ट में ऐसी कई खबरें हैं, जहां बताया जा रहा है कि अगर पुतिन ने मोदी सरकार की तरह कुछ फैसले किए होते, तो उनकी स्थिति आज बेहतर होती. खासकर पेमेंट सिस्टम को लेकर.

भारत ने अपना पेमेंट सिस्टम डेवलप किया है. इसमें रुपे कार्ड, यूपीआई सिस्टम और रूपया एक्सचेंज सिस्टम है. भारत के पास अपना सैटेलाइट सिस्टम भी है. अब भारत डिजिटल करेंसी को भी ला रहा है. इसका मतलब यह है कि अगर भारत का किसी दूसरे देश से युद्ध होता है और अमेरिकी कंपनियां भारत को वित्तीय आधार पर थामने की कोशिश करेंगी, तो वह सफल नहीं हो सकेंगी. क्योंकि भारत ने अपनी व्यवस्था विकसित कर ली है.

क्या है यूपीआई

यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payments Interface) डिजिटल पेमेंट का एक तरीका है. यह आपके बैंक अकाउंट से जुड़ा होता है. इसके जरिए आप सुरक्षित तरीके से पेमेंट कर सकते हैं. इसके जरिए सभी तरह के पेमेंट सुरक्षित तरीके से किए जा सकते हैं. इसमें ऑनलाइन शॉपिंग और फंड ट्रासफर भी शामिल है. यह सिस्टम इम्मिडिएट पेमेंट सर्विस पर काम करता है. आप अपने फोन में अपना यूपीआई पिन नंबर जेनरेट करते हैं. इसके जरिए ही पेमेंट होता है. हर बैंक का अपना यूपीआई होता है. 25 अगस्त 2016 से यह व्यवस्था शुरू हुई.

क्या है डिजिटल करेंसी

आसान भाषा में कहें तो डिजिटल करेंसी बैंकनोट के बराबर है. यह उसका इलेक्ट्रॉनिक रूप है. इसे बैंक या एटीएम से नकद (कागज के रूप में) निकाला नहीं जा सकता है. मगर आप किसी से 100 रुपये का कागज वाले नोट के बदले उतने ही मूल्य का ई-रुपया ले सकते हैं. डिजिटल करेंसी को देश का सेंट्रल बैंक जारी करता है. यह उस देश की केंद्रीय बैंक की बैलेंसशीट (Balance Sheet) में भी शामिल होती है. इस बार बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी घोषणा की थी.

क्या है रूपे कार्ड

रुपे कार्ड, क्रेडिट/डेबिट कार्ड का भारतीय संस्करण है. 2012 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने रुपे कार्ड (RuPay) लॉन्च किया था. प्रोसेसिंग शुल्क कम होने से लेन-देन में रुपे कार्ड का उपयोग मास्टरकार्ड/वीजा कार्ड से 23% सस्ता है. लेने-देन की सभी जानकारी बस भारत तक ही सीमित रहती है.

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Last Updated : Mar 6, 2022, 5:10 PM IST
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