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किसी को भी कोविड-19 टीकाकरण कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता : SC

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को कोविड​​-19 रोधी टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान कोविड-19 वैक्सीन नीति को स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित नहीं कहा जा सकता है.

Supreme Court says no individual can be forced to get vaccinated
किसी को भी कोविड-19 टीकाकरण कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता : न्यायालय
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Published : May 2, 2022, 12:08 PM IST

Updated : May 2, 2022, 2:15 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को कोविड​​-19 रोधी टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और न्यायालय ने केंद्र से इस तरह के टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव के आंकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए कहा है.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शारीरिक स्वायत्तता और अखंडता की रक्षा की जाती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान कोविड-19 वैक्सीन नीति को स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित नहीं कहा जा सकता है.

पीठ ने कहा, 'संख्या कम होने तक, हम सुझाव देते हैं कि संबंधित आदेशों का पालन किया जाए और टीकाकरण नहीं करवाने वाले व्यक्तियों के सार्वजनिक स्थानों में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाए। यदि पहले से ही कोई प्रतिबंध लागू हो तो उसे हटाया जाए.' पीठ ने यह भी कहा कि टीका परीक्षण आंकड़ों को अलग करने के संबंध में, व्यक्तियों की गोपनीयता के अधीन, किए गए सभी परीक्षण और बाद में आयोजित किए जाने वाले सभी परीक्षणों के आंकड़े अविलंब जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए.

ये भी पढ़ें- MP : दलित को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट का इस्तेमाल करने से रोका गया

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को व्यक्तियों के निजी आंकड़ों से समझौता किए बिना सार्वजनिक रूप से सुलभ प्रणाली पर जनता और डॉक्टरों पर टीकों के प्रतिकूल प्रभावों के मामलों की रिपोर्ट प्रकाशित करने को भी कहा.
अदालत ने जैकब पुलियेल द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला सुनाया जिसमें कोविड​​-19 टीकों और टीकाकरण के बाद के मामलों के नैदानिक ​​परीक्षणों पर आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को कोविड​​-19 रोधी टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और न्यायालय ने केंद्र से इस तरह के टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव के आंकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए कहा है.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शारीरिक स्वायत्तता और अखंडता की रक्षा की जाती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान कोविड-19 वैक्सीन नीति को स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित नहीं कहा जा सकता है.

पीठ ने कहा, 'संख्या कम होने तक, हम सुझाव देते हैं कि संबंधित आदेशों का पालन किया जाए और टीकाकरण नहीं करवाने वाले व्यक्तियों के सार्वजनिक स्थानों में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाए। यदि पहले से ही कोई प्रतिबंध लागू हो तो उसे हटाया जाए.' पीठ ने यह भी कहा कि टीका परीक्षण आंकड़ों को अलग करने के संबंध में, व्यक्तियों की गोपनीयता के अधीन, किए गए सभी परीक्षण और बाद में आयोजित किए जाने वाले सभी परीक्षणों के आंकड़े अविलंब जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए.

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शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को व्यक्तियों के निजी आंकड़ों से समझौता किए बिना सार्वजनिक रूप से सुलभ प्रणाली पर जनता और डॉक्टरों पर टीकों के प्रतिकूल प्रभावों के मामलों की रिपोर्ट प्रकाशित करने को भी कहा.
अदालत ने जैकब पुलियेल द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला सुनाया जिसमें कोविड​​-19 टीकों और टीकाकरण के बाद के मामलों के नैदानिक ​​परीक्षणों पर आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी.

Last Updated : May 2, 2022, 2:15 PM IST
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