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हिमाचली संस्कृति को संजोए रखने के प्रयास, मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

प्रदेश में मंचीय प्रदर्शनों में प्रयुक्त होने वाले पारंपरिक परिधानों, मुखोटे व हस्तशिल्प सामग्री को आकर्षक बनाने के लिए जोगिंद्र हब्बी द्वारा निरंतर प्रयास किया जाता रहा है. इसके परिणाम स्वरुप चूड़ेश्वर मंडल के कलाकारों ने पूरे देश और विदेशों में विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिमाचल की दुर्लभ व विलुप्त लोक सांस्कृतिक विरासत को पहुंचाने में कामयाबी हासिल की है.

मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप
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Published : Mar 27, 2019, 9:29 AM IST

नाहन: हिमाचल की संस्कृति को संजोए रखने के प्रयास लगातार जारी है. इस दिशा में चूड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल पूरे प्रयास कर रहा है. इसी के तहत सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के तहत जालग गांव में एक हस्तशिल्प एवं मुखौटा निर्माण पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. दरअसल चूड़ेश्वर कला मंच पिछले लगभग 20 सालों से लोक संस्कृति के उत्थान हेतु प्रयत्नशील हैं. साथ ही हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण के लिए ही उपरोक्त कार्यशाला का आयोजन करना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है.

handicrafts and mask construction workshop
मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

कार्यशाला के माध्यम से विभिन्न तरह के मुखौटे, हस्तशिल्प व आदिम लोक नृत्यों व स्वंगों में उपयोग होने वले दुर्लभ परिधानों को बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों में खासा उत्साह देखा गया. हस्तशिल्प द्वारा ऐसी कार्यशाला लगाकर मंचीय आकर्षण दिलाने का श्रेय जोगेंद्र हाब्बी को जाता है. इनके द्वारा समय-समय पर हस्तशिल्प की कार्यशाला आयोजित करने के परिणाम स्वरुप कलाकारों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. तीन दिवसीय इस कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षु कलाकारों द्वारा लकड़ी के मुखोटे तैयार किए गए हैं, जिसे सींहटू नृत्य में काफी आकर्षण व लोकप्रियता मिली है। सींहटू नृत्य समीप के गांव लेऊ कुप्फर के मंदिर में आज भी विभिन्न पर्वों का आकर्षण है। इस नृत्य को संवारकर सैंकड़ों मंचों पर प्रस्तुत कर जन आकर्षण बनाया गया है.
मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

चूड़ेश्वर कला मंच के महासचिव जोगेंद्र हब्बी ने बताया कि पिछले लगभग 18-20 वर्षों से लोक संस्कृति के उत्थान हेतु प्रयत्नशील हैं और हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण हेतु इस कार्यशाला का आयोजन किया गया. उन्होंने बताया कि चूड़ेश्वर मंडल लोक नृत्य, लोक संगीत, लोक वाद्य की विभिन्न विधाओं पर पिछले कई वर्षों से लोक कलाकारों को प्रशिक्षण देने के लिए ऐसी कार्यशालाएं आयोजित की जा रही है. इसी प्रकार यह सांस्कृतिक मंडल मुखौटा निर्माण और लोक नृत्य परिधानों के निर्माण करने के लिए और उसे मंचीय आकर्षण देने के लिए भी प्रयासरत रहा है.
handicrafts and mask construction workshop
मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

जोगिंद्र हब्बी ने बताया कि स्वैच्छिक रूप से तीन दिनों तक चली इस कार्यशाला में 10 प्रशिक्षु कलाकारों ने परिधान व मुखौटा निर्माण का प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्हें मुखौटा निर्माण शैली के बारे में बताया गया कि मुखोटे का निर्माण लकड़ी के बुरादे व उड़द के बारीक पाउडर से किया जाता था, जिसे अतीत में स्वांगों व विभिन्न नृत्यों में प्रयोग किया जाता था. गत 18-20 वर्षों से अनेकों कार्यशालाओं द्वारा कलाकारों के सहयोग से लकड़ी के बुरादे और मशीठी की मिलावट से बने दर्जनों मुखोटे संस्था की निधि बन चुकी हैं.

नाहन: हिमाचल की संस्कृति को संजोए रखने के प्रयास लगातार जारी है. इस दिशा में चूड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल पूरे प्रयास कर रहा है. इसी के तहत सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के तहत जालग गांव में एक हस्तशिल्प एवं मुखौटा निर्माण पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. दरअसल चूड़ेश्वर कला मंच पिछले लगभग 20 सालों से लोक संस्कृति के उत्थान हेतु प्रयत्नशील हैं. साथ ही हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण के लिए ही उपरोक्त कार्यशाला का आयोजन करना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है.

handicrafts and mask construction workshop
मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

कार्यशाला के माध्यम से विभिन्न तरह के मुखौटे, हस्तशिल्प व आदिम लोक नृत्यों व स्वंगों में उपयोग होने वले दुर्लभ परिधानों को बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों में खासा उत्साह देखा गया. हस्तशिल्प द्वारा ऐसी कार्यशाला लगाकर मंचीय आकर्षण दिलाने का श्रेय जोगेंद्र हाब्बी को जाता है. इनके द्वारा समय-समय पर हस्तशिल्प की कार्यशाला आयोजित करने के परिणाम स्वरुप कलाकारों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. तीन दिवसीय इस कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षु कलाकारों द्वारा लकड़ी के मुखोटे तैयार किए गए हैं, जिसे सींहटू नृत्य में काफी आकर्षण व लोकप्रियता मिली है। सींहटू नृत्य समीप के गांव लेऊ कुप्फर के मंदिर में आज भी विभिन्न पर्वों का आकर्षण है। इस नृत्य को संवारकर सैंकड़ों मंचों पर प्रस्तुत कर जन आकर्षण बनाया गया है.
मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

चूड़ेश्वर कला मंच के महासचिव जोगेंद्र हब्बी ने बताया कि पिछले लगभग 18-20 वर्षों से लोक संस्कृति के उत्थान हेतु प्रयत्नशील हैं और हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण हेतु इस कार्यशाला का आयोजन किया गया. उन्होंने बताया कि चूड़ेश्वर मंडल लोक नृत्य, लोक संगीत, लोक वाद्य की विभिन्न विधाओं पर पिछले कई वर्षों से लोक कलाकारों को प्रशिक्षण देने के लिए ऐसी कार्यशालाएं आयोजित की जा रही है. इसी प्रकार यह सांस्कृतिक मंडल मुखौटा निर्माण और लोक नृत्य परिधानों के निर्माण करने के लिए और उसे मंचीय आकर्षण देने के लिए भी प्रयासरत रहा है.
handicrafts and mask construction workshop
मुखौटा और आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशॉप

जोगिंद्र हब्बी ने बताया कि स्वैच्छिक रूप से तीन दिनों तक चली इस कार्यशाला में 10 प्रशिक्षु कलाकारों ने परिधान व मुखौटा निर्माण का प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्हें मुखौटा निर्माण शैली के बारे में बताया गया कि मुखोटे का निर्माण लकड़ी के बुरादे व उड़द के बारीक पाउडर से किया जाता था, जिसे अतीत में स्वांगों व विभिन्न नृत्यों में प्रयोग किया जाता था. गत 18-20 वर्षों से अनेकों कार्यशालाओं द्वारा कलाकारों के सहयोग से लकड़ी के बुरादे और मशीठी की मिलावट से बने दर्जनों मुखोटे संस्था की निधि बन चुकी हैं.
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हिमाचली संस्कृति को संजोए रखने के प्रयास, मुखौटा व आदिम परिधान निर्माण पर वर्कशाॅप
-सिरमौर के राजगढ़ में हस्तशिल्प पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला संपन्न 
- लकड़ी के मुखौटे किए तैयार, जिससे सींहटू नृत्य में मिली लोकप्रियता 
-हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण करना रहा उद्देश्य 
-करीब 20 सालों से संस्कृति को संजोने के प्रयास, 10 कलाकारों को प्रशिक्षण 
-देश-विदेशों में विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिमाचल की दुर्लभ व विलुप्त लोक सांस्कृतिक विरासत को पहुंचाने में मिली कामयाबी 
नाहन। हिमाचल की संस्कृति को संजोए रखने के प्रयास लगातार जारी है। इस दिशा में चूड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल पूरे प्रयास कर रहा है। इसी के तहत सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के तहत जालग गांव में एक हस्तशिल्प एवं मुखौटा निर्माण पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। 
दरअसल चूड़ेश्वर कला मंच पिछले लगभग 20 सालों से लोक संस्कृति के उत्थान हेतु प्रयत्नशील हैं। साथ ही हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण हेतु ही उपरोक्त कार्यशाला का आयोजन करना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है। 
इस कार्यशाला के माध्यम से विभिन्न तरह के मुखौटे, हस्तशिल्प व आदिम लोक नृत्यों व स्वंगों में उपयोग होने वले दुर्लभ परिधानों को बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों में खासा उत्साह देखा गया। हस्तशिल्प द्वारा ऐसी कार्यशाला लगाकर मंचीय आकर्षण दिलाने का श्रेय जोगेंद्र हाब्बी को जाता है। इनके द्वारा समय-समय पर हस्तशिल्प की कार्यशाला आयोजित करने के परिणाम स्वरुप कलाकारों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
तीन दिवसीय इस कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षु कलाकारों द्वारा लकड़ी के मुखोटे  तैयार किए गए हैं, जिसे सींहटू नृत्य में काफी आकर्षण व लोकप्रियता मिली है। सींहटू नृत्य समीप के गांव लेऊ कुप्फर के मंदिर में आज भी विभिन्न पर्वों का आकर्षण है। इस नृत्य को संवारकर सैंकड़ों मंचों पर प्रस्तुत कर जन आकर्षण बनाया गया है।
चूड़ेश्वर कला मंच के महासचिव जोगेंद्र हब्बी ने बताया कि पिछले लगभग 18-20 वर्षों से लोक संस्कृति के उत्थान हेतु प्रयत्नशील हैं और हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण, आदिम लोक नृत्यों व स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण हेतु इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। 
उन्होंने बताया कि चूड़ेश्वर मंडल लोक नृत्य, लोक संगीत, लोक वाद्य की विभिन्न विधाओं पर पिछले कई वर्षों से लोक कलाकारों को प्रशिक्षण देने के लिए ऐसी कार्यशालाएं आयोजित की जा रही है। इसी प्रकार यह सांस्कृतिक मंडल मुखौटा निर्माण और लोक नृत्य परिधानों के निर्माण करने के लिए और उसे मंचीय आकर्षण देने के लिए भी प्रयासरत रहा है।
जोगेंद्र हब्बी ने बताया कि स्वैच्छिक रूप से तीन दिनों तक चली इस कार्यशाला में 10 प्रशिक्षु कलाकारों ने परिधान व मुखौटा निर्माण का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें मुखौटा निर्माण शैली के बारे में बताया गया कि मुखोटे का निर्माण लकड़ी के बुरादे व उड़द के बारीक पाउडर से किया जाता था, जिसे अतीत में स्वांगों व विभिन्न नृत्यों में प्रयोग किया जाता था। गत 18-20 वर्षों से अनेकों कार्यशालाओं द्वारा कलाकारों के सहयोग से लकड़ी के बुरादे और मशीठी की मिलावट से बने दर्जनों मुखोटे संस्था की निधि बन चुकी हैं।
कुल मिलाकर मंचीय प्रदर्शनों में प्रयुक्त होने वाले पारंपरिक परिधानों, मुखोटे व हस्तशिल्प सामग्री को आकर्षक बनाने के लिए जोगिंद्र हाब्बी द्वारा निरंतर प्रयास किया जाता रहा है। इसके परिणाम स्वरुप चूड़ेश्वर मंडल के कलाकारों ने पूरे देश और विदेशों में विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिमाचल की दुर्लभ व विलुप्त लोक सांस्कृतिक विरासत को पहुंचाने में कामयाबी हासिल की है। 
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बाइट: जोगिंद्र हब्बी, महासचिव, चूड़ेश्वर कला मंच-1 व 2 
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