नई दिल्ली : पत्रकार प्रिया रमानी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एम जे अकबर द्वारा उनके खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि की शिकायत में बरी किए जाने का अनुरोध किया है. रमानी ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप उनका सच है.
'मी टू' मुहिम के दौरान रमानी ने 2018 में अकबर पर करीब 20 साल पहले यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जब वह पत्रकार थे.
अकबर ने 17 अक्टूबर 2018 को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.
अकबर द्वारा दायर की गई शिकायत के मामले में रमानी की दलीलें शनिवार को पूरी हो गईं. रमानी ने अपने वकील के जरिए अदालत को बताया कि लंबे समय से व्यवस्थागत गलतियों को सुधारने के लिए 'मी टू' मुहिम की शुरुआत हुई थी.
उन्होंने कहा 'मी टू' मुहिम ने दुनिया भर की हजारों महिलाओं को आगे आकर अपनी बात रखने और यौन उत्पीड़न की अपनी कहानियों को बताने का मंच दिया. व्यवस्थागत गलतियों को सुधारने के लिए 'मी टू' मुहिम की शुरुआत हुई.
रमानी की ओर से पेश अधिवक्ता रेबेका जॉन ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विशाल पाहूजा को बताया, 'लोकतंत्र में वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण और स्वाभाविक है. 'मी टू' मुहिम में हजारों महिलाओं ने हिस्सेदारी की. मैंने (रमानी) अपना मामला साबित किया और बरी होने की हकदार हूं.
वकील ने कहा कि रमानी ने अकबर के खिलाफ जो कहा वह 'उनका सच है और उन्होंने लोगों के हित में कहा.'
रमानी ने पहले क्यों नहीं अपनी आवाज उठायी, शिकायतकर्ता की इस दलील पर जॉन ने कहा कि जब घटना हुई थी उस समय चुप रहने का दस्तूर था.
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उन्होंने कहा वह नहीं बोल पायीं क्योंकि उस समय चुप रह जाने का रिवाज था. गजाला वहाब (पत्रकार और मामले में गवाह, उन्होंने भी अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था) ने भी कहा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए कोई तंत्र नहीं था.
उन्होंने कहा विशाखा दिशानिर्देश (कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए) 1993 में नहीं आया था. दिशानिर्देश लागू होने के बाद भी न्यायपालिका और मीडिया को इसे लागू करने में लंबा समय लगा.
अदालत मामले पर 13 अक्टूबर को सुनवाई करेगी.
अकबर ने अदालत को बताया था कि रमानी ने उनको बदनाम किया और उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई.
भाजपा नेता अकबर ने अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के सभी आरोपों से इनकार किया था.