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छठ महापर्व का 'पहला अर्घ्य' कल , यहां जानें सूर्यास्त का समय

चार दिवसीय महापर्व छठ (Chhath Puja 2021) के दौरान कल सूर्य देवता को पहला अर्घ्‍य दिया जाना है. अस्‍ताचलगामी सूर्य की आराधना की सभी तैयारी हो चुकी है. संध्याकालीन अर्घ्य देने का क्या महत्व है पढ़िए..

पहला अर्घ्य
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Published : Nov 9, 2021, 7:24 PM IST

पटना : अस्ताचलगामी सूर्य को कल पहला अर्घ्य (First Arghya Of Chhath Puja) दिया जाना है. छठ महापर्व (Chhath Puja 2021 In Bihar) में संध्याकालीन अर्घ्य की विशेष महत्ता है. माना जाता है कि सूर्य षष्ठी यानी कि छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसलिए संध्या अर्घ्य देने से प्रत्यूषा को अर्घ्य प्राप्त होता है.

मान्यताओं के अनुसार प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से इसका लाभ भी अधिक मिलता है. मान्यता यह है कि संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन, वैभव की प्राप्ति होती है. शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है इसलिए इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है. इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है.

10 नवंबर को सूर्योदय का समय 6 बजकर 3 मिनट है. वहीं सूर्यास्त का समय 5 बजकर 3 मिनट है. जबकि 11 नवंबर को सूर्योदय का समय 6 बजकर 17 मिनट है. वहीं 5 बजकर 3 मिनट पर सूर्यास्त होगा.

संध्या को अर्घ्य देने के लिए छठव्रती पूरे परिवार के साथ घाटों की ओर रवाना होते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते व्रती दंडवत करते जाते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले रास्ते भर उन्हें जमीन पर लेटकर व्रती प्रणाम करते हैं. दंडवत करने के दौरान आस पास मौजूद लोग छठव्रती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं, ताकि उन्हें भी पूण्य की प्राप्ति हो सके.

संध्या अर्घ्य देने के लिए शाम के समय सूप और बांस की टोकरी को ठेकुआ, चावल के लड्डू और फलों से सजाया जाता है. पूजा के सूप को व्रती बेहतर से बेहतर तरीके से सजाते हैं. लोटे (कलश) में जल एवं दूध भरकर इसी से सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही सूप की सामग्री के साथ भक्त छठी मईया की भी पूजा अर्चना करते हैं. रात में छठी माई के भजन गाये जाते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है.

यह भी पढ़ें- छठ पूजा में सबसे पवित्र परंपरा है 'कोसी भराई', जानिए 'कोसी सेवना' का महत्व और विधि

इस दिन कुछ खास नियमों का पालन करने से व्रती को इसका लाभ मिलता है. सूर्य षष्ठी के दिन सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान करके हल्के लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. एक तांबे की प्लेट में गुड़ और गेहूं रखकर अपने घर के मंदिर में रखने से भी पूरे परिवार को इसका लाभ मिलता है. माना जाता है कि लाल आसन पर बैठकर तांबे के दीये में घी का दीपक जलाने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. भगवान सूर्य नारायण के सूर्याष्टक का 3 या 5 बार पाठ करना फलदायी होता है.

बता दें कि चार दिवसीय महापर्व छठ 8 नवंबर 2021 सोमवार को नहाय खाय के साथ ही शुरू हो चुका है. आज 9 नवंबर के दिन खरना है. 10 नंवबर बुधवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देने की सभी तैयारियां हो चुकी हैं. वहीं 11 नवंबर गुरुवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाता है.

पटना : अस्ताचलगामी सूर्य को कल पहला अर्घ्य (First Arghya Of Chhath Puja) दिया जाना है. छठ महापर्व (Chhath Puja 2021 In Bihar) में संध्याकालीन अर्घ्य की विशेष महत्ता है. माना जाता है कि सूर्य षष्ठी यानी कि छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसलिए संध्या अर्घ्य देने से प्रत्यूषा को अर्घ्य प्राप्त होता है.

मान्यताओं के अनुसार प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से इसका लाभ भी अधिक मिलता है. मान्यता यह है कि संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन, वैभव की प्राप्ति होती है. शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है इसलिए इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है. इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है.

10 नवंबर को सूर्योदय का समय 6 बजकर 3 मिनट है. वहीं सूर्यास्त का समय 5 बजकर 3 मिनट है. जबकि 11 नवंबर को सूर्योदय का समय 6 बजकर 17 मिनट है. वहीं 5 बजकर 3 मिनट पर सूर्यास्त होगा.

संध्या को अर्घ्य देने के लिए छठव्रती पूरे परिवार के साथ घाटों की ओर रवाना होते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते व्रती दंडवत करते जाते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले रास्ते भर उन्हें जमीन पर लेटकर व्रती प्रणाम करते हैं. दंडवत करने के दौरान आस पास मौजूद लोग छठव्रती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं, ताकि उन्हें भी पूण्य की प्राप्ति हो सके.

संध्या अर्घ्य देने के लिए शाम के समय सूप और बांस की टोकरी को ठेकुआ, चावल के लड्डू और फलों से सजाया जाता है. पूजा के सूप को व्रती बेहतर से बेहतर तरीके से सजाते हैं. लोटे (कलश) में जल एवं दूध भरकर इसी से सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही सूप की सामग्री के साथ भक्त छठी मईया की भी पूजा अर्चना करते हैं. रात में छठी माई के भजन गाये जाते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है.

यह भी पढ़ें- छठ पूजा में सबसे पवित्र परंपरा है 'कोसी भराई', जानिए 'कोसी सेवना' का महत्व और विधि

इस दिन कुछ खास नियमों का पालन करने से व्रती को इसका लाभ मिलता है. सूर्य षष्ठी के दिन सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान करके हल्के लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. एक तांबे की प्लेट में गुड़ और गेहूं रखकर अपने घर के मंदिर में रखने से भी पूरे परिवार को इसका लाभ मिलता है. माना जाता है कि लाल आसन पर बैठकर तांबे के दीये में घी का दीपक जलाने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. भगवान सूर्य नारायण के सूर्याष्टक का 3 या 5 बार पाठ करना फलदायी होता है.

बता दें कि चार दिवसीय महापर्व छठ 8 नवंबर 2021 सोमवार को नहाय खाय के साथ ही शुरू हो चुका है. आज 9 नवंबर के दिन खरना है. 10 नंवबर बुधवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देने की सभी तैयारियां हो चुकी हैं. वहीं 11 नवंबर गुरुवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाता है.

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