हैदराबाद: योग में प्राणायाम की भूमिका काफी अहम मानी जाती है. इसे योग के आठ अंगों में से चौथा अंग माना जाता है. वहीं आयुर्वेद में भी प्राणायाम के फायदों तथा चिकित्सीय लाभों का उल्लेख किया जाता है. यहां तक कि आयुर्वेद में यह भी माना जाता है कि सही तरह से नियमित रूप से कुछ विशेष प्रकार के प्राणायाम का अभ्यास शरीर में वात, पित्त व कफ दोषों को नियंत्रित व संतुलित रखने में काफी कारगर हो सकता है.
प्राणायाम योग आसनों के सबसे प्रचलित प्रकारों में से एक है. इसके शारीरिक व मानसिक सेहत के लिए फ़ायदों के चलते आज दुनिया भर में हर उम्र के लोगों में इसका ट्रेंड काफी बढ़ रहा है. सभी जानते हैं कि प्राणायाम के नियमित अभ्यास से श्वसन तंत्र को कई लाभ होते हैं. प्राणायाम के फ़ायदों को लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गए कई शोधों व प्रयोगों में इसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए कई प्रकार के फ़ायदों की पुष्टि भी हुई है.
योग के जनक माने जाने वाले महर्षि पतंजलि द्वारा बताई गई परिभाषा के अनुसार प्राणायाम श्वास लेने की योग कला है. जो श्वसन तंत्र से जुड़े अंगों को तीव्रता व लयबद्धता के साथ ज्यादा क्रियाशील बनाती हैं. वहीं यदि आयुर्वेद की बात की जाय तो इस चिकित्सा विधा में प्राणायाम को एक उपचार/थेरेपी के रूप में भी मान्यता दी जाती है. जो फेफड़ों व श्वसन तंत्र में शोधन क्रिया के साथ सम्पूर्ण मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक तथा व्यवहारिक स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाती है. विशेषतौर पर आयुर्वेद में यह भी माना जाता कि प्राणायाम के नियमित अभ्यास से वात, पित्त और कफ दोषों को भी नियंत्रित किया जा सकता है.
प्राणायाम व उसके प्रकार
बेंगलुरु की योग गुरु मीनू वर्मा बताती हैं कि योग शास्त्रों के अनुसार प्राणायाम, संस्कृत के दो शब्दों प्राण और याम से मिलकर बना हुआ है. प्राण का अर्थ होता है जीवन शक्ति या ऊर्जा तथा आयाम का अर्थ होता है खिंचाव व आत्म नियंत्रण. यानी प्राणायाम का अर्थ है जीवन शक्ति व ऊर्जा पर नियंत्रण.
वह बताती हैं कि प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. योग में श्वास क्रिया पर नियंत्रण को काफी अहम माना जाता है. किसी भी प्रकार या श्रेणी के योग आसनों में श्वास लेने व रोकने की गति तथा उसकी सही लय जरूरी मानी जाती है. प्राणायाम भी श्वास क्रिया पर आधारित योग है जिसके नियमित अभ्यास पर योग में काफी जोर दिया जाता है. क्योंकि यह सांस लेने के तरीके को स्वस्थ बनाने के साथ सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए काफी फायदे देता है. प्राणायाम में श्वास लेने व छोड़ने की तीन क्रियाएं होती हैं. पूरक, कुम्भक तथा रेचक, अर्थात श्वास को सही गति व तरीके से लेना, रोकना और छोड़ना.
वह बताती हैं कि वैसे तो प्राणायाम के कई प्रकार माने जाते हैं लेकिन सबसे इसके सबसे प्रचलित प्रकारों में कपालभाति, अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, भ्रामरी, उज्जायी, शीतली, केवली, कुम्भक, सूर्यभेदन, चंद्रभेदन, प्रणव, अग्निसार, नासाग्र तथा शितायु आदि शामिल हैं.
आयुर्वेद में प्राणायाम के लाभ
मुंबई की आरोग्यधाम आयुर्वेदिक चिकित्सालय की चिकित्सक डॉ मनीषा काले बताती हैं कि प्राणायाम के नियमित अभ्यास के दौरान सही तरह से सांस लेने की क्रिया से शरीर को कई तरह से लाभ मिलते हैं. इसके साथ ही इस क्रिया से वात, कफ तथा पित्त दोषों को नियंत्रित रखने में भी काफी मदद करता है.
वह बताती हैं कि नियमित प्राणायाम के अभ्यास से श्वसन तंत्र स्वस्थ, संतुलित व नियंत्रित रहता है, जिससे शरीर में विषाक्त पदार्थ एकत्रित नहीं हो पाते हैं और शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति भी बेहतर होती है. जो शरीर के सभी आंतरिक अंगों व प्रणालियों को फायदा पहुंचाता है.
वह बताती हैं वैसे तो सभी प्रकार के प्राणायाम शरीर के लिए उपयोगी होते हैं लेकिन कुछ विशेष प्रकार के प्राणायाम मौसम के कारण होने वाली समस्याओं तथा शरीर की प्रकृति व दोषों के चलते वात, पित्त और कफ में असंतुलन के कारण होने वाली समस्याओं से बचाव में काफी मददगार हो सकते हैं.
योग गुरु मीनू वर्मा बताती हैं कि नाड़ीशोधन, उज्जयी, भ्रामरी व भस्त्रिका प्राणायाम विशेष रूप से मौसम के प्रभाव तथा दोषों में असंतुलन के कारण होने वाली समस्याओं के प्रभाव को कम करने में काफी लाभकारी हो सकते हैं . वह बताती हैं नाड़ी शोधन प्राणायाम विशेषतौर पर वात को नियंत्रित व संतुलित रखने में लाभकारी होता है. वहीं शीतली प्राणायाम पित्त को नियंत्रित व शांत रखने में तथा भस्त्रिका प्राणायाम कफ को नियंत्रित रखने व उसकी अधिकता के कारण होने वाली समस्या से बचाव करने में मदद करता है.
इनके अलावा अनुलोम विलोम, कपालभाति व भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास भी पाचन संबंधी समस्याओं विशेषकर गैस्ट्रिक संबंधित समस्याओं को कम करने, अनिद्रा की समस्या को दूर करने, धैर्य, ध्यान और शारीरिक नियंत्रण को बेहतर बनाए रखने के साथ तनाव और चिंता से राहत दिलाने में, मस्तिष्क स्वास्थ्य व हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने तथा उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं से बचाव करने में काफी लाभकारी होता है.
इनके अलावा प्राणायाम का अभ्यास फेफड़ों से संबंधित ज्यादा व कम गंभीर बीमारियों जैसे अस्थमा, श्वसन तंत्र से जुड़ी एलर्जी, एलर्जिक ब्रोंकाइटिस, निमोनिया और टीबी जैसी बीमारियों के जोखिम को भी कम करती है. इसके अलावा प्राणायाम के अभ्यास से शरीर और मन के बीच संबंध को मजबूत बनाने के साथ शरीर व विचारों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने, शरीर के लगभग सभी अंगों की सक्रियता तथा उनकी कार्य करने की क्षमता बढ़ाने तथा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ रखने में काफी मदद मिलती है.
सावधानी
वह बताती हैं कि योग चाहे कोई भी हो उसका यम, नियम व आसन के साथ अभ्यास जरूरी होता है . इसलिए प्राणायाम के सभी फ़ायदों को पाने के लिए बहुत जरूरी है कि आसन के साथ ही नियम व आहार का भी विशेष ध्यान रखा जाय.
बहुत जरूरी है कि प्राणायाम की जिस भी शाखा का अभ्यास किया जा रहा है उसका अभ्यास किसी प्रशिक्षित व्यक्ति या ट्रेनर से सीखने के बाद ही किया जाए. साथ ही बहुत जरूरी है कि प्राणायाम का अभ्यास ट्रेनर द्वारा बताई गई गति, अवधि तथा सावधानी के अनुसार ही किया जाय.