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किसी मंत्री के बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार से जोड़ा नहीं जा सकता : न्यायालय

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Published : Jan 3, 2023, 11:11 AM IST

Updated : Jan 3, 2023, 12:05 PM IST

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित प्रतिबंधों के अलावा नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है.

Etv BharatNo more restrictions can be imposed on the freedom of speech of ministers, MPs: Supreme Court (file photo)
Etv Bharatमंत्रियों, सांसदों की बोलने की स्वतंत्रता पर अधिक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद, किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता. न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उल्लेखित पाबंदियों के अलावा स्वतंत्र अभिव्यक्ति के खिलाफ कोई अतिरिक्त पाबंदी लागू नहीं की जा सकती.

पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, 'सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, फिर भले ही वह बयान राज्य के किसी मामले को लेकर हो या सरकार की रक्षा करने वाला हो.'

न्यायालय ने कहा, 'अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार का प्रयोग राज्य के अलावा अन्य व्यवस्था के खिलाफ भी किया जा सकता है.' पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने एक अलग आदेश लिखा. उन्होंने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहद आवश्यक अधिकार है ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह जानकारी हो.

उन्होंने कहा कि नफरत फैलाने वाला भाषण असमान समाज का निर्माण करते हुए मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करता है और विविध पृष्ठभूमियों, खासतौर से हमारे भारत जैसे देश के, नागरिकों पर भी प्रहार करता है. यह फैसला इस सवाल पर आया है कि क्या किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबंदियां लगायी जा सकती हैं ?

ये भी पढ़ें- COVID 19 : देश में कोरोना वायरस संक्रमण के उपचाराधीन मरीजों की संख्या में कमी

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद, किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता. न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उल्लेखित पाबंदियों के अलावा स्वतंत्र अभिव्यक्ति के खिलाफ कोई अतिरिक्त पाबंदी लागू नहीं की जा सकती.

पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, 'सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, फिर भले ही वह बयान राज्य के किसी मामले को लेकर हो या सरकार की रक्षा करने वाला हो.'

न्यायालय ने कहा, 'अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार का प्रयोग राज्य के अलावा अन्य व्यवस्था के खिलाफ भी किया जा सकता है.' पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने एक अलग आदेश लिखा. उन्होंने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहद आवश्यक अधिकार है ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह जानकारी हो.

उन्होंने कहा कि नफरत फैलाने वाला भाषण असमान समाज का निर्माण करते हुए मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करता है और विविध पृष्ठभूमियों, खासतौर से हमारे भारत जैसे देश के, नागरिकों पर भी प्रहार करता है. यह फैसला इस सवाल पर आया है कि क्या किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबंदियां लगायी जा सकती हैं ?

ये भी पढ़ें- COVID 19 : देश में कोरोना वायरस संक्रमण के उपचाराधीन मरीजों की संख्या में कमी

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Jan 3, 2023, 12:05 PM IST
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