हैदराबाद : जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मोत्सव आज (14 अप्रैल) मनाया जा रहा है. जैन धर्म के अनुयायी महावीर जयंती को हर्षोल्लास से मनाते हैं. ये जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है. भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था. तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गए. इनके माता का नाम त्रिशला और पिता सिद्धार्थ थे. भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था. राजसी ठाट-बाठ में पाले बढ़े वर्धमान ने तमाम भौतिक सुविधाओं को त्यागकर 30 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था.
12 साल की कठिन तपस्या के बाद भगवान महावीर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई. इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे. जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है. इस साल महावीर स्वामी का 2620वां जन्म दिवस मनाया जा रहा है.
क्या है पंचशील सिद्धांत: जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी का जीवन ही उनका संदेश है. तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया. उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य. महावीर ने अपने उपदेशों और प्रवचनों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाई और मार्गदर्शन किया. भगवान महावीर ने अहिंसा की जितनी सूक्ष्म व्याख्या की, वह अन्य कहीं दुर्लभ है. उन्होंने मानव को मानव के प्रति ही प्रेम और मित्रता से रहने का संदेश नहीं दिया अपितु मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति से लेकर कीड़े-मकौड़े, पशु-पक्षी आदि के प्रति भी मित्रता और अहिंसक विचार के साथ रहने का उपदेश दिया है.
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क्या होता है कैवल्य ज्ञान : हिन्दू धर्म में कैवल्य ज्ञान को स्थित प्रज्ञ, प्रज्ञा कहते हैं. यह मोक्ष या समाधि की एक अवस्था होती है. समाधि समयातित है जिसे मोक्ष कहा जाता है. इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में संबोधी एवं निर्वाण कहा गया है. योग में इसे समाधि कहा गया है. महावीर स्वामी ने ‘कैवल्य ज्ञान’ की जिस ऊंचाई को छुआ था वह अतुलनीय है. वह अंतरिक्ष के उस सन्नाटे की तरह है जिसमें किसी भी पदार्थ की उपस्थिति नहीं हो सकती. जहां न ध्वनि है और न ही ऊर्जा. केवल शुद्ध आत्मतत्व. भगवान महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं प्रतिपादक थे. उन्होंने श्रमण संघ की परंपरा को एक व्यवस्थित रूप दिया. भगवान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या तथा गहन ध्यान किया. अन्त में उन्हें ‘कैवल्य ज्ञान’ प्राप्त हुआ. कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए शिक्षा देना शुरू की.
कैसे मनाया जाता है पर्व: महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं. उसके बाद भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा निकालते हैं. इसके बाद स्वर्ण और रजत कलशों से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है. जैन समाज द्वारा दिन भर कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करके महावीर का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है.
मंदिरों में खास आयोजन: राजस्थान में अरावली पर्वत की घाटियों के मध्य स्थित रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर है. चारों ओर जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है. इसके अलावा राजस्थान के ही दिलवाड़ा में विख्यात जैन मंदिर हैं. इन मंदिरों का निर्माण 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था. गुजरात के शतरुंजया पहाड़ पर पालिताना जैन मंदिर स्थित है. नौ सौ से अधिक मंदिरों वाले शतरुंजया पहाड़ पर स्थित पालिताना जैन मंदिर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित हैं.