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सही रिकवरी के लिए जरूरी है प्रसव के उपरांत मां की विशेष देखभाल, करें ये काम

प्रसव चाहे सिजेरियन हो या सामान्य, डिलीवरी के बाद महिलाओं को प्रसव के उपरांत तथा पोस्टपार्टम पीरियड में होने वाली तमाम शारीरिक व मानसिक तकलीफों व थकान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए नई मां का किस प्रकार से ध्यान रखा जाए, इस बारे में वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय लक्ष्मी ने कुछ उपाय बताए हैं. आइए जानते हैं..

How to take special care of woman after delivery
प्रसव के बाद कैसे रखें महिला का विशेष ध्यान
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Published : Jun 12, 2022, 10:34 PM IST

महिलाओं को प्रसव के उपरांत तथा पोस्टपार्टम पीरियड में होने वाली तमाम शारीरिक व मानसिक तकलीफों व थकान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में सही रिकवरी और इन समस्याओं के प्रभाव को कम करने के लिए बहुत जरूरी है कि नई मां का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए.

प्रसव उपरांत मां की विशेष देखभाल जरूरी
डिलीवरी चाहे सिजेरियन हो या सामान्य, बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है. जानकार मानते हैं कि यदि डिलीवरी के बाद माता का शरीर सही तरीके से रिकवर नहीं हो पाता है तो भविष्य में कई अन्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है. दरअसल गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म और उसके बाद पोस्टपार्टम अवधि के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के मानसिक व शारीरिक बदलाव होते हैं, जिनका असर उनके संपूर्ण स्वास्थ्य पर पड़ता है.

उत्तराखंड की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय लक्ष्मी बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद का समय किसी भी महिला के लिए बहुत जटिल होता है. प्रसव के बाद का समय जिसे पोस्टनेटल समय भी कहा जाता है, के दौरान महिला के शरीर में कई प्रकार के शारीरिक व भावनात्मक बदलाव होते हैं, जिसका प्रत्यक्ष तथा कभी-कभी अप्रत्यक्ष असर उनकी सेहत पर पड़ता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि इस समय ना सिर्फ महिलाओं के शारीरिक बल्कि उनके मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य का भी विशेष तौर पर ध्यान रखा जाए.

जरूरी है आराम
डॉ. विजय लक्ष्मी बताती हैं कि प्रसव चाहे सिजेरियन हो या फिर नॉर्मल, महिला के लिए उसके उपरांत आराम करना बहुत जरूरी होता है. हालांकि दोनों परिस्थितियों में बरती जाने वाली सावधानियाँ अलग-अलग हो सकती है. लेकिन उनके आहार व आराम का ध्यान रखना दोनों ही परिस्थितियों में जरूरी होता है. वह बताती हैं कि सामान्य प्रसव की प्रक्रिया महिला के लिए काफी दर्दभरी होती है. लेकिन इसके बाद भी यदि योनि में टांके लगे हो तो उनमें होने वाला दर्द, गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म के बाद तक शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, आराम व नींद की कमी तथा थकान जैसे कारण महिलाओं के लिए लंबे समय तक परेशानी का सबब बने रह सकते हैं.

वहीं सिजेरियन प्रसव के उपरांत महिलाओं को इनसे इतर कुछ अलग तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे सर्जरी के कारण होने वाला दर्द, कमजोरी, विशेष तौर पर उठने-बैठने व चलने में समस्या आदि. दोनों ही अवस्थाओं में शारीरिक परेशानियों के अलावा बच्चे की जिम्मेदारी जैसे उसे दूध पिलाना, उसकी साफ-सफाई तथा देखभाल करना तथा उसे सुलाना आदि नई माओं को पूरी तरह से थका देती हैं, जिसका असर उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी पर पड़ता है.

वह बताती हैं कि इन परिस्थितियों में नई मां को आराम देने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जा सकता है.

  • बच्चे की सारी जिम्मेदारियां नई मां पर डालने की बजाय उसकी साफ-सफाई व देखभाल से जुड़ी कुछ जिम्मेदारियां परिवार के अन्य सदस्य जैसे पिता, दादी, नानी तथा घर के अन्य सदस्य आपस में साझा कर सकते हैं.
  • बच्चे के जन्म के बाद माता का रूटीन बहुत हद तक बच्चे की दिनचर्या पर निर्भर हो जाता है. कई बार माता को लगता है कि वह बच्चे के सोने के बाद अपना बचा हुआ कार्य पूरा कर लेगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. ऐसे में मां की नींद काफी ज्यादा प्रभावित होती है. इसलिए जब भी शिशु सोए तो माता को भी चाहिए कि भले ही कुछ देर के लिए ही सही वह भी सो जाए जिससे उसकी नींद पूरी हो सके.
  • यदि संभव हो तो दिन में एक बार अपने कमरे से बाहर खुले माहौल में जरूर निकले जिससे माता को ताजा हवा और सूरज की रोशनी मिलती रहे. इससे शरीर को तो फायदा मिलता ही है साथ ही मन भी शांत व प्रसन्न होता है.
  • यदि संभव हो तो शिशु को अपने पास ही लेकिन एक अलग बिस्तर पर सुलाएं. इससे माएं आराम से सो पाएंगी और बच्चा भी उनके पास ही रहेगा.

आहार का रखें ध्यान
सिर्फ गर्भावस्था के दौरान ही नहीं बल्कि बच्चे के जन्म से लेकर पूरी पोस्टपार्टम अवधि के दौरान माता के आहार का काफी ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. विशेषतौर पर प्रसव के उपरांत महिला को जरूरी मात्रा में ऐसा संतुलित और स्वस्थ आहार दिया जाना बहुत जरूरी होता है, जिसमें अनाज, दालें, फल-सब्जियां, नट्स, सीड्स और डेयरी उत्पाद भरपूर मात्रा में हो. इससे उनके शरीर को सभी जरूरी मिनरल्स, विटामिंस, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा फाइबर आदि पोषक तत्व मिलता रहेगा. यह पोषण सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि बच्चे के शरीर को भी फायदा पहुंचाता है. साथ ही साथ, उनके शरीर को जल्दी रिकवर करने में मदद करता है. इसके अलावा बहुत जरूरी है कि महिला के शरीर में पानी की कमी ना हो.

प्रसव के उपरांत होने वाली आम समस्याएं तथा उनके निवारण के उपाय

  • डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि सामान्य डिलीवरी के दौरान कई बार महिला को योनि में टांके लगाए जाते हैं. ऐसे में कुछ समय तक उक्त स्थान पर दर्द व असहजता बनी रह सकती है. इसके लिए आमतौर पर चिकित्सक घाव पर किसी दर्द निवारक क्रीम या स्प्रे का इस्तेमाल करने, घाव पर बर्फ से सिकाई करने या फिर सुविधानुसार गर्म या ठंडे पानी के टब में बैठने की सलाह देते हैं. जिससे उन्हे दर्द में राहत मिल सकती है.
  • प्रसव के बाद कई बार महिलाओं को कब्ज की समस्या हो जाती है. ऐसा होने पर उनके टांकों पर भी जोर पड़ सकता है. ऐसे में उन्हें ज्यादा फाइबर युक्त आहार खाना की सलाह दी जाती है. वहीं समस्या यदि ज्यादा हो तो उन्हे किसी लैक्सेटिव के सेवन की सलाह भी दी जाती है.
  • सिजेरियन के उपरांत रिकवर होने में महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा समय लगता है. ऐसे में ऑपरेशन के दौरान लगे टांको में दर्द के अलावा उनमें अन्य समस्या होने का खतरा ज्यादा होता है. इसलिए चिकित्सक उन्हें सुखाने के लिए तथा दर्द में कमी के लिए महिलाओं को दर्द निवारक दवाइयां तथा टांकों को सूखाने के लिए दवाइयां देते हैं. इस अवस्था में महिलाओं को ज्यादा आराम करने तथा शिशु को उठाने के अलावा कुछ समय तक कोई भी भारी समान ना उठाने की सलाह दी जाती है.
  • दोनों प्रकार के प्रसव में कई बार महिलाओं को बच्चे को स्तनपान कराने के दौरान भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है. जैसे यदि बच्चा कम मात्रा में दूध पीता है और माता के स्तनों में दूध एकत्रित होने लगता है तो स्तनों में गाँठे पड़ सकती हैं. इससे उनमें सूजन आ सकती है या फिर वह कठोर भी हो सकते हैं. यह स्तिथि कई बार काफी दर्दनाक भी हो सकती है. ऐसी अवस्था में ब्रेस्ट पंप की मदद से या स्तन दबाकर उनमें एकत्रित दूध को बाहर निकाल देना चाहिए.
  • डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं बच्चे के जन्म के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों तथा आराम, नींद की कमी व थकान के कारण महिलाओं में तनाव सहित कई भावनात्मक व व्यावहारिक समस्याओं पनपने लगती हैं जैसे गुस्सा, चिड़चिड़ापन, उदासी, रोने का मन करना, निराशा आदि. इस अवस्था को बेबी ब्लूज़ नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में यदि संभव हो तो घर के बड़े लोग विशेष तौर पर महिलाएं उन्हें प्रोत्साहित कर सकती है तथा अच्छी सलाह दे सकती है. वहीं जरूरत पड़ने पर चिकित्सीय सलाह या काउंसलिंग लेना भी फायदेमंद हो सकता है.

डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि बहुत जरूरी है कि नियमित अंतराल पर बच्चे के साथ नई माँ के स्वास्थ्य की भी जांच करवाई जाती रहे. जिससे इस बात का पता चलता रहे की उनकी रिकवरी सही तरीके से हो रही है या नही.

यह भी पढ़ें-पहली बार गर्मी का सामना कर रहे शिशुओं की देखभाल में बरतें ज्यादा सावधानियां

महिलाओं को प्रसव के उपरांत तथा पोस्टपार्टम पीरियड में होने वाली तमाम शारीरिक व मानसिक तकलीफों व थकान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में सही रिकवरी और इन समस्याओं के प्रभाव को कम करने के लिए बहुत जरूरी है कि नई मां का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए.

प्रसव उपरांत मां की विशेष देखभाल जरूरी
डिलीवरी चाहे सिजेरियन हो या सामान्य, बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है. जानकार मानते हैं कि यदि डिलीवरी के बाद माता का शरीर सही तरीके से रिकवर नहीं हो पाता है तो भविष्य में कई अन्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है. दरअसल गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म और उसके बाद पोस्टपार्टम अवधि के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के मानसिक व शारीरिक बदलाव होते हैं, जिनका असर उनके संपूर्ण स्वास्थ्य पर पड़ता है.

उत्तराखंड की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय लक्ष्मी बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद का समय किसी भी महिला के लिए बहुत जटिल होता है. प्रसव के बाद का समय जिसे पोस्टनेटल समय भी कहा जाता है, के दौरान महिला के शरीर में कई प्रकार के शारीरिक व भावनात्मक बदलाव होते हैं, जिसका प्रत्यक्ष तथा कभी-कभी अप्रत्यक्ष असर उनकी सेहत पर पड़ता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि इस समय ना सिर्फ महिलाओं के शारीरिक बल्कि उनके मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य का भी विशेष तौर पर ध्यान रखा जाए.

जरूरी है आराम
डॉ. विजय लक्ष्मी बताती हैं कि प्रसव चाहे सिजेरियन हो या फिर नॉर्मल, महिला के लिए उसके उपरांत आराम करना बहुत जरूरी होता है. हालांकि दोनों परिस्थितियों में बरती जाने वाली सावधानियाँ अलग-अलग हो सकती है. लेकिन उनके आहार व आराम का ध्यान रखना दोनों ही परिस्थितियों में जरूरी होता है. वह बताती हैं कि सामान्य प्रसव की प्रक्रिया महिला के लिए काफी दर्दभरी होती है. लेकिन इसके बाद भी यदि योनि में टांके लगे हो तो उनमें होने वाला दर्द, गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म के बाद तक शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, आराम व नींद की कमी तथा थकान जैसे कारण महिलाओं के लिए लंबे समय तक परेशानी का सबब बने रह सकते हैं.

वहीं सिजेरियन प्रसव के उपरांत महिलाओं को इनसे इतर कुछ अलग तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे सर्जरी के कारण होने वाला दर्द, कमजोरी, विशेष तौर पर उठने-बैठने व चलने में समस्या आदि. दोनों ही अवस्थाओं में शारीरिक परेशानियों के अलावा बच्चे की जिम्मेदारी जैसे उसे दूध पिलाना, उसकी साफ-सफाई तथा देखभाल करना तथा उसे सुलाना आदि नई माओं को पूरी तरह से थका देती हैं, जिसका असर उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी पर पड़ता है.

वह बताती हैं कि इन परिस्थितियों में नई मां को आराम देने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जा सकता है.

  • बच्चे की सारी जिम्मेदारियां नई मां पर डालने की बजाय उसकी साफ-सफाई व देखभाल से जुड़ी कुछ जिम्मेदारियां परिवार के अन्य सदस्य जैसे पिता, दादी, नानी तथा घर के अन्य सदस्य आपस में साझा कर सकते हैं.
  • बच्चे के जन्म के बाद माता का रूटीन बहुत हद तक बच्चे की दिनचर्या पर निर्भर हो जाता है. कई बार माता को लगता है कि वह बच्चे के सोने के बाद अपना बचा हुआ कार्य पूरा कर लेगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. ऐसे में मां की नींद काफी ज्यादा प्रभावित होती है. इसलिए जब भी शिशु सोए तो माता को भी चाहिए कि भले ही कुछ देर के लिए ही सही वह भी सो जाए जिससे उसकी नींद पूरी हो सके.
  • यदि संभव हो तो दिन में एक बार अपने कमरे से बाहर खुले माहौल में जरूर निकले जिससे माता को ताजा हवा और सूरज की रोशनी मिलती रहे. इससे शरीर को तो फायदा मिलता ही है साथ ही मन भी शांत व प्रसन्न होता है.
  • यदि संभव हो तो शिशु को अपने पास ही लेकिन एक अलग बिस्तर पर सुलाएं. इससे माएं आराम से सो पाएंगी और बच्चा भी उनके पास ही रहेगा.

आहार का रखें ध्यान
सिर्फ गर्भावस्था के दौरान ही नहीं बल्कि बच्चे के जन्म से लेकर पूरी पोस्टपार्टम अवधि के दौरान माता के आहार का काफी ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. विशेषतौर पर प्रसव के उपरांत महिला को जरूरी मात्रा में ऐसा संतुलित और स्वस्थ आहार दिया जाना बहुत जरूरी होता है, जिसमें अनाज, दालें, फल-सब्जियां, नट्स, सीड्स और डेयरी उत्पाद भरपूर मात्रा में हो. इससे उनके शरीर को सभी जरूरी मिनरल्स, विटामिंस, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा फाइबर आदि पोषक तत्व मिलता रहेगा. यह पोषण सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि बच्चे के शरीर को भी फायदा पहुंचाता है. साथ ही साथ, उनके शरीर को जल्दी रिकवर करने में मदद करता है. इसके अलावा बहुत जरूरी है कि महिला के शरीर में पानी की कमी ना हो.

प्रसव के उपरांत होने वाली आम समस्याएं तथा उनके निवारण के उपाय

  • डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि सामान्य डिलीवरी के दौरान कई बार महिला को योनि में टांके लगाए जाते हैं. ऐसे में कुछ समय तक उक्त स्थान पर दर्द व असहजता बनी रह सकती है. इसके लिए आमतौर पर चिकित्सक घाव पर किसी दर्द निवारक क्रीम या स्प्रे का इस्तेमाल करने, घाव पर बर्फ से सिकाई करने या फिर सुविधानुसार गर्म या ठंडे पानी के टब में बैठने की सलाह देते हैं. जिससे उन्हे दर्द में राहत मिल सकती है.
  • प्रसव के बाद कई बार महिलाओं को कब्ज की समस्या हो जाती है. ऐसा होने पर उनके टांकों पर भी जोर पड़ सकता है. ऐसे में उन्हें ज्यादा फाइबर युक्त आहार खाना की सलाह दी जाती है. वहीं समस्या यदि ज्यादा हो तो उन्हे किसी लैक्सेटिव के सेवन की सलाह भी दी जाती है.
  • सिजेरियन के उपरांत रिकवर होने में महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा समय लगता है. ऐसे में ऑपरेशन के दौरान लगे टांको में दर्द के अलावा उनमें अन्य समस्या होने का खतरा ज्यादा होता है. इसलिए चिकित्सक उन्हें सुखाने के लिए तथा दर्द में कमी के लिए महिलाओं को दर्द निवारक दवाइयां तथा टांकों को सूखाने के लिए दवाइयां देते हैं. इस अवस्था में महिलाओं को ज्यादा आराम करने तथा शिशु को उठाने के अलावा कुछ समय तक कोई भी भारी समान ना उठाने की सलाह दी जाती है.
  • दोनों प्रकार के प्रसव में कई बार महिलाओं को बच्चे को स्तनपान कराने के दौरान भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है. जैसे यदि बच्चा कम मात्रा में दूध पीता है और माता के स्तनों में दूध एकत्रित होने लगता है तो स्तनों में गाँठे पड़ सकती हैं. इससे उनमें सूजन आ सकती है या फिर वह कठोर भी हो सकते हैं. यह स्तिथि कई बार काफी दर्दनाक भी हो सकती है. ऐसी अवस्था में ब्रेस्ट पंप की मदद से या स्तन दबाकर उनमें एकत्रित दूध को बाहर निकाल देना चाहिए.
  • डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं बच्चे के जन्म के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों तथा आराम, नींद की कमी व थकान के कारण महिलाओं में तनाव सहित कई भावनात्मक व व्यावहारिक समस्याओं पनपने लगती हैं जैसे गुस्सा, चिड़चिड़ापन, उदासी, रोने का मन करना, निराशा आदि. इस अवस्था को बेबी ब्लूज़ नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में यदि संभव हो तो घर के बड़े लोग विशेष तौर पर महिलाएं उन्हें प्रोत्साहित कर सकती है तथा अच्छी सलाह दे सकती है. वहीं जरूरत पड़ने पर चिकित्सीय सलाह या काउंसलिंग लेना भी फायदेमंद हो सकता है.

डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि बहुत जरूरी है कि नियमित अंतराल पर बच्चे के साथ नई माँ के स्वास्थ्य की भी जांच करवाई जाती रहे. जिससे इस बात का पता चलता रहे की उनकी रिकवरी सही तरीके से हो रही है या नही.

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