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RSS चीफ मोहन भागवत की अपील, हिंदू समाज अपनाए एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी - जबलपुर में मोहन भागवत का बयान

मध्यप्रदेश के जबलपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के कार्यकर्ताओं को सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाया. इस दौरान उन्होंने सभी हिंदुओं से एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी की नीति पर चलने की अपील की.

Mohan Bahgwat
मोहन भागवत
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Published : Apr 18, 2023, 8:24 PM IST

मोहन भागवत की अपील

जबलपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत मंगलवार को मध्यप्रदेश के जबलपुर जिला पहुंचे. यहां भारतीय जनता पार्टी और संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं को उन्होंने सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाया. इस दौरान मोहन भागवत ने हिंदू धर्म के सभी जातियों के लोगों के साथ समरसता बढ़ानी की अपील की. संघ प्रमुख ने एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी की नीति पर चलने की बात कही. मोहन भागवत ने एक बार फिर अपने पुराने बयान को दोहराते हुए कहा कि जातियां भगवान नहीं बनाई थी, बल्कि यह तो कुछ लोगों की गलतियों की वजह से बनी है. जिसके परिणाम भोगने पड़ रहे हैं.

एक श्मशान एक मंदिर एक पानी: जाति के भेद को मिटाने के लिए डॉक्टर मोहन भागवत ने आरएसएस के कार्यकर्ताओं को समरसता का जो पाठ पढ़ाया. उसमें उन्होंने उन्हें समझाया कि हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी और समाज के सभी वर्गों के साथ अपने संबंध बेहतर करने होंगे. उनके साथ रोटी और पानी का व्यवहार बढ़ाना होगा. RSS प्रमुख ने कहा कि हिंदू समाज का एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी होना चाहिए. इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं को कोशिश करनी चाहिए, ताकि हिंदू धर्म के बीच में जाति की दीवार को खत्म किया जा सके. इसके साथ ही मोहन भागवत ने कहा कि शहरी इलाकों में गरीबी और अमीरी के बीच में भौतिक दीवारें बन गई है. गरीबों के और अमीरों के मोहल्ले अलग हो गए हैं. आजकल के बच्चे गरीबी और गरीब को जानते ही नहीं हैं, इसलिए अब लोगों को गरीबों के मोहल्ले में जाकर भी काम करना होगा.

कुछ खबरें यहां पढ़ें

स्वामी रामानंदाचार्य को आदर्श बनाने की पहल: हिंदू धर्म के संत स्वामी रामानंदाचार्य ने सभी जातियों के लोगों को दीक्षा दी थी और स्वामी रामानंदाचार्य के शिष्य रविदास, कबीर दास, रैदास जैसे 12 शिष्य थे. जिन्हें संत माना जाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अब इन्हें अपना आदर्श बनाया है, ताकि अलग-अलग जातियों के संतो में सामाजिक समरसता बने. संघ के प्रमुख का कहना है कि लोगों को सभी जाति के संतों के कार्यक्रमों में जाना आना शुरू करना चाहिए. वहीं भागवत ने भक्ति मार्ग के जरिए लोगों को इकट्ठा करने की अपील की.

जातियां भगवान ने नहीं बनाई: डॉक्टर मोहन भागवत का कहना है कि जातियां ईश्वर ने नहीं बनाई थी, बल्कि बाद में लोगों ने इन्हें बनाया. पहले हमारे समाज में ऐसी ऊंच-नीच नहीं थी. धर्म ग्रंथों में बहुत सी बातें हैं जो अनुसूचित जाति के लोगों ने लिखी है, लेकिन कुछ लोगों ने अपनी विशिष्टता साबित करने की वजह से ऊंच-नीच के भेद बना दिए थे. जिसे अब खत्म करने का समय आ गया है.

मोहन भागवत की अपील

जबलपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत मंगलवार को मध्यप्रदेश के जबलपुर जिला पहुंचे. यहां भारतीय जनता पार्टी और संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं को उन्होंने सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाया. इस दौरान मोहन भागवत ने हिंदू धर्म के सभी जातियों के लोगों के साथ समरसता बढ़ानी की अपील की. संघ प्रमुख ने एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी की नीति पर चलने की बात कही. मोहन भागवत ने एक बार फिर अपने पुराने बयान को दोहराते हुए कहा कि जातियां भगवान नहीं बनाई थी, बल्कि यह तो कुछ लोगों की गलतियों की वजह से बनी है. जिसके परिणाम भोगने पड़ रहे हैं.

एक श्मशान एक मंदिर एक पानी: जाति के भेद को मिटाने के लिए डॉक्टर मोहन भागवत ने आरएसएस के कार्यकर्ताओं को समरसता का जो पाठ पढ़ाया. उसमें उन्होंने उन्हें समझाया कि हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी और समाज के सभी वर्गों के साथ अपने संबंध बेहतर करने होंगे. उनके साथ रोटी और पानी का व्यवहार बढ़ाना होगा. RSS प्रमुख ने कहा कि हिंदू समाज का एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी होना चाहिए. इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं को कोशिश करनी चाहिए, ताकि हिंदू धर्म के बीच में जाति की दीवार को खत्म किया जा सके. इसके साथ ही मोहन भागवत ने कहा कि शहरी इलाकों में गरीबी और अमीरी के बीच में भौतिक दीवारें बन गई है. गरीबों के और अमीरों के मोहल्ले अलग हो गए हैं. आजकल के बच्चे गरीबी और गरीब को जानते ही नहीं हैं, इसलिए अब लोगों को गरीबों के मोहल्ले में जाकर भी काम करना होगा.

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जातियां भगवान ने नहीं बनाई: डॉक्टर मोहन भागवत का कहना है कि जातियां ईश्वर ने नहीं बनाई थी, बल्कि बाद में लोगों ने इन्हें बनाया. पहले हमारे समाज में ऐसी ऊंच-नीच नहीं थी. धर्म ग्रंथों में बहुत सी बातें हैं जो अनुसूचित जाति के लोगों ने लिखी है, लेकिन कुछ लोगों ने अपनी विशिष्टता साबित करने की वजह से ऊंच-नीच के भेद बना दिए थे. जिसे अब खत्म करने का समय आ गया है.

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