राजगढ़: रंगों का त्योहार होली के लिए बाजार में तरह-तरह के रंग उपलब्ध हैं. बाजार में उपलब्ध ज्यादातर रंगों में कैमिकल मौजूद होते हैं. ये त्वचा के साथ-साथ शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. वहीं, राजगढ़ विकास खंड में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं ईको फ्रैंडली रंग तैयार कर रही हैं. इससे महिलाएं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही हैं. साथ ही होली में रंगों से होने वाला खेल भी सुरक्षित हो गया है.
राजगढ़ विकास खंड की विभिन्न पंचायतों में राष्ट्रीय ग्रामीण आजिविका मिशन के तहत बने स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने ग्रामीण विकास विभाग की सहायता से होली के लिए हर्बल रंग तैयार किए हैं. त्योहार पर अक्सर लोग सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं, जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. रंगों को तैयार करने के लिए मैदा, मक्की का आटा, टैलकम पाऊडर, मिठाई में लगने वाले रंग आदि का इस्तेमाल किया जाता है. इन रंगों की कीमत 20 से लेकर 50 रुपए तक की रखी गई है.
'सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल न करें'
खंड विकास अधिकारी अरविंद सिंह गुलेरिया ने क्षेत्रों के लोगों से अपील की है कि वे बाजार में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल न करके महिलाओं द्वारा तैयार इन हर्बल रंगो का इस्तेमाल करें. साथ ही कोरोना महामारी के चलते होली को अपने घरों में ही रह कर मनाएं. अरविंद सिंह गुलेरिया ने कहा कि ये हर्बल रंग खंड विकास कार्यालय राजगढ़ के पास खुली हिम ईरा शॉप मे ब्रिक्री के लिए रखे गए हैं. लोग इन रंगों को हिम ईरा शॉप से खरीद सकते हैं. हर्बल रंगों से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का एक प्रयास है
स्वास्थ्य शिक्षिका अनिता पुंडीर ने बताया कि महिलाएं होली के लिए घरों में ही मिलने वाले प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर यह रंग बना रही हैं. उन्होंने कहा कि यह रंग पूरी तरह से सुरक्षित हैं. इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और वह आत्मनिर्भर भी बनेंगी. उन्होंने कहा कि महिलाओं ने होली को ध्यान में रखते हुए यह कैमिकल फ्री रंग तैयार किए हैं.
ये भी पढ़ें: नहीं बच पाया झुंड से भटका हिमालयन आइबैक्स, जख्मी और बीमार होने के कारण हुई मौत