नई दिल्ली: हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चार राज्य जीतकर भले ही पार्टी को बढ़त दिलाई हो लेकिन आगामी जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव केंद्र की सत्ता पार्टी के लिए आसान नहीं हो सकते हैं. इसका कारण 2017 की तुलना में चार राज्यों में भाजपा के सांसदों की कम संख्या और कई क्षेत्रीय दलों द्वारा इसका विरोध करना माना जा रहा है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल में संसद सदस्य (राज्य सभा और लोकसभा दोनों) और राज्यों में विधान सभाओं के सदस्य होते हैं. सांसदों की कुल संख्या 776 (राज्य सभा 233 और लोकसभा 543) है और प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 708 है.
लोकसभा में एनडीए के पास बीजेपी के 301 और सहयोगी जेडी-यू के 16 सांसदों के साथ बहुमत है. कांग्रेस के पास 53, टीएमसी के 22, डीएमके के 24, शिवसेना के 19, एनसीपी के 5, वाईएसआरसीपी के 22 और टीआरएस के 9 सदस्य हैं. राज्यसभा में, भाजपा 97 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि जद-यू के पास 4 हैं. कांग्रेस के पास 33, टीएमसी 13, डीएमके 10, सीपीएम 6, एनसीपी 4, राजद 5, एसपी 5, शिवसेना 3, टीआरएस के 6 और वाईएसआरसीपी 6 सदस्य हैं. इसके अलावा, अगले कुछ महीनों में 70 से अधिक राज्यसभा सीटें खाली हो जाएंगी, जिनमें उत्तर प्रदेश में 11 और उत्तराखंड में एक सीट शामिल है, जहां भाजपा को बढ़त हासिल होगी. हालांकि, पंजाब में सत्तारूढ़ AAP के छह जीतने की उम्मीद है, जिससे संसद के ऊपरी सदन में आप की संख्या तीन से बढ़कर 9 हो जाएगी.
विधायकों के मामले में, देश भर में कुल 4,120, उनके वोट का मूल्य 1971 की जनगणना के अनुसार गणना की गई. जनसंख्या के आधार पर एक राज्य से दूसरे राज्य में विधायकों के वोट का मूल्य बदलता रहता है. इस साल जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए, उनमें से एनडीए की सीटें 2017 में 323/403 से घटकर 2022 में 273 हो गईं। यूपी में बीजेपी के 312 विधायक थे, जबकि उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के पास 11 विधायक थे. 2022 में बीजेपी के 255 विधायकों और सहयोगी अपना दल (एस) और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल को छह-छह विधायक मिले.
यूपी में एनडीए की सीटों के बीच का अंतर लगभग 50 सीटों का है और महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल में एक विधायक के वोट का मूल्य सबसे अधिक 208 है. इसका मतलब है कि उच्च-दांव वाले चुनाव के लिए 10,400 वोटों की कमी. इसी तरह, उत्तराखंड में, भाजपा की संख्या 56 से घटकर 47 हो गई अर्थात 9 सीटों के नुकसान हुआ. उत्तराखंड में एक विधायक के वोट का मूल्य 64 है, इसलिए राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा को 576 वोटों की कमी से जूझना पड़ रहा है. गोवा में, एनडीए की पुरानी सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के साथ भगवा पार्टी को बाहर से समर्थन देने वाली दो सीटों के साथ 28 से 20 हो गई. एक विधायक के वोट के मूल्य को 20 के रूप में देखते हुए 160 वोटों की कमी आती है. मणिपुर में एनडीए 36 विधायकों से घटकर 32 हो गया. इसका मतलब राष्ट्रपति चुनाव के लिए 72 वोटों की कमी है. पंजाब में बीजेपी ने 2017 में मिली दो सीटों की गिनती बरकरार रखी है.
राज्यों में विरोध
भाजपा को महाराष्ट्र में शिवसेना, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रमुक, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति और दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी से प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है. टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही भाजपा को चुनौती देते हुए कहा कि भगवा पार्टी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकती क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए उसके पास 50 प्रतिशत से कम वोट थे. इसलिए, भाजपा प्रबंधकों को राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत हासिल करने के लिए आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी और ओडिशा में बीजद जैसे सहयोगियों पर निर्भर रहना पडे़गा. राष्ट्रपति चुनाव का विजेता वह व्यक्ति नहीं होता जिसे सबसे अधिक वोट मिलते हैं, बल्कि वह व्यक्ति होता है जिसे एक निश्चित कोटे से अधिक वोट मिलते हैं, जो कुल वैध मतों के योग को 2 से विभाजित करके और भागफल में एक जोड़कर निकाला जाता है.
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार राम नाथ कोविंद, जो 2017 में बिहार के राज्यपाल थे, ने भारत के राष्ट्रपति बनने के लिए विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को लगभग दो तिहाई मतों से हराया था. उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू का नाम 2022 के चुनाव के लिए एनडीए के उम्मीदवार के रूप में चल रहा है और भाजपा राष्ट्रपति कोविंद को दूसरा मौका भी दे सकती है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व द्वारा इस मामले में अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है. साल 2017 में कांग्रेस, ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की उम्मीदवार बनाया था, चुनावी हार की श्रृंखला के बाद कमजोर हो गई है और उसे DMK, TRS, AAP और TMC जैसे क्षेत्रीय दलों के विचारों से सहमत होना पड़ेगा.
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