मदुरै : महात्मा गांधी कहते थे कि वे खुद को उन्हीं देशवासियों के बीच का कैसे मानें जो देशवासी गरीब किसान हैं ? इसी यक्ष प्रश्न के जवाब में एक सदी से भी अधिक समय पहले - 22 सितंबर 1921 को, महात्मा गांधी ने अपने गुजराती पोशाक को त्यागने का फैसला किया. इसके बाद गांधी ने जो पोशाक पहनी उससे उन्हें 'अर्ध-नग्न फकीर' का उपनाम मिला. जिस घर में गांधी ने अपनी पोशाक बदली थी, उस पर अब खादी एम्पोरियम का कब्जा है!
गांधी ने जो ड्रेस कोड चुना इस पर तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि अगर वे गरीबों से अलग होंगे तो वे खुद की पहचान उन गरीबों के साथ कैसे बना सकेंगे. गांधी ने कहा, 'मैंने अपने जीवन के दौरान जो भी बदलाव किए हैं, वे महत्वपूर्ण अवसरों से प्रभावित हुए हैं. बदलाव इतने गहरे विचार-विमर्श के बाद किए गए हैं कि मुझे शायद ही उन पर पछतावा हुआ हो. मैंने बदलाव किए, क्योंकि मैं इन कामों को करने में मदद नहीं कर सका. ऐसा ही आमूलचूल परिवर्तन - मेरी पोशाक में - हुआ. मैं मदुरै में प्रभावित हुआ.'
महात्मा गांधी के परिधान में बदलाव को लेकर गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान के प्रो. रविचंद्रन बताते हैं कि 21 और 22 सितंबर, 1921 की दरम्यानी रात गांधी के अंतरात्मा की आवाज ने उन्हें बदलाव के लिए प्रेरित किया. वे उठे और अपने गुजराती पोशाक को त्याग दिया. उन्होंने अपनी धोती फाड़ दी और इसे किसानों द्वारा पहना जाने वाली धोती या लंगोटी में बदल डाला और इसके बाद सोने चले गए. गांधी ने जब अपनी पोशाक बदली तो वे इसी कमरे में थे.
यह भी दिलचस्प है कि महात्मा गांधी ने जो बातें कहीं उन्हें अपने जीवन में भी उतारा. उन्होंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को खुद ही चरखा कातना चाहिए और अपने कपड़े बुनने चाहिए. गांधी ने जब अपनी गुजराती पोशाक बदली तो उनकी प्रशंसा और आलोचना समान रूप से हुई. इसी कड़ी में किंग जॉर्ज पंचम द्वारा लंदन के बकिंघम पैलेस में आयोजित चाय पार्टी में गांधी को दिया गया अनिच्छुक निमंत्रण का जिक्र जरूरी है. गांधी का पहनावा दरबारी शिष्टाचार के विरुद्ध था.
'लंगोटी' और शॉल पहने गांधी ने लंदन में गोलमेज सम्मेलनों में भी भाग लिया. गांधी के अनुसार, भारतीय गरीब अभी भी ब्रिटेन के कारण नग्न थे. इस संदर्भ में गांधी की टिप्पणी प्रसिद्ध है जिसमें उन्होंने कहा था, राजा ने दोनों के बराबर कपड़े पहन रखे हैं.
नेताजी पीपुल्स मूवमेंट (Netaji People's Movement) के फाउंडर, नेताजी स्वामीनाथन बताते हैं कि लंदन के लोगों ने किसी के लिए भी अपनी प्रथाओं और कानून को नहीं बदला, लेकिन गांधी के लंदन जाने पर ऐसा हुआ. गोल मेज सम्मेलन में गांधी जी ने साधारण पोशाक में भाग लिया. लंदन की रॉयल सोसायटी को पोशाकों से जुड़े अपने नियमों को एक सप्ताह तक स्थगित करना पड़ा. पहली बार कानून के सामने पोशाक की जीत हुई.
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गौरतलब है कि मदुरै को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. गांधी जब दूसरी बार मदुरै आए तो यहां के वेस्ट मासी स्ट्रीट (West Masi Street in Madurai) पर बने एक घर में रहने के दौरान गांधी ने अपनी पोशाक पूरी तरह बदल डाली और किसानों की पोशाक धारण की. कराईकुडी जाने के दौरान गांधी ने कुछ लोगों के एक समूह को संबोधित किया. उनके परिधान से अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ राजनीतिक संदेश भी मिला.
गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान (Gandhigram Rural Institute) के प्रो. रविचंद्रन बताते हैं कि गांधी ने संकल्प लिया था कि वे तब तक साधारण पोशाक पहनते रहेंगे जब तक भारत से गरीबी खत्म नहीं हो जाती और सभी भारतीयों को सम्मानजनक जीवन स्तर नहीं मिल जाता. हमें गर्व है कि गांधी जी में जो बदलाव हुए वे यहां हुए.
धोती या लंगोटी पहने गांधी जिस स्थान पर पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आए उसे आझ गांधी पोट्टल (Gandhi Pottal) कहा जाता है. मदुरै में जिस स्थान पर गांधी जी सबसे पहले धोती पहने सामने आए थे, वहां उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है. आज यह जगह मदुरै के कामरजार रोड पर अलंकार थिएटर (Alankar Theatre on Kamarajar Road, Madurai) के सामने है.
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गांधी स्टैच्यू कमेटी (Gandhi Statue Committee) के आयोजक राजा ने मदुरै से जुड़ी महात्मा गांधी की यादों के बारे में बताया कि यही वह स्थान है जहां गांधी ने पहली बार अपने नए अवतार में आम लोगों से संवाद किया था. इसकी याद में हम विस्तृत योजना के साथ जन्म शताब्दी वर्ष मनाने की तैयारी कर रहे हैं.
माना जाता है कि महात्मा गांधी के व्यक्तित्व में बदलाव के बाद ऐसा लगा जैसे आजादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के मन और दिमाग में ज्वाला भड़क उठी. ये आगे चलकर ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार के रूप में सामने आया जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम (Indian independence struggle) में एक मील का पत्थर है.