नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 और 35 ए को रद्द कर दिया था. इसी कड़ी में जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के रूप में विभाजित कर दिया गया था. केंद्र सरकार के इस फैसले को एक वर्ष होने को है. मोदी सरकार का यह ऐतिहासिक फैसला, एक ओर आशा और आंकक्षा का दृष्टिकोण है तो दूसरी ओर खामोशी का भाव पसरा हुआ है.
पिछले साल पांच अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 को रद्द करने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि इन वर्गों के चलते जम्मू और कश्मीर में लोकतंत्र को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया था, राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ गया था, कोई भी विकास नहीं हो सकता था. साथ ही उन्होंने कहा था कि यह कदम सीमा पार आतंकवाद के लगातार खतरे को देखते हुए उठाया गया है.
अनुच्छेद 370 और 35A को रद्द हुए एक साल होने को है. यह उन वादों के याद दिलाते हैं, जो संसद में किए गए थे.
वस्तुतः भाजपा ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के रद्द करने के अपने इरादे को कभी भी खारिज नहीं किया. भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए अनुच्छेद 370 को रद्द करना भाजपा का हमेशा से चुनावी वादा था.
हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि भाजपा 370 और 35A को रद्द करके अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करना चाहती है.
ईटीवी भारत को दिए साक्षात्कार में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सांसद फैयाज अहमद मीर ने कहा कि पिछले एक साल में जम्मू-कश्मीर में कोई विकास नहीं हुआ है. यहां की स्थिति भी सामान्य नहीं हुई है. दूसरी तरफ पिछले एक साल में विश्वास की कमी और भविष्य के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा हुई है.
फैयाज अहमद ने कहा, 'हमने केवल एक ही विकास का अवलोकन किया है. इस दौरान केवल राज्यपाल के स्थान पर उप राज्यपाल की नियुक्ति हुई है.
सीपीएम के वरिष्ठ नेता यूसुफ तारिगामी ने इस मामले को लेकर ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णय से जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है.
उन्होंने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ था, उस वक्त जम्मू-कश्मीर का विलय हो गया था और विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था, लेकिन भाजपा सरकार ने हितधारकों से सलाह लिए बिना सिर्फ एकतरफा निर्णय लिया ताकि विकास के नाम पर अराजकता पैदा हो सके.
दिलचस्प यह है कि 370 और 35A रद्द हुए एक साल होने वाला है. इस समय कोरोना महामारी के चलते घाटी में जीवन सामान्य है.
यहां पर इंटरनेट की बहाली होनी बाकी है. विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद कई राजनीतिक दलों के नेताओं को नजरबंद रखा गया था. इनमें से कुछ नेताओं को रिहा कर दिया गया है कुछ को किया जाना बाकी है. इस साल मार्च में नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला जैसे कुछ नेताओं को कुछ शर्तों पर रिहा किया गया था.
भाजपा सरकार के इस तरह के फैसले की आलोचना कई लोगों ने भी की, जिसमें भाजपा की पूर्व सहयोगी पार्टी शिवसेना भी शामिल है.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का उल्लेख करते हुए शिवसेना के मुखपत्र सामना ने कहा कि सड़कों पर खून बह रहा है और निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं.
शिवसेना ने कहा कि नोटबंदी करने, अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने से सुरक्षा स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.
अनुच्छेद 370 को निरस्त करना निश्चित रूप से समस्या का हल नहीं है. अधिवास, परिसीमन और जनसांख्यिकी जैसे मुद्दे के बाद के घटनाक्रम भी विवादों में सबसे आगे हैं.
अनुच्छेद 35A को बदलने के लिए केंद्र द्वारा जारी किए गए नए अधिवास नियम को आलोचनाओं का समाना करना पड़ा. लोगों ने इस तथ्य के बाद चिंता जताई है कि जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियां अब स्थानीय लोगों तक ही सीमित नहीं रहेंगी.
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हालांकि केंद्र सरकार के इस निर्णय की कई लोगों ने प्रशंसा भी की . सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह ने कहा कि यह एक लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय था.
सिंह का मानना है कि सरकार को इस क्षेत्र का विकास करने के लिए जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा देना चाहिए.
पूर्व बीएसएफ प्रमुख ने यह भी माना कि कानून और व्यवस्था की स्थिति और मौजूदा महामारी के कारण घाटी में विकास अब तक तक नहीं हुआ है.
सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को रद्द करने के निर्णय ने जम्मू-कश्मीर की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ला कर खड़ा कर दिया.
सिंह ने कहा, 'किसी को भी भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.'