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सिरमौर में अदरक की अच्छी पैदावार पर दाम 'धड़ाम', किसान मायूस - हिमाचल प्रदेश न्यूज

1980 के दशक में अदरक उत्पादन में जिला सिरमौर का नाम पूरे एशिया में मशहूर था. जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधानसभा इलाकों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी. यहां के अधिकतर किसान अपना गुजर-बसर अदरक की खेती से करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर लिया है. इसका मुख्य वजह कम दाम, जिला में कोई उद्योग-मंडी का ना होना और फसलों में लगने वाली सड़न रोग है.

Farmers are facing problems due to low prices of ginger crop in Sirmaur
फोटो.
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Published : Dec 5, 2020, 6:53 PM IST

पांवटा साहिब: पहाड़ी क्षेत्र का अदरक हिमाचल ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग खूब पंसद करते हैं. 1980 के दशक में अदरक उत्पादन में जिला सिरमौर का नाम पूरे एशिया में मशहूर था.

जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधानसभा इलाकों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी. यहां के अधिकतर किसान अपना गुजर-बसर अदरक की खेती से करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर लिया है.

वीडियो.

पड़ोसी प्रदेशों की मंडियों में बेचनी पड़ती है फसल

इसका मुख्य वजह कम दाम, जिला में कोई उद्योग-मंडी का ना होना और फसलों में लगने वाली सड़न रोग है. यहां के किसानों को अपनी फसल को उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब या दिल्ली की मंडियों में बेचना पड़ता है.

ऐसे में किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस वजह से किसानों का अदरक की खेती मोह भंग हो रहा है. वहीं, अभी ताजा हालतों के बारे में बात करें तो इस बार कोरोना महामारी ने किसानों के मनोबल को तोड़ दिया है.

किसानों की आर्थिकी हुई कमजोर

अदरक जिला सिरमौर के किसानों की मुख्य नगदी फसल हुआ करती थी, मंडियों में अदरक के लगातार घटते दाम ने किसानों की आर्थिक स्थिति को कमजोर पड़ गई है. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि अदरक के उत्पादन में जुटे लोग अपनी आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए दूसरे विकल्प की तलाश में जुट गए हैं.

Farmers are facing problems due to low prices of ginger crop in Sirmaur
फोटो.

किसानों की सरकार से गुहार

इलाके के बुजुर्ग किसान कहते हैं कि इस बार अदरक की अच्छी फसल होने के बावजूद किसानों के चेहरे पर मायूसी है. जिसकी वजह उनकी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलना है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि प्रदेश के किसानों की तरफ ध्यान दिया जाए, ताकि पहाड़ी क्षेत्र के किसानों की आर्थिक में सुधार आ सके.

2406 हेक्टेयर भूमि में अदरक की खेती

आंकड़ों की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में कभी 2406 हेक्टेयर भूमि में अदरक की खेती की जाती थी, जिसमें लगभग 26872 मीट्रिक टन अदरक का उत्पादन होता था.

Farmers are facing problems due to low prices of ginger crop in Sirmaur
फोटो.

वहीं, जिला सिरमौर में 1434 हेक्टेयर भूमि में अदरक की खेती की जाती थी. इसमें लगभग 18440 मीट्रिक टन अदरक का उत्पादन होता था. पहले किसान यदि एक क्विंटल अदरक खेत में बुआई करता तो इसके एवज में करीब 10 से 16 गुना अधिक उत्पादन होता था.

फसल के घटे दाम

किसानों का कहना है कि अदरक का बोरा ढाई से तीन हजार रुपये मिलता था जो अब घटकर सात सौ से आठ सौ रुपये में बिक रहा है. ऐसे में किसान जाएं तो कहां जाएं.

किसानों ने निकाला दूसरा विकल्प

किसान सहायक केंद्र के प्रेम शर्मा ने बताया कि अदरक की खेती लुप्त होने के कई कारण हैं, कभी सिरमौर के किसान भारी मात्रा में अदरक की खेती का उत्पादन करते थे. यहां के किसानों की प्रमुख फसल थी पर अब सेकेंडरी फसल हो गई है. लोगों के पास अब काफी विकल्प आ गए हैं. अब किसान लहसुन, प्याज, टमाटर, गोभी, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च आदि की खेती कर रहे हैं.

पांवटा साहिब: पहाड़ी क्षेत्र का अदरक हिमाचल ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग खूब पंसद करते हैं. 1980 के दशक में अदरक उत्पादन में जिला सिरमौर का नाम पूरे एशिया में मशहूर था.

जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधानसभा इलाकों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी. यहां के अधिकतर किसान अपना गुजर-बसर अदरक की खेती से करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर लिया है.

वीडियो.

पड़ोसी प्रदेशों की मंडियों में बेचनी पड़ती है फसल

इसका मुख्य वजह कम दाम, जिला में कोई उद्योग-मंडी का ना होना और फसलों में लगने वाली सड़न रोग है. यहां के किसानों को अपनी फसल को उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब या दिल्ली की मंडियों में बेचना पड़ता है.

ऐसे में किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस वजह से किसानों का अदरक की खेती मोह भंग हो रहा है. वहीं, अभी ताजा हालतों के बारे में बात करें तो इस बार कोरोना महामारी ने किसानों के मनोबल को तोड़ दिया है.

किसानों की आर्थिकी हुई कमजोर

अदरक जिला सिरमौर के किसानों की मुख्य नगदी फसल हुआ करती थी, मंडियों में अदरक के लगातार घटते दाम ने किसानों की आर्थिक स्थिति को कमजोर पड़ गई है. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि अदरक के उत्पादन में जुटे लोग अपनी आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए दूसरे विकल्प की तलाश में जुट गए हैं.

Farmers are facing problems due to low prices of ginger crop in Sirmaur
फोटो.

किसानों की सरकार से गुहार

इलाके के बुजुर्ग किसान कहते हैं कि इस बार अदरक की अच्छी फसल होने के बावजूद किसानों के चेहरे पर मायूसी है. जिसकी वजह उनकी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलना है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि प्रदेश के किसानों की तरफ ध्यान दिया जाए, ताकि पहाड़ी क्षेत्र के किसानों की आर्थिक में सुधार आ सके.

2406 हेक्टेयर भूमि में अदरक की खेती

आंकड़ों की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में कभी 2406 हेक्टेयर भूमि में अदरक की खेती की जाती थी, जिसमें लगभग 26872 मीट्रिक टन अदरक का उत्पादन होता था.

Farmers are facing problems due to low prices of ginger crop in Sirmaur
फोटो.

वहीं, जिला सिरमौर में 1434 हेक्टेयर भूमि में अदरक की खेती की जाती थी. इसमें लगभग 18440 मीट्रिक टन अदरक का उत्पादन होता था. पहले किसान यदि एक क्विंटल अदरक खेत में बुआई करता तो इसके एवज में करीब 10 से 16 गुना अधिक उत्पादन होता था.

फसल के घटे दाम

किसानों का कहना है कि अदरक का बोरा ढाई से तीन हजार रुपये मिलता था जो अब घटकर सात सौ से आठ सौ रुपये में बिक रहा है. ऐसे में किसान जाएं तो कहां जाएं.

किसानों ने निकाला दूसरा विकल्प

किसान सहायक केंद्र के प्रेम शर्मा ने बताया कि अदरक की खेती लुप्त होने के कई कारण हैं, कभी सिरमौर के किसान भारी मात्रा में अदरक की खेती का उत्पादन करते थे. यहां के किसानों की प्रमुख फसल थी पर अब सेकेंडरी फसल हो गई है. लोगों के पास अब काफी विकल्प आ गए हैं. अब किसान लहसुन, प्याज, टमाटर, गोभी, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च आदि की खेती कर रहे हैं.

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