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रेड यूनिट की बदौलत अफगानिस्तान में काबिज हुआ तालिबान, जानिए कब तैयार किए लड़ाके

इस्लामिक स्टेट से मुकाबला करने के लिए 2015 की शुरुआत में जिन लड़ाकों को तैयार किया गया, उन्हीं की अफगानिस्तान में तालिबान को काबिज करने में विशेष भूमिका रही. जानिए रेड यूनिट की ताकत के बारे में वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की खास रिपोर्ट में.

रेड यूनिट की बदौलत अफगानिस्तान में काबिज हुआ तालिबान
रेड यूनिट की बदौलत अफगानिस्तान में काबिज हुआ तालिबान
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Published : Aug 16, 2021, 1:14 PM IST

नई दिल्ली : तालिबान ने अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तेजी से कब्जा किया है. अमेरिकी सेना के होते हुए काबुल में जिस तरह से अफगान राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा बलों (ANDSF) या नियमित अफगानिस्तान सरकार के सैनिकों और पुलिस बलों ने आत्मसमर्पण किया वह चौंकाने वाला है. लेकिन इसके पीछे तालिबान की रेड यूनिट की ताकत है.

युद्ध से तबाह देश के विभिन्न प्रांतों में जमीन पर मौजूद सूत्रों के अनुसार, तालिबान के हमलों का नेतृत्व 'सारा खेता' (पश्तो में 'रेड यूनिट') विशेष बल के सदस्यों ने किया. इस यूनिट की ओर से तालिबान में शामिल होने के लिए खासा प्रचार किया जाता है. अफगान युवाओं को लुभाने की पुरजोर कोशिश की जाती है. 'रेड यूनिट' के लड़ाके युद्ध की पोशाक पहने हुए बेहतर प्रशिक्षित होते हैं. यही नहीं इनके पास बेहतर वाहन, आधुनिक हथियार और अन्य सैन्य उपकरण भी होते हैं.

लाल हेड-बैंड, कोहनी गार्ड, घुटने के पैड, विशेष दस्ताने, सीने को गोली लगने से बचाने वाली जैकेट और ज्यादातर पाकिस्तान निर्मित 'चीता' स्नीकर्स पहने हुए ये लड़ाके नियमित रूप से तालिबान के अन्य पैदल सैनिकों में शामिल हो जाते हैं.

अमेरिकी हथियारों का करते हैं इस्तेमाल

उनके हथियारों और लड़ाकू उपकरणों में अमेरिका में निर्मित एम4 कार्बाइन (US-made M4 carbines), कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलें (Kalashnikov assault rifles), टोकरेव पिस्तौल (Tokarev pistols), लाइट मशीन गन (light machine guns), नाइट विजन उपकरण (night-vision equipment) और लेजर पॉइंटर्स (laser pointers) शामिल हैं. वे विमान भेदी तोपों का उपयोग करने के लिए भी जाने जाते हैं.

अधिकांश ऑपरेशनों में, 'रेड यूनिट' स्नाइपर्स और कमांडो को नियुक्त करता है जो नियमित तालिबान पैदल सैनिकों की मदद करने के लिए पहले से ही लक्ष्य तय कर लेते हैं.

जबकि नियमित तालिबान सैनिक आमतौर पर अपने स्थानीय क्षेत्र में काम करना पसंद करते हैं. 'रेड यूनिट' के लड़ाकों को पूरे देश में तैनात होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. इनकी तेजी ही इनकी मुख्य विशेषता है.

अक्टूबर 2015 में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादियों का मुकाबला करने के उद्देश्य के लिए तालिबानियों ने कुछ सौ लड़ाकों को शामिल किया था. माना जाता है कि 'रेड यूनिट' ने तब से और भर्तियां कीं, अब इन लड़ाकों की संख्या हजारों में है.

नंगरहार, हेलमंद और फराह के अपने मुख्य क्षेत्रों में जब तालिबान-हक्कानी नेटवर्क-अल कायदा की साठगांठ के कारण आईएस ने धीरे-धीरे अपना प्रभाव खो दिया तब से 'रेड यूनिट' ANDSF, CIA-प्रशिक्षित 'विशेष बल' और अफगान पुलिस का मुकाबला करने में लगा है.

तालिबान ने पहली 'रेड यूनिट' की तैनाती 2016 में उत्तर-पूर्वी हेलमंद के संगिन में की थी. 2018 तक, यूनिट ने अपने डोमेन को पूरे अफगानिस्तान में फैला दिया.

पढ़ें- अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी ने देश छोड़ा

पढ़ें- काबुल एयरपोर्ट पर भारी भीड़, हवाई फायरिंग, मची अफरा-तफरी

पढ़ें- 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद अफगानिस्तान में तालिबान, राष्ट्रपति भवन पर कब्जा

नई दिल्ली : तालिबान ने अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तेजी से कब्जा किया है. अमेरिकी सेना के होते हुए काबुल में जिस तरह से अफगान राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा बलों (ANDSF) या नियमित अफगानिस्तान सरकार के सैनिकों और पुलिस बलों ने आत्मसमर्पण किया वह चौंकाने वाला है. लेकिन इसके पीछे तालिबान की रेड यूनिट की ताकत है.

युद्ध से तबाह देश के विभिन्न प्रांतों में जमीन पर मौजूद सूत्रों के अनुसार, तालिबान के हमलों का नेतृत्व 'सारा खेता' (पश्तो में 'रेड यूनिट') विशेष बल के सदस्यों ने किया. इस यूनिट की ओर से तालिबान में शामिल होने के लिए खासा प्रचार किया जाता है. अफगान युवाओं को लुभाने की पुरजोर कोशिश की जाती है. 'रेड यूनिट' के लड़ाके युद्ध की पोशाक पहने हुए बेहतर प्रशिक्षित होते हैं. यही नहीं इनके पास बेहतर वाहन, आधुनिक हथियार और अन्य सैन्य उपकरण भी होते हैं.

लाल हेड-बैंड, कोहनी गार्ड, घुटने के पैड, विशेष दस्ताने, सीने को गोली लगने से बचाने वाली जैकेट और ज्यादातर पाकिस्तान निर्मित 'चीता' स्नीकर्स पहने हुए ये लड़ाके नियमित रूप से तालिबान के अन्य पैदल सैनिकों में शामिल हो जाते हैं.

अमेरिकी हथियारों का करते हैं इस्तेमाल

उनके हथियारों और लड़ाकू उपकरणों में अमेरिका में निर्मित एम4 कार्बाइन (US-made M4 carbines), कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलें (Kalashnikov assault rifles), टोकरेव पिस्तौल (Tokarev pistols), लाइट मशीन गन (light machine guns), नाइट विजन उपकरण (night-vision equipment) और लेजर पॉइंटर्स (laser pointers) शामिल हैं. वे विमान भेदी तोपों का उपयोग करने के लिए भी जाने जाते हैं.

अधिकांश ऑपरेशनों में, 'रेड यूनिट' स्नाइपर्स और कमांडो को नियुक्त करता है जो नियमित तालिबान पैदल सैनिकों की मदद करने के लिए पहले से ही लक्ष्य तय कर लेते हैं.

जबकि नियमित तालिबान सैनिक आमतौर पर अपने स्थानीय क्षेत्र में काम करना पसंद करते हैं. 'रेड यूनिट' के लड़ाकों को पूरे देश में तैनात होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. इनकी तेजी ही इनकी मुख्य विशेषता है.

अक्टूबर 2015 में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादियों का मुकाबला करने के उद्देश्य के लिए तालिबानियों ने कुछ सौ लड़ाकों को शामिल किया था. माना जाता है कि 'रेड यूनिट' ने तब से और भर्तियां कीं, अब इन लड़ाकों की संख्या हजारों में है.

नंगरहार, हेलमंद और फराह के अपने मुख्य क्षेत्रों में जब तालिबान-हक्कानी नेटवर्क-अल कायदा की साठगांठ के कारण आईएस ने धीरे-धीरे अपना प्रभाव खो दिया तब से 'रेड यूनिट' ANDSF, CIA-प्रशिक्षित 'विशेष बल' और अफगान पुलिस का मुकाबला करने में लगा है.

तालिबान ने पहली 'रेड यूनिट' की तैनाती 2016 में उत्तर-पूर्वी हेलमंद के संगिन में की थी. 2018 तक, यूनिट ने अपने डोमेन को पूरे अफगानिस्तान में फैला दिया.

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