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Sankashti Chaturthi 2021 : ऐसे करें पूजन तो होगी गणपति की कृपा, जानिए व्रत का विधि विधान

संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) के दिन भगवान गणेश की पूजा होती है. मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से आपके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. इसलिए इस दिन को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, तो चलिए संकष्टी चतुर्थी व्रत का विधि विधान और कथा के बारे में जानते हैं.

Sankashti Chaturthi 2021
Sankashti Chaturthi 2021
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Published : Dec 22, 2021, 4:12 AM IST

पटना : साल 2021 की अंतिम संकष्टी चतुर्थी (Last Sankashti Chaturthi of 2021) आज मनाई जा रही है. इस दिन सभी देवी देवताओं में प्रथम पूजनीय गणेश जी की पूजा की जाती है. इस चतुर्थी की बुधवार के दिन होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है. बुधवार का दिन गणपति जी को समर्पित है, इसलिए जो भी जातक इस दिन सच्चे मन से गणेश जी की विधि विधान से पूजा करेंगे, विघ्नहर्ता उनके सभी कष्ट हर लेंगे.

संकष्टी चतुर्थी की पूजा का मुहूर्त रात्रि 8:15 से रात्रि 9:15 तक और चंद्र दर्शन मुहूर्त रात्रि 8:30 से रात्रि 9:30 तक है. इस दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहने. इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है. गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए. गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें. पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल और तांबे का कलश स्थापित करें. प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें.

जानिए व्रत का विधि विधान

ज्योतिष शास्त्र और पौराणिक ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा माना जाता है. नक्षत्रों की संख्या 27 बताई गई हैं. पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभ नक्षत्रों में से एक माना जाता है. इस नक्षत्र में किए गए कार्य शुभ फल प्रदान करते हैं, इसलिए लोग शुभ और मांगलिक कार्यों को करने के लिए इस नक्षत्र का इंतजार करते हैं. संकष्टी चतुर्थी (Importance of Sankashti Chaturthi) के दिन पंचांग के अनुसार चंद्रमा कर्क राशि में विराजमान रहेगा.

ये भी पढ़ें- जानें भगवान गणेश काे क्याें कहा जाता है लंबाेदर

''पूजा के समय मां दुर्गा की मूर्ति को मंदिर में अवश्य रखें. ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है. गणेश जी को रोली लगाएं फूल और जल अर्पित करें. भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं. शाम के समय शुभ मुहूर्त में चंद्रमा निकलने से पहले गणेश जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें. पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बांटे रात को चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलें.''- आचार्य कमल दुबे

ये भी पढ़ें- भगवान गणेश का नाम 'सुमुख' शांति और नवीनता के लिए करता है प्रेरित

ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को कर्क राशि का स्वामी बताया गया है. यानी इस दिन चंद्रमा अपनी ही राशि में विराजमान रहेगा, जो एक राजयोग है. चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है. चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है. भगवान गणेश बुद्धि के देवता है, योजना के देवता है, समझदारी के देवता हैं और चंद्रमा का प्रभाव मन पर रहता है. इस दिन चंद्रमा का स्वराशि होना और पुष्य नक्षत्र का होना यह अपने आप में अद्भुत संयोग बन रहा है. इस दिन पूजा पाठ करने से जिन जातकों के जीवन में संघर्ष है, परेशानी है, भगवान गणेश और चंद्र देव के आशीर्वाद से वह सभी परेशानी उनके जीवन से समाप्त होगी, ऐसी पुराणों में मान्यता है.

पटना : साल 2021 की अंतिम संकष्टी चतुर्थी (Last Sankashti Chaturthi of 2021) आज मनाई जा रही है. इस दिन सभी देवी देवताओं में प्रथम पूजनीय गणेश जी की पूजा की जाती है. इस चतुर्थी की बुधवार के दिन होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है. बुधवार का दिन गणपति जी को समर्पित है, इसलिए जो भी जातक इस दिन सच्चे मन से गणेश जी की विधि विधान से पूजा करेंगे, विघ्नहर्ता उनके सभी कष्ट हर लेंगे.

संकष्टी चतुर्थी की पूजा का मुहूर्त रात्रि 8:15 से रात्रि 9:15 तक और चंद्र दर्शन मुहूर्त रात्रि 8:30 से रात्रि 9:30 तक है. इस दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहने. इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है. गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए. गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें. पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल और तांबे का कलश स्थापित करें. प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें.

जानिए व्रत का विधि विधान

ज्योतिष शास्त्र और पौराणिक ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा माना जाता है. नक्षत्रों की संख्या 27 बताई गई हैं. पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभ नक्षत्रों में से एक माना जाता है. इस नक्षत्र में किए गए कार्य शुभ फल प्रदान करते हैं, इसलिए लोग शुभ और मांगलिक कार्यों को करने के लिए इस नक्षत्र का इंतजार करते हैं. संकष्टी चतुर्थी (Importance of Sankashti Chaturthi) के दिन पंचांग के अनुसार चंद्रमा कर्क राशि में विराजमान रहेगा.

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''पूजा के समय मां दुर्गा की मूर्ति को मंदिर में अवश्य रखें. ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है. गणेश जी को रोली लगाएं फूल और जल अर्पित करें. भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं. शाम के समय शुभ मुहूर्त में चंद्रमा निकलने से पहले गणेश जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें. पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बांटे रात को चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलें.''- आचार्य कमल दुबे

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ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को कर्क राशि का स्वामी बताया गया है. यानी इस दिन चंद्रमा अपनी ही राशि में विराजमान रहेगा, जो एक राजयोग है. चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है. चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है. भगवान गणेश बुद्धि के देवता है, योजना के देवता है, समझदारी के देवता हैं और चंद्रमा का प्रभाव मन पर रहता है. इस दिन चंद्रमा का स्वराशि होना और पुष्य नक्षत्र का होना यह अपने आप में अद्भुत संयोग बन रहा है. इस दिन पूजा पाठ करने से जिन जातकों के जीवन में संघर्ष है, परेशानी है, भगवान गणेश और चंद्र देव के आशीर्वाद से वह सभी परेशानी उनके जीवन से समाप्त होगी, ऐसी पुराणों में मान्यता है.

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