सूरत : गुजरात के एक धनी हीरा व्यापारी की नौ साल की बेटी ने भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर बुधवार को जैन साध्वी के तौर पर दीक्षा ली. परिवार के एक करीबी ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि धनेश और अमि सांघवी की दो बेटियों में से बड़ी बेटी देवांशी ने सूरत वेसु इलाके में जैन मुनि आचार्य विजय कीर्तियशसुरि की उपस्थिति में दीक्षा ली. इस मौके पर सैकड़ों लोग मौजूद रहे. देवांशी के पिता सूरत में हीरा व्यापार करने वाली लगभग तीन दशक पुरानी कंपनी 'संघवी एंड संस' के मालिक हैं.
नाबालिग लड़की की 'दीक्षा' उसके तपस्वी जीवन में प्रवेश का प्रतीक है. समारोह पिछले शनिवार को शुरू हुआ था. पारिवारिक मित्र नीरव शाह ने कहा कि देवांशी का झुकाव बहुत कम उम्र से ही आध्यात्म की ओर था और उन्होंने अन्य मुनियों के साथ लगभग 700 किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी. उन्होंने कहा कि देवांशी पांच भाषाएं जानती है. दो बहनों में बड़ी होने के नाते नौ साल की देवांशी सांघवी अगले 10 साल में करोड़ों की हीरा कंपनी की मालकिन होती.
वह कई जगहों की यात्रा कर रही होती क्योंकि परिवार के स्वामित्व वाली कंपनी के कार्यालय दुनिया के सभी महत्वपूर्ण शहरों में हैं. लेकिन देवांशी इन सभी ऐशो-आराम को छोड़कर बुधवार को सन्यास ग्रहण कर लीं. मंगलवार को शहर में इस अवसर को मनाने के लिए हाथियों, घोड़ों और ऊंटों के साथ एक भव्य जुलूस का आयोजन किया गया. इससे पहले परिवार ने बेल्जियम में भी इसी तरह का जुलूस निकाला था. यह परिवार संघवी एंड संस चलाता है, जो सबसे पुरानी हीरा बनाने वाली कंपनियों में से एक है, जिसका कारोबार करोड़ों में है.
उसके पिता धनेश सांघवी अपने पिता मोहन के इकलौते बेटे हैं और उनकी दो बेटियां देवांशी और पांच साल की काव्या हैं. धनेश, उनकी पत्नी अमी और दोनों बेटियां धार्मिक निर्देशों के अनुसार एक साधारण जीवन शैली का पालन करती हैं. कार्यक्रम से जुड़े एक पारिवारिक मित्र ने मीडिया को बताया कि कहा कि देवांशी ने कभी टीवी, या फिल्में नहीं देखीं और कभी भी रेस्तरां या शादियों में शामिल नहीं हुईं. उन्होंने अब तक 367 दीक्षा कार्यक्रमों में भाग लिया है.
देवांशी ने पलिताना में दो साल की उम्र में उपवास किया और संन्यास का मार्ग अपनाने के लिए दृढ़ संकल्पित थीं. कार्यक्रम के आयोजकों में से एक ने कहा कि एक बड़े व्यवसाय के मालिक होने के बावजूद, परिवार एक साधारण जीवन जीता है. उन्होंने देखा है कि उनकी बेटियां सभी सांसारिक सुखों से दूर रहना चाहती हैं. दीक्षा के लिए चुने जाने से पहले, देवांशी ने भिक्षुओं के साथ 600 किमी की दूरी तय की, और कई कठिन दिनचर्या के बाद, उन्हें अपने गुरु द्वारा संन्यास लेने की अनुमति दी गई. उन्हें जैनाचार्य कीर्तिशसूरीश्वरजी महाराज द्वारा दीक्षा दी जाएगी.
(एक्सट्रा इनपुट : पीटीआई-भाषा)