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Congress president election : गैर-गांधी बनेंगे अध्यक्ष, कितना रह जाएगा सोनिया-राहुल का असर ? - gehlot out of race congress

अब यह तय हो चुका है कि कांग्रेस को 24 साल बाद जो अध्यक्ष मिलेगा, वह गांधी परिवार का नहीं होगा. यह भी तय हो चुका है कि अशोक गहलोत रेस में शामिल नहीं हैं. यानी दिग्विजय सिंह और शशि थरूर के बीच मुकाबला लगभग तय है. तो क्या यह माना जाए कि कांग्रेस पर गांधी परिवार का असर कम हो जाएगा ? क्या राहुल और सोनिया का प्रभाव पहले की तरह बरकरार नहीं रहेगा ? पढ़िए ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता अमित अग्निहोत्री की एक रिपोर्ट.

sonia , rahul
सोनिया गांधी, राहुल गांधी
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Published : Sep 29, 2022, 7:34 PM IST

नई दिल्ली : 24 साल बाद कांग्रेस को ऐसा अध्यक्ष मिलने जा रहा है, जो गांधी परिवार से नहीं होगा. हालांकि, इसके बावजूद सोनिया और राहुल का प्रभाव पहले की तरह ही बरकरार रहेगा, इसमें किसी को कोई शक नहीं है. पार्टी महासचिव जेपी अग्रवाल कहते हैं, 'आप नेहरू-गांधी परिवार को कांग्रेस से अलग नहीं कर सकते हैं. उन्होंने पार्टी के लिए इतना कुछ किया है. यहां तक कि अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी. पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता नेतृत्व के लिए गांधी परिवार की ओर देखता है और आगे भी उनकी उम्मीदें उन पर ही टिकी होंगी.'

उन्होंने आगे कहा, 'मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आज भी 99.99 प्रतिशत कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनते हुए देखना चाहते हैं. हालांकि, वर्तमान परिस्थिति में जो भी चुना जाता है, वही अगला अध्यक्ष होगा.'

अभी तक की जो जानकारी सामने आ रही है, उसके अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष के लिए दिग्विजय सिंह और शशि थरूर के बीच कॉन्टेस्ट होगा. आज ही दिग्विजय सिंह ने शशि थरूर से मुलाकात भी की है. अशोक गहलोत ने आज सोनिया गांधी से मुलाकात की और उसके बाद उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का ऐलान कर दिया. रविवार को राजस्थान में गहलोत के समर्थक विधायकों ने एक तरीके से विद्रोह कर दिया था. तभी से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व काफी आहत है.

अब थरूर और सिंह, दोनों ही शुक्रवार को नामांकन दाखिल करेंगे. 17 अक्टूबर को चुनाव होगा और 19 अक्टूबर को परिणाम आएगा. जेपी अग्रवाल ने कहा, 'सोनिया का पार्टी के प्रति समर्पण सचमुच अद्भुत है. उन्होंने 2004 में अपने करिश्माई नेतृत्व से पार्टी को सत्ता दिलाई. उसके बाद 2009 में फिर से पार्टी की सत्ता बरकरार रखी. एक समय में 15 राज्यों में हमारी सरकारें थीं.'

उन्होंने आगे कहा कि 2014 में हार के बावजूद सोनिया ने कांग्रेस की अगुआई की और पार्टी को एकजुट रखा. अग्रवाल ने कहा, '2014 के बाद पार्टी का नेतृत्व करना आसान नहीं था. लेकिन वह भाजपा के खिलाफ डंटी रहीं. वह केंद्र सरकार के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ी रहीं. अब राहुल वही भूमिका निभा रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के जरिए वह पूरे देश को जोड़ रहे हैं.'

पार्टी महासचिव ने कहा कि गांधी परिवार का पार्टी पर प्रभाव लगातार बना रहेगा. वे नए अध्यक्ष के साथ सहयोग भी करेंगे. उन्हें पूरा सम्मान देंगे. यही नहीं, उन्हें खुलकर काम करने की आजादी भी होगी. अग्रवाल ने कहा, 'मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि गांधी परिवार पार्टी के नए अध्यक्ष को पूरा सम्मान देगा और वह व्यक्ति स्वतंत्र होकर काम भी करेगा.'

आपको बता दें कि पिछली बार 1997 में सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष बने थे, जो गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते थे. उन्होंने शरद पवार और राजेश पायलट को हराया था. हालांकि, केसरी का नेतृत्व पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रेरित नहीं कर सका. पार्टी गुटों में विभाजित हो गई. तब दिग्विजय सिंह और अशोक गहलोत जैसे नेताओं ने सोनिया को नेतृत्व करने की अपील की थी. इसके बाद सोनिया 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनीं. 2000 में उन्होंने जितेंद्र प्रसाद को हराया था. उसके बाद से वह पार्टी के लिए लगातार काम कर रहीं हैं. 2004 में उनके नेतृत्व में पार्टी सत्ता में लौटी. वाजपेयी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा.

सोनिया ने मनमोहन सिंह का नाम आगे कर अपने खिलाफ चलाए जा रहे (विदेशी मूल के) मुद्दों की धार को कुंद कर दी. सोनिया-मनमोहन की जोड़ी 2009 में फिर से हिट रही. लेकिन 2014 में यूपीए सत्ता से बाहर हो गया. 2017 में सोनिया की जगह राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व सौंपा गया था. 2019 में लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद नैतिकता के आधार पर राहुल ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था. तभी से राहुल अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने से इनकार करते रहे हैं. वह बार-बार कहते रहे हैं कि किसी भी 'गैर गांधी' को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए.

पार्टी के वरिष्ठ नेता शकील अहमद, पूर्व केंद्रीय मंत्री, ने कहा कि कांग्रेस के लिए गांधी परिवार विचारधारा है और हमेशा उनका स्थान विशेष ही बना रहेगा. उन्होंने कहा कि देखिए राहुल गांधी ने अपने विवेकानुसार पार्टी के टॉप पद से दूर रहने का फैसला किया है. हम सबको इस निर्णय का सम्मान करना चाहिए. पार्टी को गांधी परिवार से हटकर अध्यक्ष मिलने जा रहा है. लेकिन गांधी परिवार की विचारधारा हमेशा हमारे लिए दिशा निर्देशित करता रहेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि नए अध्यक्ष दैनिक मैटर को देखते रहेंगे, लेकिन नीतिगत मुद्दों पर वे गांधी परिवार से ही प्रेरणा लेंगे. उन्होंने कहा, 'गांधी परिवार के पास मुद्दों पर व्यापक नजरिया है. यूपीए के दौरान, जब तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह सरकार चला रहे थे, आरटीआई अधिनियम, मनरेगा, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे ऐतिहासिक कानून, सभी यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा राहुल गांधी की सक्रिय भागीदारी के साथ डिजाइन किए गए थे.'

सोनिया गांधी ने जिस तरह से तत्कालीन सत्तारूढ़ एनडीए के खिलाफ लोगों को लामबंद किया और कांग्रेस को सत्ता में वापस लाया, वह अभी भी पार्टी नेताओं के लिए एक गाइड बुक है. उन्होंने कहा कि हम विपक्ष में थे और वैसे ही संघर्ष कर रहे थे जैसे हम अभी कर रहे हैं. तब सोनिया ने हमारा नेतृत्व किया और कांग्रेस को सत्ता में लाया. आज राहुल राष्ट्रव्यापी यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं और 2024 में भाजपा को हरा देंगे.

ये भी पढ़ें : कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लडूंगा, सोनिया गांधी से माफी मांग ली है: अशोक गहलोत

नई दिल्ली : 24 साल बाद कांग्रेस को ऐसा अध्यक्ष मिलने जा रहा है, जो गांधी परिवार से नहीं होगा. हालांकि, इसके बावजूद सोनिया और राहुल का प्रभाव पहले की तरह ही बरकरार रहेगा, इसमें किसी को कोई शक नहीं है. पार्टी महासचिव जेपी अग्रवाल कहते हैं, 'आप नेहरू-गांधी परिवार को कांग्रेस से अलग नहीं कर सकते हैं. उन्होंने पार्टी के लिए इतना कुछ किया है. यहां तक कि अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी. पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता नेतृत्व के लिए गांधी परिवार की ओर देखता है और आगे भी उनकी उम्मीदें उन पर ही टिकी होंगी.'

उन्होंने आगे कहा, 'मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आज भी 99.99 प्रतिशत कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनते हुए देखना चाहते हैं. हालांकि, वर्तमान परिस्थिति में जो भी चुना जाता है, वही अगला अध्यक्ष होगा.'

अभी तक की जो जानकारी सामने आ रही है, उसके अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष के लिए दिग्विजय सिंह और शशि थरूर के बीच कॉन्टेस्ट होगा. आज ही दिग्विजय सिंह ने शशि थरूर से मुलाकात भी की है. अशोक गहलोत ने आज सोनिया गांधी से मुलाकात की और उसके बाद उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का ऐलान कर दिया. रविवार को राजस्थान में गहलोत के समर्थक विधायकों ने एक तरीके से विद्रोह कर दिया था. तभी से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व काफी आहत है.

अब थरूर और सिंह, दोनों ही शुक्रवार को नामांकन दाखिल करेंगे. 17 अक्टूबर को चुनाव होगा और 19 अक्टूबर को परिणाम आएगा. जेपी अग्रवाल ने कहा, 'सोनिया का पार्टी के प्रति समर्पण सचमुच अद्भुत है. उन्होंने 2004 में अपने करिश्माई नेतृत्व से पार्टी को सत्ता दिलाई. उसके बाद 2009 में फिर से पार्टी की सत्ता बरकरार रखी. एक समय में 15 राज्यों में हमारी सरकारें थीं.'

उन्होंने आगे कहा कि 2014 में हार के बावजूद सोनिया ने कांग्रेस की अगुआई की और पार्टी को एकजुट रखा. अग्रवाल ने कहा, '2014 के बाद पार्टी का नेतृत्व करना आसान नहीं था. लेकिन वह भाजपा के खिलाफ डंटी रहीं. वह केंद्र सरकार के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ी रहीं. अब राहुल वही भूमिका निभा रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के जरिए वह पूरे देश को जोड़ रहे हैं.'

पार्टी महासचिव ने कहा कि गांधी परिवार का पार्टी पर प्रभाव लगातार बना रहेगा. वे नए अध्यक्ष के साथ सहयोग भी करेंगे. उन्हें पूरा सम्मान देंगे. यही नहीं, उन्हें खुलकर काम करने की आजादी भी होगी. अग्रवाल ने कहा, 'मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि गांधी परिवार पार्टी के नए अध्यक्ष को पूरा सम्मान देगा और वह व्यक्ति स्वतंत्र होकर काम भी करेगा.'

आपको बता दें कि पिछली बार 1997 में सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष बने थे, जो गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते थे. उन्होंने शरद पवार और राजेश पायलट को हराया था. हालांकि, केसरी का नेतृत्व पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रेरित नहीं कर सका. पार्टी गुटों में विभाजित हो गई. तब दिग्विजय सिंह और अशोक गहलोत जैसे नेताओं ने सोनिया को नेतृत्व करने की अपील की थी. इसके बाद सोनिया 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनीं. 2000 में उन्होंने जितेंद्र प्रसाद को हराया था. उसके बाद से वह पार्टी के लिए लगातार काम कर रहीं हैं. 2004 में उनके नेतृत्व में पार्टी सत्ता में लौटी. वाजपेयी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा.

सोनिया ने मनमोहन सिंह का नाम आगे कर अपने खिलाफ चलाए जा रहे (विदेशी मूल के) मुद्दों की धार को कुंद कर दी. सोनिया-मनमोहन की जोड़ी 2009 में फिर से हिट रही. लेकिन 2014 में यूपीए सत्ता से बाहर हो गया. 2017 में सोनिया की जगह राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व सौंपा गया था. 2019 में लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद नैतिकता के आधार पर राहुल ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था. तभी से राहुल अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने से इनकार करते रहे हैं. वह बार-बार कहते रहे हैं कि किसी भी 'गैर गांधी' को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए.

पार्टी के वरिष्ठ नेता शकील अहमद, पूर्व केंद्रीय मंत्री, ने कहा कि कांग्रेस के लिए गांधी परिवार विचारधारा है और हमेशा उनका स्थान विशेष ही बना रहेगा. उन्होंने कहा कि देखिए राहुल गांधी ने अपने विवेकानुसार पार्टी के टॉप पद से दूर रहने का फैसला किया है. हम सबको इस निर्णय का सम्मान करना चाहिए. पार्टी को गांधी परिवार से हटकर अध्यक्ष मिलने जा रहा है. लेकिन गांधी परिवार की विचारधारा हमेशा हमारे लिए दिशा निर्देशित करता रहेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि नए अध्यक्ष दैनिक मैटर को देखते रहेंगे, लेकिन नीतिगत मुद्दों पर वे गांधी परिवार से ही प्रेरणा लेंगे. उन्होंने कहा, 'गांधी परिवार के पास मुद्दों पर व्यापक नजरिया है. यूपीए के दौरान, जब तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह सरकार चला रहे थे, आरटीआई अधिनियम, मनरेगा, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे ऐतिहासिक कानून, सभी यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा राहुल गांधी की सक्रिय भागीदारी के साथ डिजाइन किए गए थे.'

सोनिया गांधी ने जिस तरह से तत्कालीन सत्तारूढ़ एनडीए के खिलाफ लोगों को लामबंद किया और कांग्रेस को सत्ता में वापस लाया, वह अभी भी पार्टी नेताओं के लिए एक गाइड बुक है. उन्होंने कहा कि हम विपक्ष में थे और वैसे ही संघर्ष कर रहे थे जैसे हम अभी कर रहे हैं. तब सोनिया ने हमारा नेतृत्व किया और कांग्रेस को सत्ता में लाया. आज राहुल राष्ट्रव्यापी यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं और 2024 में भाजपा को हरा देंगे.

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