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काबुल ब्लास्ट अमेरिका और तालिबान दोनों की नाकामी का नतीजा - आत्मघाती हमलावर

काबुल एयरपोर्ट पर गुरुवार को हुए धमाके न सिर्फ अमेरिका की असफलता है बल्कि तालिबान के उन नेताओं की भी नाकामी है जो बड़े-बड़े दावे कर रहे थे. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

काबुल ब्लास्ट
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Published : Aug 27, 2021, 5:27 PM IST

Updated : Aug 27, 2021, 5:41 PM IST

नई दिल्ली : अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (Kabul Airport) के पास खतरे को लेकर बराबर अलर्ट जारी किया जा रहा था. लोगों से वहां से हटने और दूर जाने की सलाह दी जा रही थी लेकिन गुरुवार को संदिग्ध इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान (ISIS-K) के आत्मघाती हमलावर भीड़ में घुस गए जबकि वहां अमेरिकी सैनिक तैनात थे. धमाके में 13 अमेरिकी सैनिकों सहित करीब 103 लोग मारे गए हैं.

काबुल हवाईअड्डे से लोगों को निकालने के लिए बड़े पैमाने पर कोशिशें जारी हैं. कई देश 31 अगस्त की समय सीमा का पालन करने के लिए लोगों को बाहर निकालने के लिए तेजी ला रहे हैं. हजारों लोग अफगानिस्तान में तालिबान शासन से बचने की कोशिश कर रहे हैं, वह हवाईअड्डे के अंदर और बाहर इंतजार कर रहे हैं.

अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, नीदरलैंड, जर्मनी की सरकारों समेत तालिबान के भी एक अधिकारी ने चेतावनी जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि काबुल हवाईअड्डा फ्लैशपॉइंट था और यहां तक ​​कि हवाई अड्डे पर तालिबान गार्ड भी अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे. इस्लामिक स्टेट से संबद्ध ISIS (K) से उन्हें खतरा है.

विस्फोट से पहले, यूएस ने भी जारी किया था अलर्ट
काबुल में अमेरिकी दूतावास ने अलर्ट जारी किया था कि जिसके तहत अमेरिकी नागरिकों को अबै गेट, ईस्ट गेट या नॉर्थ गेट पर तुरंत छोड़ने के लिए निर्देश दिया गया था. अलर्ट में कहा गया था कि ये इलाके असुरक्षित हैं. इस हमले ने कई स्तरों पर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. दो धमाके अबै गेट (Abbey gate) और बैरन होटल के प्रवेश द्वार (Baron hotel entrance) पर हुए. इन बिंदुओं तक पहुंचने के लिए तालिबान द्वारा संचालित कम से कम दो चौकियों को पार करना पड़ता है.

हवाई अड्डे के पास 6,000 अमेरिकी सैनिक मौजूद
एयरपोर्ट के बाहर के क्षेत्र में 'रेड यूनिट' या 'बद्री 313' के लड़ाकों की सुरक्षा में है, जिन्हें तालिबान की विशेष ताकत के रूप में जाना जाता है. जबकि अमेरिकी सेना का 10वां माउंटेन डिवीजन हवाईअड्डे के आसपास की सुरक्षा करता है, वहीं यूएस 82वां एयरबोर्न डिवीजन रनवे की सुरक्षा के लिए है. यही नहीं 24वीं मरीन एक्सपेडिशनरी यूनिट नागरिक के जाने में सहायता कर रही है. हवाईअड्डे और उसके आसपास कुल मिलाकर 6,000 अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं.

ISIS-K का एक स्व-घोषित विलायत प्रांत है, जो इराक और सीरिया (आईएसआईएस) में इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण में है. आईएसके संगठन सबसे कट्टर संगठनों में से है. हाल के दिनों में इस आतंकी संगठन ने अपनी पहचान के लिए कई लोगों को एक साथ फांसी देकर उनका वीडियो वायरल किया था.

अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान (ISIS-K) संगठन 10 जनवरी, 2015 को बनाया गया था. इसने विशेष रूप से अशांत पूर्वोत्तर,अफगानिस्तान पड़ोसी देश पाकिस्तान में काफी तेजी से विस्तार किया. इसके गढ़ कुछ हद तक नंगरहार, कुनार और काबुल में भी हैं.

इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान ने भारत और पाकिस्तान तक अपनी पैठ बनाने के मकसद से 10 मई, 2019 और 15 मई, 2019 को क्रमशः 'विलायत अल-हिंद' और 'विलायत पाकिस्तान' की स्थापना की.

पढ़ें- अमेरिका लोगों की निकासी प्रक्रिया अगस्त के अंत तक पूरा करे, नहीं बढ़ेगी समयसीमा: तालिबान

ISIS की ऑनलाइन पत्रिका 'दाबिक' के 12वें और 14वें अंक में दक्षिण एशिया पर व्यापक रूप से ध्यान केंद्रित किया गया था. 14वें अंक में बंगाल शेख अबू इब्राहिम अल हनीफ में अपने 'अमीर' (Emir) का एक व्यापक साक्षात्कार किया, जिसमें उसने भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में कहर बरपाने की धमकी दी. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के एक प्रमुख धड़े तहरीक-ए-खलीफात पाकिस्तान (टीकेपी) के लगभग 2,000 जिहादियों ने आईएसके के प्रति निष्ठा जताई है.

पढ़ें- काबुल हमले में 13 US सैनिकों समेत 103 की मौत, ISIS के खुरासान ग्रुप ने ली जिम्मेदारी, भारत ने कड़ी निंदा की

नई दिल्ली : अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (Kabul Airport) के पास खतरे को लेकर बराबर अलर्ट जारी किया जा रहा था. लोगों से वहां से हटने और दूर जाने की सलाह दी जा रही थी लेकिन गुरुवार को संदिग्ध इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान (ISIS-K) के आत्मघाती हमलावर भीड़ में घुस गए जबकि वहां अमेरिकी सैनिक तैनात थे. धमाके में 13 अमेरिकी सैनिकों सहित करीब 103 लोग मारे गए हैं.

काबुल हवाईअड्डे से लोगों को निकालने के लिए बड़े पैमाने पर कोशिशें जारी हैं. कई देश 31 अगस्त की समय सीमा का पालन करने के लिए लोगों को बाहर निकालने के लिए तेजी ला रहे हैं. हजारों लोग अफगानिस्तान में तालिबान शासन से बचने की कोशिश कर रहे हैं, वह हवाईअड्डे के अंदर और बाहर इंतजार कर रहे हैं.

अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, नीदरलैंड, जर्मनी की सरकारों समेत तालिबान के भी एक अधिकारी ने चेतावनी जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि काबुल हवाईअड्डा फ्लैशपॉइंट था और यहां तक ​​कि हवाई अड्डे पर तालिबान गार्ड भी अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे. इस्लामिक स्टेट से संबद्ध ISIS (K) से उन्हें खतरा है.

विस्फोट से पहले, यूएस ने भी जारी किया था अलर्ट
काबुल में अमेरिकी दूतावास ने अलर्ट जारी किया था कि जिसके तहत अमेरिकी नागरिकों को अबै गेट, ईस्ट गेट या नॉर्थ गेट पर तुरंत छोड़ने के लिए निर्देश दिया गया था. अलर्ट में कहा गया था कि ये इलाके असुरक्षित हैं. इस हमले ने कई स्तरों पर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. दो धमाके अबै गेट (Abbey gate) और बैरन होटल के प्रवेश द्वार (Baron hotel entrance) पर हुए. इन बिंदुओं तक पहुंचने के लिए तालिबान द्वारा संचालित कम से कम दो चौकियों को पार करना पड़ता है.

हवाई अड्डे के पास 6,000 अमेरिकी सैनिक मौजूद
एयरपोर्ट के बाहर के क्षेत्र में 'रेड यूनिट' या 'बद्री 313' के लड़ाकों की सुरक्षा में है, जिन्हें तालिबान की विशेष ताकत के रूप में जाना जाता है. जबकि अमेरिकी सेना का 10वां माउंटेन डिवीजन हवाईअड्डे के आसपास की सुरक्षा करता है, वहीं यूएस 82वां एयरबोर्न डिवीजन रनवे की सुरक्षा के लिए है. यही नहीं 24वीं मरीन एक्सपेडिशनरी यूनिट नागरिक के जाने में सहायता कर रही है. हवाईअड्डे और उसके आसपास कुल मिलाकर 6,000 अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं.

ISIS-K का एक स्व-घोषित विलायत प्रांत है, जो इराक और सीरिया (आईएसआईएस) में इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण में है. आईएसके संगठन सबसे कट्टर संगठनों में से है. हाल के दिनों में इस आतंकी संगठन ने अपनी पहचान के लिए कई लोगों को एक साथ फांसी देकर उनका वीडियो वायरल किया था.

अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान (ISIS-K) संगठन 10 जनवरी, 2015 को बनाया गया था. इसने विशेष रूप से अशांत पूर्वोत्तर,अफगानिस्तान पड़ोसी देश पाकिस्तान में काफी तेजी से विस्तार किया. इसके गढ़ कुछ हद तक नंगरहार, कुनार और काबुल में भी हैं.

इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान ने भारत और पाकिस्तान तक अपनी पैठ बनाने के मकसद से 10 मई, 2019 और 15 मई, 2019 को क्रमशः 'विलायत अल-हिंद' और 'विलायत पाकिस्तान' की स्थापना की.

पढ़ें- अमेरिका लोगों की निकासी प्रक्रिया अगस्त के अंत तक पूरा करे, नहीं बढ़ेगी समयसीमा: तालिबान

ISIS की ऑनलाइन पत्रिका 'दाबिक' के 12वें और 14वें अंक में दक्षिण एशिया पर व्यापक रूप से ध्यान केंद्रित किया गया था. 14वें अंक में बंगाल शेख अबू इब्राहिम अल हनीफ में अपने 'अमीर' (Emir) का एक व्यापक साक्षात्कार किया, जिसमें उसने भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में कहर बरपाने की धमकी दी. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के एक प्रमुख धड़े तहरीक-ए-खलीफात पाकिस्तान (टीकेपी) के लगभग 2,000 जिहादियों ने आईएसके के प्रति निष्ठा जताई है.

पढ़ें- काबुल हमले में 13 US सैनिकों समेत 103 की मौत, ISIS के खुरासान ग्रुप ने ली जिम्मेदारी, भारत ने कड़ी निंदा की

Last Updated : Aug 27, 2021, 5:41 PM IST
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