यूनाइटेड नेशंस के वेब पेज पर प्रकाशित एक सूचना के अनुसार दुनिया में पर्याप्त मात्रा में पेट भरने लायक भोजन मौजूद होने के बावजूद हर नौ में से एक व्यक्ति पेट भर भोजन नही कर पाता है. ऐसे लोगों की कुल जनसंख्या के लगभग दो-तिहाई लोग एशिया में रहते हैं. एक अनुमान के अनुसार यदि दुनिया की आहार और कृषि व्यवस्थाओं के विकास को लेकर ज्यादा प्रयास नहीं किए गए तो वर्ष 2050 तक दुनियाभर में भूख के शिकार लोगों की संख्या दो अरब तक पहुँच जाएगी. यह वह आँकड़े हैं जो हमें खाद्य समस्याओं से जुड़ी चिंताओं का दर्शन कराते हैं. इन्ही चिंताओं के निवारण के लिए प्रयास करने तथा स्वस्थ भोजन के सेवन की जरूरत को लेकर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से दुनियाभर में 16 अक्टूबर को “विश्व खाद्य दिवस” यानी “वर्ल्ड फूड डे” मनाया जाता है.
क्यों मनाया जाता है विश्व खाद्य दिवस
विश्व खाद्य दिवस को सर्वप्रथम हंगरी के पूर्व कृषि और खाद्य मंत्री डॉ पाल रोमानी के सुझाव के उपरांत वर्ष 1979 से मनाया जाना शुरू किया गया था. नवंबर 1979 में खाद्य और कृषि संगठन के सदस्य देशों के एक महासम्मेलन में इसकी स्थापना की गयी थी और उसके बाद से ही इसे हर साल आयोजित किया जाता है. इस विशेष दिवस को दुनिया के 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है. गौरतलब है की खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना भी 16 अक्टूबर के दिन ही की गयी थी इसलिए भी इस दिन का ज्यादा महत्व बढ़ जाता है.
हर साल यह दिवस एक थीम के तहत मनाया जाता है. इस वर्ष विश्व खाद्य दिवस की थीम खाद्य और खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बेहतर जीवन पर आधारित है. विश्व खाद्य दिवस 2021 को इस वर्ष "हमारा कार्य हमारा भविष्य हैं- बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर वातावरण और बेहतर जीवन" थीम पर मनाया जा रहा है.
क्या कहते हैं आँकड़े
यू. एन के आंकड़ों की माने तो हालांकि दुनियाभर में, विकासशील क्षेत्र में अल्पोषित लोगों की संख्या में वर्ष 1990 के मुकाबले लगभग आधे की कमी आई है. 1990-1992 में यह संख्या 23.3% थी, जो 2014-2016 में 12.9% रह गई. लेकिन 79.5 करोड़ लोग आज भी अल्पपोषित हैं. वहीं कुछ अन्य आंकड़ों की माने तो दुनियाभर के लगभग 99 प्रतिशत कुपोषित लोग विकासशील देशों में रहने वाले लोग हैं. जिनमें से कुल आबादी में लगभग 60% महिलाएं हैं. गर्भवती महिलाओं में स्वास्थ्य भोजन के अभाव के चलते हर साल लगभग 20 मिलियन नवजात शिशु कम वजन के साथ पैदा होते हैं, वहीं 5 साल से कम उम्र के बच्चों की होने वाली कुल मौत में लगभग 50 % का कारण कुपोषण होता है.
हाल ही में सूचना के अधिकार (RTI) के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से कुपोषण से जुड़े वर्तमान आंकड़ों की जानकारी मांगी गई थी. जिसके जवाब में जो आँकड़े प्रस्तुत किए थे उनके अनुसार भारत में पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के करीब 9,27,606 बच्चों में गंभीर कुपोषण की पहचान की गई थी.
संयुक्त राष्ट्र के प्रयास
संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी “विश्व खाद्य दिवस” को मनाए जाने वाले उद्देश्यों जैसे उद्देश्य लेकर तथा सतत विकास लक्ष्य के तहत शून्य भुखमरी का उद्देश्य लेकर “2030 सतत् विकास एजेंडा” का संचालन किया जा रहा है, जिसके तहत दुनिया भर में अगले 15 वर्ष में भूख और हर तरह के कुपोषण को मिटाने और खेती की उत्पादकता दोगुनी करने का उद्देश्य रखा गया है.
इस एजेंडा के अन्य मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं .
- 2030 तक भुखमरी मिटाना और सभी लोगों, विशेषकर गरीब और शिशुओं सहित लाचारी की स्थिति में जीते लोगों को पूरे वर्ष सुरक्षित, पौष्टिक तथा पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था करना.
- 2030 तक कुपोषण को हर रूप में मिटाना. इसके अलावा किशोरियों, गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली माताओं तथा वृद्धजनों की पोशाहार की ज़रूरतों को पूरा करना.
- 2030 तक खेती की उत्पादकता और खासकर महिलाओं, पारिवारिक किसानों, चरवाहों और मछुआरों सहित लघु आहार उत्पादकों की आमदनी को दोगुना करना.
- 2030 तक टिकाऊ आहार उत्पादन प्रणालियाँ सुनिश्चित करना और खेती की ऐसी जानदार विधियाँ अपनाना जिनसे उत्पादकता औऱ पैदावार बढ़े, पारिस्थितिक प्रणालियों के संरक्षण में मदद मिले, जलवायु परिवर्तन, कठोर मौसम, सूखे, बाढ़ और अन्य आपदाओं के अनुरूप ढलने की क्षमता मज़बूत हो औऱ जिनसे ज़मीन एवं मिट्टी की गुणवत्ता में निरंतर सुधार हो.
- पहले से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ ग्रामीण बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं, कृषि अनुसंधान और विस्तार सेवाओं, टैक्नॉलॉजी विकास और पौध एवं मवेशी जीन बैंकों में निवेश बढ़ाना जिससे विकासशील देशों, विशेषकर सबसे कम विकसित देशों में कृषि उत्पादकता क्षमता बढ़ सके.
- व्यापार प्रतिबंधों और विश्व कृषि बाज़ारों में व्यापार प्रतिबंधों और विकृतियों को सुधारना और रोकना.
- खाद्य जिन्स बाज़ार और उनके डेरिवेटिव्ज़ के सही ढंग से संचालन के उपाय अपनाना और सुरक्षित खाद्य भंडार सहित बाज़ार की जानकारी समय से सुलभ कराना जिससे खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव को सीमित करने में मदद मिल सके.