सोलन: डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में तीन दिवसीय हिम संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें हिमालय क्षेत्र के विकास को लेकर करीब 200 शोधकर्ता विचार विमर्श कर रहे हैं. वहीं, हिमाचल के साथ लगते पहाड़ी राज्य उत्तराखंड से भी इस हिमसंवाद कार्यक्रम में एक ऐसे शख्स पहुंचे जिन्होंने केदारनाथ में 2013 और 2021 त्रासदी को करीब से देखा है और उसके साक्षी भी रहे है. (HIM Samvad karyakram at YS Parmar University)
मनवर सिंह रावत उत्तराखड पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं और उत्तराखंड में सेवा इंटरनेशनल के प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में 2013 से जुड़े हैं. मनवर सिंह रावत बताते हैं कि उन्होंने डिजास्टर मैनेजमेंट में लगातार काम किया है. जहां-जहां भूकंप त्रासदी आती है, वहां-वहां डेवलपमेंट करने का काम सेवा इंटरनेशनल द्वारा किया जाता है. मनवर सिंह रावत बताते हैं कि 16 और 17 जून, 2013 की भीषण आपदा में केदारनाथ और मंदाकिनी घाटी में हजारों लोग लापता हो गए थे. आपदा में लापता होने वालों में उत्तराखंड, भारत के विभिन्न राज्यों सहित नेपाल समेत कई देशों के लोग शामिल थे. (Manwar Singh Rawat in Solan)
उस दौरान वे बीए की पढ़ाई कर रहे थे और वे इस दौरान केदार घाटी में रेस्क्यू ऑपरेशन का हिस्सा बने थे. सबसे पहला वीडियो भी इन्होंने ही इस त्रासदी का जारी किया था. रावत ने बताया कि वे 19 जून से रेस्क्यू ऑपेरशन शुरू कर चुके थे और उनकी आंखों के सामने लोग बह रहे थे. कुछ टनल में फंसे हुए थे तो कुछ को हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया. उन्हें इस हादसे का तब पता चला जब एक हेलीकॉप्टर 17 जून को यात्रियों को लेकर आ रहा था. ऐसे में पायलट ने देखा कि चोरावली ताल ग्लेशियर आने से टूट चुका है और वहां पानी का इतना फ्लड आया कि उस समय गौरीकुंड तक बर्बाद हो गया. (Seminar in Nauni University)
इसी तरह 7 फरवरी 2021 तपोवन में ग्लेशियर आया था. वे उस दौरान उस क्षेत्र में काम करने गए थे. वहां लोगों से उनकी एक मीटिंग थी. उसमें भी उनके द्वारा रेस्क्यू ऑपेरशन किया गया. लोग सुरंग में दबे पड़े थे. 28 दिन तक लोगों के लिए फिर लंगर चलाया गया. रावत का कहना है कि आपदा को रोका नहीं जा सकता है लेकिन कंट्रोल जरूर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर सही जानकारी होगी तो आपदाओं से निपटा जरूर जा सकता है.
मनवर सिंह रावत ने बताया कि आधुनिकता की दौड़ में जंगलों का नाश हो रहा है. जो हमारे पूर्वज जल, जीवन, जंगल, जीव-जंतुओं को संजोने का काम करते थे आज की पीढ़ी उससे भाग रही है. आजीविका के लिए पूर्वज बाजारों पर निर्भर नहीं थे. लेकिन आज लोग बाजारों पर निर्भर है. अब खेती की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है. लोग गांव से शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं. इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए उनके द्वारा गांव-गांव में जाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है. उनके द्वारा उत्तराखंड में कंप्यूटर एजुकेशन शुरू की गई है.
पहाड़ में क्या समस्या है उनके बारे में जानने के लिए गांव-गांव में जाकर लोगों से बात की जा रही है. रावत का कहना है कि सरकार से वे इन सब बातों को लेकर बात कर चुके हैं. उनका कहना है कि पॉलिसी वो लोग बना रहे हैं जो खेती करना नहीं जानते. बाहरी राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी पहाड़ी राज्यों के विकास की पॉलिसी बना रहे हैं जो कि सम्भव नहीं है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को आगे आना होगा. जंगलों, पहाड़ों, सांस्कृतिक और पौराणिक वस्तुओं को संभाल कर रखना होगा. रावत का कहना है कि हिमालय क्षेत्रों के विकास के लिए टेबलों पर नीतियां बनाने से बेहतर जमीनी स्तर पर प्लान तैयार करना होगा.
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