पांवटा साहिब: हिमाचल प्रदेश में घराट संचालकों पर भी लॉकडाउन की मार पड़ रही है. गेहूं के सीजन में हर साल घराटों में आटा पिसवाने के लिए लोगों की भीड़ रहती थी. वहीं, इस बार लॉकडाउन के चलते इक्का-दुक्का लोग ही घराट पर पहुंच रहे हैं.
आधुनिक युग में पहाड़ों में घराट नाममात्र के ही बचे हैं. वहीं, वैश्विक कोरोना महामारी के चलते जारी लॉकडाउन में लोग घरों में कैद हैं. ऐसे में कोई भी ग्रामीण घराट पर आटा पिसवाने नहीं आ रहा. सदियों से पहाड़ी इलाकों में नदी-नालों के किनारे पानी से चलने वाले घराट लोगों को पौष्टिक आटा देकर स्वस्थ जीवन प्रदान करते थे, लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के चलते अब घराट संस्कृति आखिरी सांसें गिन रही हैं. आलम ये है कि आटा पीसने वाले सैकड़ों घराट उजड़ चुके हैं और जो बचे हैं उन पर इन दिनों लॉकडाउन का पहरा है.
ग्रामीण बताते हैं कि घराट का आटा आधुनिक चक्की के आटे से कहीं अधिक पौष्टिक होता है. घराटों के उजड़ने का सबसे बड़ा कारण आधुनिकता की दौड़ और बिजली परियोजनाएं हैं. लोग अब नदी-नालों में जाने के बजाय घर के नजदीक बिजली से चलने वाली आटा चक्की में आटा पिसाते हैं. वहीं, नदी नालों में बिजली परियोजनाएं लगने से इतना पानी ही नहीं बचता कि घराट को 12 महीने चलाया जा सके.
खैर लोगों को घराट में पीसे आटे के लाभ पता हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते लोग घराट में आटा पीसाने नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में लोग प्रशासन से लॉकडाउन में घराटों को चलाने की अनुमति मांग रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में धीरे-धीरे कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं. हालांकि बाहरी राज्यों से प्रदेश में आने वाले लोगों की वजह से ये मामले सामने आए हैं, जिससे प्रदेश के लोगों को भी खतरा है. वहीं, लोग लॉकडाउन के नियमों का पालन कर घर से बाहर निकलने में गुरेज कर रहे हैं, जिसका असर घराट संचालकों के व्यवसाय पर भी पड़ा है.