नई दिल्ली : भारत और चीन की सेनाओं (Indian and Chinese troops) ने गुरुवार को एक बड़े घटनाक्रम में घोषणा की है कि उन्होंने पूर्वी लद्दाख में गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स से पीछे हटना शुरू कर दिया है जिससे पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी)-15 क्षेत्र (Gogra-Hotsprings aka Patrol Point 15) में दो साल से अधिक समय से चला आ रहा गतिरोध खत्म हो जाएगा. इस सफलता से भारत को पूर्वी लद्दाख में लगभग 130 वर्ग किमी घाटी तक पहुंच मिल जाएगी.
दोनों सेनाओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि पीछे हटने की प्रक्रिया की शुरुआत जुलाई में हुई 16वें दौर की उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता का परिणाम है. बयान में कहा गया, 'भारत-चीन के बीच 16वें दौर की कोर कमांडर स्तर की बैठक में बनी सहमति के अनुसार, आठ सितंबर 2022 को गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स (पीपी-15) क्षेत्र से भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित एवं नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है जो सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता के लिए अच्छा है.'16वें दौर की वार्ता 17 जुलाई 2022 को हुई थी.
द्विपक्षीय सफलता का दिया संकेत : यदि पीपी 15 का मुद्दा सुलझ जाता है तो केवल संवेदनशील देपसांग और डेमचोक क्षेत्र ही बचेंगे जिनका हल निकाला जाना बाकी है. लेकिन बड़ा अंतर यह है कि देपसांग और डेमचोक पूर्ववर्ती मुद्दे हैं. पीपी -15 की परेशानी 2020 के बाद शुरू हुई जब पीएलए ने कुग्रांग नदी घाटी में लगभग 2-4 किमी नीचे 'प्रवेश' किया था, जिससे भारतीय गश्त को पीपी 15 और पीपी 16 तक प्रभावी ढंग से रोक दिया गया था. चीनी 'प्रवेश' के परिणामस्वरूप घाटी के लगभग 130 वर्ग किमी में भारतीय पहुंच को अवरुद्ध कर दिया गया है.
नतीजतन दोनों पक्षों के सैनिकों ने पीपी -15 पर एक टकराववादी मोड में एक-दूसरे का सामना करना जारी रखा था जो कि चेंग चेन्मो घाटी के सामान्य क्षेत्र में स्थित है जिसे त्सोग त्सालु क्षेत्र भी कहा जाता है. विवादित हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा भी इसी हिस्से में स्थित हैं.
भारत और चीन के सशस्त्र बलों के बीच मई, 2020 से पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं. भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख विवाद में जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए अब तक कई दौर की सैन्य एवं राजनयिक वार्ता की है. दोनों पक्षों के बीच राजनयिक और सैन्य वार्ता के परिणामस्वरूप कुछ इलाकों से सैनिकों को पीछे हटाने का काम भी हुआ है. अभी दोनों देशों के एलएसी पर संवेदनशील सेक्टर में करीब 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं.
उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन से लगभग एक सप्ताह पहले सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया की घोषणा की गई है. सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग शामिल होंगे. ऐसी अटकलें हैं कि दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक हो सकती है. हालांकि, ऐसी संभावना को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है.
निश्चिचत तौर पर ये घटनाक्रम तनाव कम होने का संकेत है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब विश्व व्यवस्था में बदलाव हो रहा है क्योंकि अमेरिका के नेतृत्व वाले ब्लॉक और उभरती रूस-चीन धुरी दोनों एक संघर्ष में लगे हुए हैं. 24 फरवरी को शुरू हुए यूक्रेन-रूस संघर्ष के बाद काफी स्थितियां बदल गई हैं. जाहिर तौर पर भारत-चीन के इस कदम से रणनीतिक दृष्टिकोण से दो एशियाई पड़ोसियों के बीच तनाव कम होगा. भारत हमेशा दृढ़ रहा है कि सीमा मुद्दा आंतरिक रूप से द्विपक्षीय संबंधों और एक सामान्य संबंध से जुड़ा हुआ है. यह तभी संभव है जब सीमा विवाद सुलझ जाए. हालिया घटनाक्रम भारतीय स्थिति की स्वीकृति की ओर इशारा करता है.
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