शिमला: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर छह मार्च को अपनी सरकार का तीसरा बजट पेश करेने जा रहे हैं. हिमाचल के कर्मचारियों, किसानों, छात्रों से लेकर हर वर्ग को इस बजट से काफी उम्मीदें हैं. प्रदेश के हर वर्ग को लगता है कि उनके लिए इस बजट में कुछ न कुछ जरूर होगा.
वहीं, प्रदेश का युवा चाहता है कि खेलों की तरफ सरकार विशेष ध्यान देते हुए इस बजट में कोई खास योजना की घोषणा करे. राजधानी शिमला के युवाओं की चाहत है कि यहां पर एक ऐसा खेल मैदान बने, जिसमें युवा अपने खेल को निखार सकें, ताकि वह भी पड़ोसी राज्य हरियाणा और पंजाब की तरह देश के लिए खेलने को सोच सके, लेकिन अफसोस की बात है कि राजधानी के क्या बच्चे, क्या युवा, सभी मोबाइल से चिपके हुए मिलते हैं और ऐसा हो भी क्यों न प्रदेश के युवा बेबस हैं क्योंकि प्रदेश में खलने के लिए मैदानों की कमी है.
प्रदेश सरकार हरियाणा और पंजाब की तरह युवाओं से खेलों में शानदार प्रदर्शन की उम्मीद करती है, लेकिन जब वैसी सुविधाओं की बात आती है तो वह बैकफुट पर नजर आती है क्योंकि खेलों के लिए सबसे जरूरी खेल मैदान है और राजधानी शिमला में कोई खेल मैदान नहीं है.
इसी मामले पर जब राजधानी शिमला के युवाओं से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि ढाई लाख से अधिक की आबादी वाले शिमला शहर में सरकार एक भी खेल मैदान नहीं बना पाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिट इंडिया अभियान के तहत शिमला में भी विभिन्न वर्गों की खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाता रहा है, लेकिन खेल मैदान के बगैर युवाओं की प्रतिभा कैसे निखर पाएगी, यहा एक बड़ा सवाल है.
उधर, राजधानी के युवा नशे की गर्त में डूबते जा रहे हैं. ऐसे में खेल मैदान की जरूरत और भी ज्यादा बढ़ जाती है. सिर्फ नारा देने से कोई भी देश और युवा फिट नहीं रह सकता. इसके लिए बच्चों को ग्राउंड के अलावा वह तमाम तरह की सुविधाएं देनी होगी, जो एक खिलाड़ी के लिए जरूरी होती है. हैरानी इस बात की है कि प्रदेश की राजधानी में बच्चों के पास एक भी बड़ा ग्राऊंड नहीं है, जहां बच्चे खेल पाएं.
मुख्यमंत्री वीरभद्र सरकार ने एक दशक पहले शिमला से कुछ दूरी पर कटासनी में खेल मैदान बनाने का दावा जरूर किया था, लेकिन यह मैदान भी राजनीतिक इच्छा शक्ति न होने से आज तक नहीं बन पाया है. इसी तरह शिमला के बीचों-बीच अन्नाडेल में खूबसूरत मैदान है, लेकिन यह ग्राऊंड आर्मी के पास होने से यहां किसी को खेलने की अनुमति नहीं होती. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का समरहिल, बीसीएस और पुलिस का भी भराड़ी में ग्राऊंड है. यहां भी बिना अनुमति के बाहरी लोगों को खेलने की अनुमति नहीं है. इनके ग्राऊंड अगर बुक करवाने हैं तो बच्चों को मोटी रकम चुकानी पड़ती है. इस वजह से बच्चों में छुपी हुई प्रतिभा आगे नहीं आ पा रही है.
यहां ग्राउंड बुक करने को देना होता है इतना पैसा
बीसीएस स्कूल में एक दिन की बुकिंग के 9 हजार रुपये है. समरहिल में 5 हजार रुपये में खेल मैदान बुक होता है तो पुलिस ग्राउंड भराड़ी में प्रतिदिन के हिसाब पैसे देने पड़ते हैं. इन खेल मैदानों में खासकर मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे नहीं खेल पाते. खेल मैदान के अभाव में बच्चों का मोबाइल से चिपके रहने के सिवाय और कोई चारा नहीं है.
क्या कहते हैं युवा
विकासनगर के कौशल का कहना है कि बिना खेल मैदान के युवा कैसे प्रदेश के लिए मैडल लाएंगे. उन्होंने कहा कि मैदान न होने से प्रदेश के युवा नशे की तरफ जा रहे हैं. सरकार को शिमला में खेल के मैदान के लिए अलग से बजट बनाना चाहिए, ताकि यहां के बच्चे भी प्रदेश के लिए मैडल ला सके.
शिमला के करन राज ने कहा कि शिमला में एक भी खेल का मैदान नहीं है. इस बजट में प्रदेश सरकार को कम से कम एक मैदान तो शिमला में बनाना चाहिए, जहां बच्चे बिना रोक टोक आ-जा सके. करन के मुताबिक वह स्कूल में छुट्टी वाले दिन कहीं खेलने जाना चाहते हैं, लेकिन जाएं कहां, यहां पर एक भी मैदान न होने के कारण उन्हें सारा दिन घर पर ही गुजारना पड़ता है.
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