नाहन: कहा जाता है कि कला छुपाये नहीं छुपती और उसके लिए कोई न कोई मंच मिल ही जाता है. वनों में पेड़ों की जड़ों, शाखाओं में भी प्रकृति अपना स्वरूप दिखाती है. इन सूखी जड़ों आदि से कला कृतियों को बनाना ड्रिफ्टवुड कला कहा जाता है.
दरअसल, इसी कला में जिला सिरमौर के शंभूवाला गांव के दो भाई आशीष और अनूप भी जुड़े हुए हैं, जोकि पेशे से बढ़ई का काम करते हैं. साथ ही फुरसत में ड्रिफ्टवुड कला से जुड़े हुए हैं. ये दोनों भाई जंगल से सूखी जड़ों और लकड़ी को इकट्ठा करते हैं और फिर उनसे कई तरह के कला उत्पाद बना रहे हैं. इन कला कृतियों को पॉलिश और आकार देकर उन्हें सजाया जाता है.
जब इन कला कृतियों को बेचने के लिए कोई मार्किट इन्हें नहीं मिली, तो इन्होंने एनएच-7 चंडीगढ़-देहरादून पर सड़क किनारे प्रदर्शनी लगाई है. यहां आते जाते पर्यटक इन उत्पादों को देखते हैं ओर धीरे धीरे अब इन कला कृतियों के खरीददार भी बढ़ने लगे हैं. इससे इन दोनों की आर्थिकी भी अच्छी होने लगी है.
कलाकार आशीष का कहना है कि सरकार उनकी बहुत सहायता कर रही है और डीआरडीए के माध्यम से उन्हें काम मिल रहा है. साथ ही उनके कुछ कला उत्पाद हिमाचल संग्राहालय त्रिलोकपुर में भी रखे गए हैं. ये दोनों भाई देश के लिए कुछ करना चाहते हैं ओर कला के माध्यम से देश सेवा में जुटे हुए हैं.
कलाकार अनूप ने बताया कि वो बढ़ई का काम करते हैं. उन्होंने कहा कि जंगल में जड़ों आदि में उन्हें विभिन्न आकार दिखाए पड़े और उन्होंने ड्रिफ्टवुड को अपना पेशा बना लिया. आज उनका कार्य अच्छा चल रहा है. दोनों भाई इसी से जुड़े हैं और स्वरोजगार की ओर बढ़ रहे हैं. सरकार ने भी उनकी बहुत मदद की है और उन्हें उम्मीद है कि जल्द वो देश के लिए कला के माध्यम से और सेवा कर सकेंगे. अनूप ने बताया कि दोनों भाई अपने घर के पास सड़क के किनारे अपनी कला कृतियों को प्रदर्शित करते हैं और उनकी अच्छी आमदनी भी हो रही है.
चंडीगढ़ से आये सैलानी ने बताया कि इनकी कला कृतियां बहुत प्राकृतिक हैं और वो कई बार आते जाते इनसे ये उत्पाद खरीदते हैं. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्टार्टअप का बहुत अच्छा उदाहरण है. सैलानी ने कहा कि इन कलाकारों में बहुत प्रतिभा है और इनके उत्पाद बहुत कलात्मक हैं. सभी लोगों को ऐसे स्वरोजगार वालों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि दूसरे लोग भी इनसे प्रेरणा भी लें ओर यह कला भी जीवंत रहे.
कुल मिलाकर एक छोटे से गांव के इन कलाकारों ने सिद्ध किया है कि कला को स्वरोजगार से जोड़कर भी अपनी आर्थिकी सुदृढ़ की जा सकती है.