सिरमौर : हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा अनोखी परंपराओं के लिए भी जाना जाता है. ऐसी ही एक परंपरा सिरमौर जिले के हाटी समुदाय की है. यहां दुल्हन बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंचती है और फिर दूल्हे के घर ही शादी की सभी रस्में निभाई जाती है. इसे जाजड़ा प्रथा कहा जाता है. हाटी समुदाय में इस प्रथा के तहत होने वाली शादी में कई अनोखी चीजें होती हैं. जानने के लिए पढ़ें...
राजेंद्र के घर बारात लेकर पहुंची सुमन- जिले के शिलाई उपमंडल के कुसेनू गांव के राजेंद्र पांडेय की शादी उत्तराखंड के चकराता की सुमन जोशी के साथ हुई. लेकिन खास बात ये है कि दुल्हन के रूप में सजी सुमन अपने परिजनों समेत 100 बारातियों को साथ लेकर राजेंद्र के घर पहुंची. दरअसल ये सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय की जाजड़ा विवाह परंपरा का हिस्सा है जिसमें दुल्हन बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंचती है. और फिर फेरों समेत शादी की तमाम रस्में लड़के के घर निभाई जाती है.
दूल्हे के पिता कुंभराम ने बताया कि जाजड़ा परंपरा में ना तो दूल्हा बारात लेकर जाता है और ना दुल्हन के घर में फेरे होते हैं. इस प्रथा के तहत हुई इस शादी में नशे के सेवन पर भी पाबंदी रही और शादी में शराब नहीं परोसी गई. गिरिपार क्षेत्र में यह अनोखी शादी पूरी रस्मोरिवाज के साथ संपन्न हुई.
प्राचीन काल से चली आ रही है जाजड़ा प्रथा- केंद्रीय हाटी समिति के उपाध्यक्ष एवं अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह ठाकुर बताते है कि गिरिपार क्षेत्र की परंपराएं और रिति रिवाज प्राचीन काल से ही चले रहे हैं. इन्हीं में से एक जाजड़ा प्रथा भी है. इसके पीछे कोई कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रथा बुजुर्गो की देन है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है. वक्त के साथ-साथ इस प्रथा के तहत शादियां कम होने लगी हैं.
अनोखी है जाजड़ प्रथा- इस प्रथा के तहत होने वाली शादी में शादी का सारा खर्च भी दूल्हे पक्ष के लोग उठाते हैं. इसके साथ-साथ इस प्रथा के तहत दहेज भी नहीं लिया जाता. विवाह समारोह में रोटियां गांव की महिलाएं बनाती हैं लेकिन आटा गांव के पुरुष गूंथते है. इसके अलावा सब्जियां काटने से लेकर पकवान बनाने तक का काम पुरुषों का ही होता है. महिलाएं सिर्फ रोटियां बनाती हैं जिसके लिए उन्हें थाली में भरकर देसी घी भेंट किया जाता है. शादी के दिन खाना बनाने वाले पुरुषों के लिए बाद में अलग से पार्टी का बंदोबस्त किया जाता है. शादी समारोह के दौरान जमकर नाटी डाली जाती है.
दूल्हे को साथ लेकर जाती है दुल्हन- सुरेंद्र ठाकुर बताते हैं कि विवाह समारोह संपन्न होने के बाद दुल्हन पक्ष दूल्हे के साथ गांव या परिवार के ही 5 से 7 अहम लोगों को अपने घर लेकर जाते हैं. जहां दो दिन उनकी मेहमानवाजी के बाद दुल्हन दूल्हे के साथ अपने ससुराल लौट आती है. दुल्हन पक्ष से कोई दहेज भी नहीं लिया जाता है. सुरेंद्र ठाकुर कहते हैं कि आधुनिक समय में जाजड़ा प्रथा कम हो रही है, लेकिन अब भी गिरिपार क्षेत्र के कई इलाकों में इस प्रथा को निभाया जा रहा है.
हिमाचल का गिरिपार और उत्तराखंड का जौनसार-बावर क्षेत्र- उत्तराखंड की सुमन जोशी और हिमाचल के राजेंद्र पांडेय की शादी जाजड़ प्रथा के तहत इसलिये भी हो पाई क्योंकि हिमाचल के सिरमौर जिले का गिरिपार और उत्तराखंड का जौनसार-बावर क्षेत्र भौगोलिक, सांस्कृतिक, पारंपरिक, खान-पान, आदि के मामले में एक जैसा है. गौरतलब है कि जौनसार-बावर इलाके को भारत सरकार ने साल 1967 अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित कर दिया था. लेकिन हिमाचल के गिरिपार का क्षेत्र को अब तक ये दर्जा नहीं मिल पाया है. हालांकि पिछले साल 2022 में केंद्रीय कैबिनेट ने इसे जनजातीय दर्जा देने की हरी झंडी दे दी है.
एथनोग्राफिक रिपोर्ट में भी इस प्रथा का जिक्र- गिरि पार इलाके के लोग पिछले करीब 5 दशक से उत्तराखंड के जौनसार-बावर की तर्ज पर जनजातीय दर्जे की मांग कर रहे हैं. इस लंबी लड़ाई में बात प्रदेश से लेकर केंद्र की सरकारों तक भी पहुंची है. केंद्रीय हाटी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने बताया कि जाजड़ा प्रथा गिरिपार के जनजातीय क्षेत्र की परंपरा है, जो हाटी समुदाय की एथनोग्राफिक रिपोर्ट में भी लिखी गई है.
उत्तराखंड के जौनसार-बावर और सिरमौर के गिरिपार की लोक संस्कृति, लोक परंपरा, रहन-सहन एक तरह का ही है. लोगों की बोली, पहनावा, परंपराएं, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज लगभग एक जैसा है. टौंस नदी के उस पार जौनसार समुदाय को एसटी का दर्जा है और इस पार हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जे देने को लेकर केंद्रीय कैबिनेट से हरी झंडी मिल गई है लेकिन नोटिफिकेशन का इंतजार है.
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