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7 बार के MLA गंगूराम मुसाफिर एक बार फिर मैदान में, 3 चुनावों से नकार रही जनता

पच्छाद विधानसभा सीट पर पिछले दो विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव में हार का सामना कर रहे गंगूराम मुसाफिर इस बार भी चुनावी मैदान में हैं. गंगूराम मुसाफिर इस बार आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. बता दें, गंगूराम मुसाफिर लगातार 7 बार विधायक रह चुके हैं. (Pachhad assembly seat)

ganguram musafir
गंगूराम मुसाफिर
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Published : Oct 30, 2022, 4:15 PM IST

Updated : Nov 13, 2022, 5:17 PM IST

नाहन: कभी 7 बार विधायक बनकर जनता के दुलारे रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट न मिलने के कारण बागी होकर करीब 40 सालों बाद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे हैं. दरअसल, 2012, 2017 के विधानसभा चुनाव समेत 2019 में हुए उपचुनाव में मुसाफिर को लगातार तीन बार पच्छाद विधानसभा क्षेत्र की जनता नकार रही है. ऐसे में एक बार फिर मुसाफिर चुनावी मैदान में है. नामांकन के दौरान मुसाफिर के शक्ति प्रदर्शन ने भी भाजपा-कांग्रेस के माथों पर चिंता की लकीरें जरूर डाल दी. (himachal pradesh assembly election 2022) (Independent candidate Ganguram Musafir)

पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं. यहां भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के साथ कांग्रेस प्रत्याशी दयाल प्यारी चुनावी मैदान में हैं, जबकि मुसाफिर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे हैं. राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि मुसाफिर का अपना भी अच्छा खासा वोट बैंक हैं. ऐसे में वह कांग्रेस-भाजपा दोनों को ही कड़ी टक्कर देंगे. पिछले 3 चुनावों से बेशक पच्छाद की जनता मुसाफिर को 'राम-राम' कहकर विधायक की कुर्सी से दूर रख रही हैं लेकिन मुसाफिर के बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे से यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने के साथ दिलचस्प भी हो गया है.

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गंगूराम मुसाफिर का राजनीतिक इतिहास.

2012 व 2017 के चुनाव में सुरेश कश्यप से मुसाफिर को मिली हार: बता दें, वर्ष 2012 में कांग्रेस के इस परंपरागत गढ़ को भेदने में भाजपा को कामयाबी मिली. भाजपा प्रत्याशी सुरेश कश्यप यहां से मुसाफिर को हराकर पहली बार विधायक बने. इसके बाद 2017 के चुनाव में भी मुसाफिर को यहां से सुरेश कश्यप के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में भाजपा के युवा विधायक सुरेश कश्यप ने मुसाफिर को 6427 मतों से हराया था. भाजपा के सुरेश को 30243 मत पड़े, जबकि गंगूराम मुसाफिर को 23816 मत हासिल हुए.

उपचुनाव में भी हुई थी हार: भाजपा विधायक सुरेश कश्यप को पार्टी ने शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद का प्रत्याशी बनाया. सुरेश कश्यप सांसद बनकर संसद पहुंच गए, लिहाजा, पच्छाद सीट खाली होने से यहां 2019 में उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव में भी मुसाफिर तीसरी बार चुनाव हार गए. भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप 22,167 मत हासिल कर पहली बार विधानसभा पहुंचीं, तो गंगूराम मुसाफिर 19,359 मत लेकर तीसरी बार चुनाव हार गए. अब दो विधानसभा चुनाव व उपचुनाव में इसे जनता जनार्धन का फैसला ही कहेंगे कि जो कद्दावर नेता 7 बार विधायक रहा हो, उसे लगातार तीसरी बार हार का मुंह देखना पड़ा.
पढ़ें- पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित होंगे बागी, पीएम मोदी की रैलियों से बदल जाएगी हवा: अनुराग ठाकुर

इसलिए बागी हुए मुसाफिर: दरअसल, इस विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी को टिकट दिया है. अप्रैल माह में कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी को कांग्रेस मंडल पच्छाद में शुरू से ही विरोध शुरू हो गया था. प्रदेश में 7 कांग्रेस ब्लॉकों को हिमाचल प्रभारी राजीव शुक्ला ने भंग कर दिया, जिसमें पच्छाद कांग्रेस ब्लॉक भी शामिल था. इससे इस बात के संकेत मिल गए थे कि दयाल प्यारी को टिकट मिलना तय था. दयाल प्यारी को जब पार्टी का टिकट मिला तो मुसाफिर के समर्थकों में भारी निराशा हुई. मुसाफिर के समर्थकों ने मुसाफिर को एक बार फिर 1982 का इतिहास दोहराने के लिए निर्दलीय मैदान में उतरने के लिए मना लिया. इसके बाद 4 दशकों बाद पुनः मुसाफिर ने बतौर निर्दलीय अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.

मुसाफिर का ऐसा रहा राजनीतिक सफर: वन विभाग में सेवारत मुसाफिर को इलाके की जनता ने चुनाव मैदान में उतरने की सलाह दी थी. यह बात साल 1982 की है. कांग्रेस विचारधारा से प्रभावित मुसाफिर को उस समय पार्टी टिकट नहीं मिला, तो वह आजाद उम्मीदवार के रूप में ही लड़े और जीत हासिल की. बाद में उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया गया. सिरमौर जिला की पच्छाद सीट से उस समय शुरू हुआ जीत का यह सिलसिला वर्ष 1985, 90, 93, 98, 2003 और वर्ष 2007 में भी जारी रहा. मगर इसके बाद उन्हें लगातार तीन चुनाव में हार का सामना करना पड़ रहा है.
पढ़ें- चंबा में सीएम जयराम की रैली, हिमाचल में मिशन रिपीट का किया दावा

विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके है मुसाफिर: पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले मुसाफिर विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी कर चुके हैं. वे अक्सर कोई न कोई शेर सुनाते नजर आते हैं.

मुसाफिर की खासियत: मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुका पार्टी का कद्दावर नेता अगर अपने निर्वाचन क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति से राजधानी शिमला में मिलते समय ठेठ सिरमौरी बोली में हालचाल पूछता हो, तो इसे राजनेता का विशेष गुण ही समझा जाएगा. फोन पर तुरंत अपने कार्यकर्ताओं की आवाज पहचान लेना, गलती होने पर एकदम से माफी मांग लेना, ये कुछ खास बाते थी, जो चुनावी मैदान में गंगूराम मुसाफिर की पीठ नहीं लगने देती थी लेकिन 3 चुनाव से जनता उन्हें नकार रही है.

नाहन: कभी 7 बार विधायक बनकर जनता के दुलारे रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट न मिलने के कारण बागी होकर करीब 40 सालों बाद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे हैं. दरअसल, 2012, 2017 के विधानसभा चुनाव समेत 2019 में हुए उपचुनाव में मुसाफिर को लगातार तीन बार पच्छाद विधानसभा क्षेत्र की जनता नकार रही है. ऐसे में एक बार फिर मुसाफिर चुनावी मैदान में है. नामांकन के दौरान मुसाफिर के शक्ति प्रदर्शन ने भी भाजपा-कांग्रेस के माथों पर चिंता की लकीरें जरूर डाल दी. (himachal pradesh assembly election 2022) (Independent candidate Ganguram Musafir)

पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं. यहां भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के साथ कांग्रेस प्रत्याशी दयाल प्यारी चुनावी मैदान में हैं, जबकि मुसाफिर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे हैं. राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि मुसाफिर का अपना भी अच्छा खासा वोट बैंक हैं. ऐसे में वह कांग्रेस-भाजपा दोनों को ही कड़ी टक्कर देंगे. पिछले 3 चुनावों से बेशक पच्छाद की जनता मुसाफिर को 'राम-राम' कहकर विधायक की कुर्सी से दूर रख रही हैं लेकिन मुसाफिर के बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे से यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने के साथ दिलचस्प भी हो गया है.

ganguram musafir
गंगूराम मुसाफिर का राजनीतिक इतिहास.

2012 व 2017 के चुनाव में सुरेश कश्यप से मुसाफिर को मिली हार: बता दें, वर्ष 2012 में कांग्रेस के इस परंपरागत गढ़ को भेदने में भाजपा को कामयाबी मिली. भाजपा प्रत्याशी सुरेश कश्यप यहां से मुसाफिर को हराकर पहली बार विधायक बने. इसके बाद 2017 के चुनाव में भी मुसाफिर को यहां से सुरेश कश्यप के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में भाजपा के युवा विधायक सुरेश कश्यप ने मुसाफिर को 6427 मतों से हराया था. भाजपा के सुरेश को 30243 मत पड़े, जबकि गंगूराम मुसाफिर को 23816 मत हासिल हुए.

उपचुनाव में भी हुई थी हार: भाजपा विधायक सुरेश कश्यप को पार्टी ने शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद का प्रत्याशी बनाया. सुरेश कश्यप सांसद बनकर संसद पहुंच गए, लिहाजा, पच्छाद सीट खाली होने से यहां 2019 में उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव में भी मुसाफिर तीसरी बार चुनाव हार गए. भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप 22,167 मत हासिल कर पहली बार विधानसभा पहुंचीं, तो गंगूराम मुसाफिर 19,359 मत लेकर तीसरी बार चुनाव हार गए. अब दो विधानसभा चुनाव व उपचुनाव में इसे जनता जनार्धन का फैसला ही कहेंगे कि जो कद्दावर नेता 7 बार विधायक रहा हो, उसे लगातार तीसरी बार हार का मुंह देखना पड़ा.
पढ़ें- पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित होंगे बागी, पीएम मोदी की रैलियों से बदल जाएगी हवा: अनुराग ठाकुर

इसलिए बागी हुए मुसाफिर: दरअसल, इस विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी को टिकट दिया है. अप्रैल माह में कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी को कांग्रेस मंडल पच्छाद में शुरू से ही विरोध शुरू हो गया था. प्रदेश में 7 कांग्रेस ब्लॉकों को हिमाचल प्रभारी राजीव शुक्ला ने भंग कर दिया, जिसमें पच्छाद कांग्रेस ब्लॉक भी शामिल था. इससे इस बात के संकेत मिल गए थे कि दयाल प्यारी को टिकट मिलना तय था. दयाल प्यारी को जब पार्टी का टिकट मिला तो मुसाफिर के समर्थकों में भारी निराशा हुई. मुसाफिर के समर्थकों ने मुसाफिर को एक बार फिर 1982 का इतिहास दोहराने के लिए निर्दलीय मैदान में उतरने के लिए मना लिया. इसके बाद 4 दशकों बाद पुनः मुसाफिर ने बतौर निर्दलीय अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.

मुसाफिर का ऐसा रहा राजनीतिक सफर: वन विभाग में सेवारत मुसाफिर को इलाके की जनता ने चुनाव मैदान में उतरने की सलाह दी थी. यह बात साल 1982 की है. कांग्रेस विचारधारा से प्रभावित मुसाफिर को उस समय पार्टी टिकट नहीं मिला, तो वह आजाद उम्मीदवार के रूप में ही लड़े और जीत हासिल की. बाद में उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया गया. सिरमौर जिला की पच्छाद सीट से उस समय शुरू हुआ जीत का यह सिलसिला वर्ष 1985, 90, 93, 98, 2003 और वर्ष 2007 में भी जारी रहा. मगर इसके बाद उन्हें लगातार तीन चुनाव में हार का सामना करना पड़ रहा है.
पढ़ें- चंबा में सीएम जयराम की रैली, हिमाचल में मिशन रिपीट का किया दावा

विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके है मुसाफिर: पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले मुसाफिर विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी कर चुके हैं. वे अक्सर कोई न कोई शेर सुनाते नजर आते हैं.

मुसाफिर की खासियत: मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुका पार्टी का कद्दावर नेता अगर अपने निर्वाचन क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति से राजधानी शिमला में मिलते समय ठेठ सिरमौरी बोली में हालचाल पूछता हो, तो इसे राजनेता का विशेष गुण ही समझा जाएगा. फोन पर तुरंत अपने कार्यकर्ताओं की आवाज पहचान लेना, गलती होने पर एकदम से माफी मांग लेना, ये कुछ खास बाते थी, जो चुनावी मैदान में गंगूराम मुसाफिर की पीठ नहीं लगने देती थी लेकिन 3 चुनाव से जनता उन्हें नकार रही है.

Last Updated : Nov 13, 2022, 5:17 PM IST
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