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कांग्रेस में नेतृत्व के मुद्दे पर सात घंटे बहस के बाद यथास्थिति - अमित अग्निहोत्री

सीडब्ल्यूसी की बैठक आभासी ढंग से (वर्चुअली) हुई. वास्तव में दिन में ज्यादातर समय जो हुआ उसके बारे में कांग्रेस के प्रबंधकों ने कभी नहीं चाहा होगा. कांग्रेस के विद्रोहियों के लिए सबसे खुशी की बात यह थी कि सीडब्ल्यूसी पूरी तरह से बंटी हुई दिखी जो दो पीढ़ी के नेताओं के बीच समन्वय का आधार ढूंढने के लिए संघर्ष करती दिखी.

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कांग्रेस में नेतृत्व के मुद्दे पर सात घंटे बहस के बाद यथास्थिति
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Published : Aug 25, 2020, 7:03 AM IST

नई दिल्ली: कांग्रेस नेतृत्व के मुद्दे समेत जिन चुनौतियों का सामना कर रही है उनके समाधान के लिए बहु-प्रचारित विचार-विमर्श सत्र यथास्थिति बनाए रखने पर सहमति देने के बाद समाप्त हो गया. सोनिया गांधी तब तक कांग्रेस की अंतरिम प्रमुख बनी रहेंगी जब तक उनके बेटे राहुल गांधी एक बार फिर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र से चुनावी प्रक्रिया के जरिए पार्टी की विरासत संभालने को तैयार नहीं हो जाते. यह सत्र कब आयोजित होगा इसकी अभी कोई तिथि तय नहीं है.

इस तरह हो जाने के बाद किसी को कोई मुद्दा नहीं रहेगा, लेकिन वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में सात घंटे क्यों लगा दिए, जबकि ये सब कांग्रेस कार्यसमिति का हिस्सा हैं और इस समिति के पास सारे अधिकार हैं. यह नियमानुसार समिति के शासकीय आदेश से भी हो सकता था.

सीडब्ल्यूसी की बैठक आभासी ढंग से (वर्चुअली) हुई. वास्तव में दिन में ज्यादातर समय जो हुआ उसके बारे में कांग्रेस के प्रबंधकों ने कभी नहीं चाहा होगा. कांग्रेस के विद्रोहियों के लिए सबसे खुशी की बात यह थी कि सीडब्ल्यूसी पूरी तरह से बंटी हुई दिखी जो दो पीढ़ी के नेताओं के बीच समन्वय का आधार ढूंढने के लिए संघर्ष करती दिखी. साथ ही बीजेपी के हाथों सत्ता गंवाने के छह साल बाद भी अपने आप को राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने के लिए योजना पर विचार करती नजर आई.

प्रत्यक्ष रूप से सीडब्ल्यूसी की बैठक कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा जुलाई में सोनिया गांधी को एक पत्र लिखने के बाद उसका जवाब देने के लिए हुई. उस पत्र में सोनिया गांधी का ध्यान पार्टी के एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और पूरी तरह से पार्टी के संगठनात्मक सुधार की जरूरत की ओर ध्यान देने की बात लिखी गई थी. किसी विरोधी दल के लिए सोनिया गांधी से की गईं दोनों ही मांगें सही लगती हैं. सोनिया गांधी को स्वास्थ्य की समस्या है और 10 अगस्त को ही उन्होंने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के रूप में एक साल पूरा कर लिया है. पार्टी को सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला करने के लिए निश्चित रूप से एक पूर्णकालीन अध्यक्ष की जरूरत है.

सीडब्ल्यूसी की बैठक में विचार-विमर्श वास्तव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और राहुल गांधी के वफादारों के बीच शक्ति प्रदर्शन का खेल बन गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अपनी स्थिति को बताने के लिए संघर्ष करते दिखे. राहुल गांधी की कथित टिप्पणी, जिसमें असंतुष्टों की मंशा पर सवाल उठाते हुए यह आरोप लगाना कि वे भाजपा का खेल खेल रहे थे, मीडिया में आया जिससे कांग्रेस की छवि गलत रूप में पेश हुई.

पार्टी की ओर से तत्काल इस तरह की टिप्पणी से इनकार किया गया लेकिन कांग्रेस के लिए आज राहत की बात सिर्फ यह रही कि राहुल गांधी ने नुकसान को कम करने की गरज से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के साथ फोन पर बात की. सिब्बल ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में भाग नहीं लिया, वह राहुल गांधी की टिप्पणियों से जुड़ी मीडिया की उन खबरों से कुपित थे. सिब्बल ने जल्दी ही एक ट्वीट करके अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया. उसके तुरंत बाद कांग्रेस के एक और रसूखदार नेता गुलाम नबी आजाद ने भी ट्वीट कर स्पष्ट किया किया कि यदि उनका बीजेपी से साथ संबंध साबित हो जाए तो वह पार्टी छोड़ देंगे. आजाद और सिब्बल दोनों के सोनिया गांधी को नाराजगी भरे लिखे पत्र पर हस्ताक्षर हैं. इन दोनों के जवाब ने कांग्रेस के प्रबंधकों के लिए आशा की किरण दिखी क्योंकि इससे यह दिखा कि गांधी परिवार में अब भी करिश्मा है, जो परेशान सहयोगियों को झकझोर सकता है और गोंद के रूप में काम कर पार्टी को एकजुट रख सकता है.

सोनिया गांधी ने बैठक के समापन के अवसर पर अपनी टिप्पणी में कहा कि पार्टी के अपने सहयोगियों की टिप्पणी से हो सकता है कि वह भी आहत हुई हों और हो सकता है कि उनके साथ विचारों में अंतर हो लेकिन अंत में सभी एक साथ हैं. सोनिया गांधी जैसा चाहती थी उसी तरह से संकल्प पत्र तैयार हुआ और सभी लोगों ने उस पर हस्ताक्षर किया. सीडब्ल्यूसी की बैठक के दौरान असंतुष्टों ने खुद को पीठ में छुरा भोंकने वाले के रूप में कलंकित होने से बचाने का प्रयास किया और बताया कि उनका इरादा सोनिया के अधिकार को चुनौती देने का नहीं था वे केवल पार्टी की ओर से सामना की जा रही चुनौतियों के तत्काल समाधान और सभी स्तरों पर सुधार की जरूरत से अवगत कराना चाहते थे. उन सभी ने हमेशा की तरह सोनिया को जरूरत पड़ने पर पार्टी में किसी भी तरह का बदलाव करने का अधिकार दिया.

राहुल गांधी के समर्थकों के लिए दिन इस तरह से अच्छा रहा कि बहुत सारे सदस्यों ने मांग की कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए. इन सबकी सामूहिक मांग के स्वर में गैर गांधी पार्टी प्रमुख की मांग वाली कमजोर आवाज घुटकर रह गई.

सोनिया गांधी के पुराने वफादार अहमद पटेल ने राहुल गांधी से सोनिया गांधी का स्थान लेने का आग्रह किया लेकिन यह बदलाव बाद के दिनों के लिए छोड़ दिया गया. उम्मीद की जा रही है कि जब राहुल गांधी आंतरिक चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से कांग्रेस प्रमुख बनेंगे तो यह काम पारिवारिक अंदाज में ही पूरा होगा. इस पद के लिए वह एक मात्र उम्मीदवार हैं. राहुल वर्ष 2017 के दिसंबर में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे लेकिन राष्ट्रीय चुनाव का परिणाम आने के बाद वर्ष 2019 के मई में इस्तीफा दे दिया था.

नेतृत्व के मुद्दे पर उड़ती धूल फिलहाल के लिए शांत हो गई लगती है लेकिन कांग्रेस के लिए 23 'असंतुष्टों' की ओर से नेक इरादे से व्यक्त की गई चिंताओं की उपेक्षा करना मुश्किल होगा.

इसमें चुनौती भी है क्योंकि पार्टी ने हालिया नेतृत्व संकट बताने को गांधीवाद के खिलाफ एक और प्रचार के रूप में पेश किया और एक प्रकार का गला घोटने वाले आदेश जारी करते हुए पार्टी नेताओं से जनता में आंतरिक मुद्दों को नहीं उठाने के लिए कहा, जबकि ये नेक नीयती के साथ नेतृत्व से सिर्फ अपने असंतोष को जाहिर कर थे.

(लेखक- अमित अग्निहोत्री)

नई दिल्ली: कांग्रेस नेतृत्व के मुद्दे समेत जिन चुनौतियों का सामना कर रही है उनके समाधान के लिए बहु-प्रचारित विचार-विमर्श सत्र यथास्थिति बनाए रखने पर सहमति देने के बाद समाप्त हो गया. सोनिया गांधी तब तक कांग्रेस की अंतरिम प्रमुख बनी रहेंगी जब तक उनके बेटे राहुल गांधी एक बार फिर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र से चुनावी प्रक्रिया के जरिए पार्टी की विरासत संभालने को तैयार नहीं हो जाते. यह सत्र कब आयोजित होगा इसकी अभी कोई तिथि तय नहीं है.

इस तरह हो जाने के बाद किसी को कोई मुद्दा नहीं रहेगा, लेकिन वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में सात घंटे क्यों लगा दिए, जबकि ये सब कांग्रेस कार्यसमिति का हिस्सा हैं और इस समिति के पास सारे अधिकार हैं. यह नियमानुसार समिति के शासकीय आदेश से भी हो सकता था.

सीडब्ल्यूसी की बैठक आभासी ढंग से (वर्चुअली) हुई. वास्तव में दिन में ज्यादातर समय जो हुआ उसके बारे में कांग्रेस के प्रबंधकों ने कभी नहीं चाहा होगा. कांग्रेस के विद्रोहियों के लिए सबसे खुशी की बात यह थी कि सीडब्ल्यूसी पूरी तरह से बंटी हुई दिखी जो दो पीढ़ी के नेताओं के बीच समन्वय का आधार ढूंढने के लिए संघर्ष करती दिखी. साथ ही बीजेपी के हाथों सत्ता गंवाने के छह साल बाद भी अपने आप को राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने के लिए योजना पर विचार करती नजर आई.

प्रत्यक्ष रूप से सीडब्ल्यूसी की बैठक कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा जुलाई में सोनिया गांधी को एक पत्र लिखने के बाद उसका जवाब देने के लिए हुई. उस पत्र में सोनिया गांधी का ध्यान पार्टी के एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और पूरी तरह से पार्टी के संगठनात्मक सुधार की जरूरत की ओर ध्यान देने की बात लिखी गई थी. किसी विरोधी दल के लिए सोनिया गांधी से की गईं दोनों ही मांगें सही लगती हैं. सोनिया गांधी को स्वास्थ्य की समस्या है और 10 अगस्त को ही उन्होंने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के रूप में एक साल पूरा कर लिया है. पार्टी को सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला करने के लिए निश्चित रूप से एक पूर्णकालीन अध्यक्ष की जरूरत है.

सीडब्ल्यूसी की बैठक में विचार-विमर्श वास्तव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और राहुल गांधी के वफादारों के बीच शक्ति प्रदर्शन का खेल बन गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अपनी स्थिति को बताने के लिए संघर्ष करते दिखे. राहुल गांधी की कथित टिप्पणी, जिसमें असंतुष्टों की मंशा पर सवाल उठाते हुए यह आरोप लगाना कि वे भाजपा का खेल खेल रहे थे, मीडिया में आया जिससे कांग्रेस की छवि गलत रूप में पेश हुई.

पार्टी की ओर से तत्काल इस तरह की टिप्पणी से इनकार किया गया लेकिन कांग्रेस के लिए आज राहत की बात सिर्फ यह रही कि राहुल गांधी ने नुकसान को कम करने की गरज से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के साथ फोन पर बात की. सिब्बल ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में भाग नहीं लिया, वह राहुल गांधी की टिप्पणियों से जुड़ी मीडिया की उन खबरों से कुपित थे. सिब्बल ने जल्दी ही एक ट्वीट करके अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया. उसके तुरंत बाद कांग्रेस के एक और रसूखदार नेता गुलाम नबी आजाद ने भी ट्वीट कर स्पष्ट किया किया कि यदि उनका बीजेपी से साथ संबंध साबित हो जाए तो वह पार्टी छोड़ देंगे. आजाद और सिब्बल दोनों के सोनिया गांधी को नाराजगी भरे लिखे पत्र पर हस्ताक्षर हैं. इन दोनों के जवाब ने कांग्रेस के प्रबंधकों के लिए आशा की किरण दिखी क्योंकि इससे यह दिखा कि गांधी परिवार में अब भी करिश्मा है, जो परेशान सहयोगियों को झकझोर सकता है और गोंद के रूप में काम कर पार्टी को एकजुट रख सकता है.

सोनिया गांधी ने बैठक के समापन के अवसर पर अपनी टिप्पणी में कहा कि पार्टी के अपने सहयोगियों की टिप्पणी से हो सकता है कि वह भी आहत हुई हों और हो सकता है कि उनके साथ विचारों में अंतर हो लेकिन अंत में सभी एक साथ हैं. सोनिया गांधी जैसा चाहती थी उसी तरह से संकल्प पत्र तैयार हुआ और सभी लोगों ने उस पर हस्ताक्षर किया. सीडब्ल्यूसी की बैठक के दौरान असंतुष्टों ने खुद को पीठ में छुरा भोंकने वाले के रूप में कलंकित होने से बचाने का प्रयास किया और बताया कि उनका इरादा सोनिया के अधिकार को चुनौती देने का नहीं था वे केवल पार्टी की ओर से सामना की जा रही चुनौतियों के तत्काल समाधान और सभी स्तरों पर सुधार की जरूरत से अवगत कराना चाहते थे. उन सभी ने हमेशा की तरह सोनिया को जरूरत पड़ने पर पार्टी में किसी भी तरह का बदलाव करने का अधिकार दिया.

राहुल गांधी के समर्थकों के लिए दिन इस तरह से अच्छा रहा कि बहुत सारे सदस्यों ने मांग की कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए. इन सबकी सामूहिक मांग के स्वर में गैर गांधी पार्टी प्रमुख की मांग वाली कमजोर आवाज घुटकर रह गई.

सोनिया गांधी के पुराने वफादार अहमद पटेल ने राहुल गांधी से सोनिया गांधी का स्थान लेने का आग्रह किया लेकिन यह बदलाव बाद के दिनों के लिए छोड़ दिया गया. उम्मीद की जा रही है कि जब राहुल गांधी आंतरिक चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से कांग्रेस प्रमुख बनेंगे तो यह काम पारिवारिक अंदाज में ही पूरा होगा. इस पद के लिए वह एक मात्र उम्मीदवार हैं. राहुल वर्ष 2017 के दिसंबर में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे लेकिन राष्ट्रीय चुनाव का परिणाम आने के बाद वर्ष 2019 के मई में इस्तीफा दे दिया था.

नेतृत्व के मुद्दे पर उड़ती धूल फिलहाल के लिए शांत हो गई लगती है लेकिन कांग्रेस के लिए 23 'असंतुष्टों' की ओर से नेक इरादे से व्यक्त की गई चिंताओं की उपेक्षा करना मुश्किल होगा.

इसमें चुनौती भी है क्योंकि पार्टी ने हालिया नेतृत्व संकट बताने को गांधीवाद के खिलाफ एक और प्रचार के रूप में पेश किया और एक प्रकार का गला घोटने वाले आदेश जारी करते हुए पार्टी नेताओं से जनता में आंतरिक मुद्दों को नहीं उठाने के लिए कहा, जबकि ये नेक नीयती के साथ नेतृत्व से सिर्फ अपने असंतोष को जाहिर कर थे.

(लेखक- अमित अग्निहोत्री)

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