नई दिल्लीः असत्य पर सत्य की जीत का त्योहार दशहरा आज बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है. आज के दिन अस्त्र-शस्त्र का पूजन और रावण दहन की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास बताते हैं कि रावण के पुतले को जलाकर हर इंसान अपने अहंकार और क्रोध का नाश करता है. इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है.
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि दशहरे के दिन नीलकंठ भगवान के दर्शन करना अति शुभ माना जाता है. इस दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं, तो सारे बिगड़े काम बन जाते हैं. नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है. दशहरे पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन होने से पैसों और संपत्ति में बढ़ोतरी होती है.
अनीष व्यास बताते हैं कि रावण ज्योतिष का प्रकांड विद्वान था. उन्होंने अपने पुत्र को अजेय बनाने के लिए नवग्रहों को आदेश दिया था कि वह उनके पुत्र मेघनाद की कुंडली में सही तरह से बैठें. शनि महाराज ने बात नहीं मानी, तो बंदी बना लिया. रावण के दरबार में सारे देवता और दिग्पाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे. हनुमान जी जब लंका पहुंचे, तो इन्हें रावण के बंधन से मुक्त करवाया. रावण की अशोक वाटिका में एक लाख से अधिक अशोक के पेड़ के अलावा दिव्य पुष्प और फलों के वृक्ष थे. यहीं से हनुमान जी आम लेकर भारत आए थे. रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था.
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ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि विजयदशमी पर पान खाने, खिलाने तथा हनुमानजी पर पान अर्पित करके उनका आशीर्वाद लेने का महत्त्व है. पान मान-सम्मान, प्रेम एवं विजय का सूचक माना जाता है. इसलिए विजयादशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद दहन के पश्चात पान का बीणा खाना सत्य की जीत की ख़ुशी को व्यक्त करता है. वहीं, शारदीय नवरात्रि के बाद मौसम में बदलाव के कारण संक्रामक रोग फैलने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पान का सेवन पाचन क्रिया को मज़बूत कर संक्रामक रोगों से बचाता है.
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शास्त्रों के अनुसार, दशहरे के दिन शस्त्र पूजन करने की परंपरा सदियों पुरानी है. आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का किया जाता है. भारत की रियासतों में शस्त्र पूजन धूमधाम से मनाया जाता था. अब रियासतें तो नहीं रहीं, लेकिन परंपराएं शाश्वत हैं. यही कारण है कि इस दिन आत्मरक्षार्थ रखे जाने वाले शस्त्रों की भी पूजा की जाती है. हथियारों की साफ-सफाई की जाती है और उनका पूजन होता है. सबसे पहले शस्त्रों के ऊपर जल छिड़क कर पवित्र किया जाता है फिर महाकाली स्तोत्र का पाठ कर शस्त्रों पर कुंकुम, हल्दी का तिलक लगाकर हार व पुष्पों से श्रृंगार कर धूप-दीप कर मीठा भोग लगाया जाता है.
दशहरा का शुभ मुहूर्त
दशमी तिथि प्रारंभ - 14 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 52 मिनट से
दशमी तिथि समाप्त - 15 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 2 मिनट पर
श्रवण नक्षत्र प्रारंभ - 14 अक्टूबर 2021 सुबह 9 बजकर 36 से
श्रवण नक्षत्र समाप्त - 15 अक्टूबर 2021 सुबह 9 बजकर 16 पर
15 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन दोपहर 2 बजकर 1 मिनट से 2 बजकर 47 मिनट तक विजय मुहूर्त है. इस मुहूर्त की कुल अवधि 46 मिनट की है. दोपहर के समय पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 15 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 33 मिनट तक है.