शिमला: दो साल पहले 23 जून को वीरभद्र सिंह स्वास्थ्य के मोर्चे पर जूझ रहे थे. उस समय प्रदेश भर के समर्थकों ने उनके लिए प्रार्थनाएं कीं, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. हर जन्मदिन पर अपार जनसमूह के बीच हर्षित मुद्रा में दिखने वाले वीरभद्र सिंह 23 जून 2021 को जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे. फिर आया जुलाई महीना और 8 तारीख को वीरभद्र सिंह अनंत के सफर पर निकल पड़े. छह बार के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के टॉप के नेताओं की संगत में निखरे वीरभद्र सिंह को राजनीति का राजा यूं ही नहीं कहा जाता. उन्होंने छह दशक के सियासी सफर में ये दौलत कमाई थी. दिलचस्प बात है कि कांग्रेस में रहते हुए भी वीरभद्र सिंह कई बार पार्टी लाइन से अलग हटकर भी विचार रखते थे. ये उनकी स्वतंत्र और मौलिक सोच का परिणाम था.
राम मंदिर के रहे पक्षधर: वे राममंदिर निर्माण के भी पक्षधर थे. धर्मांतरण विरोधी विधेयक लाने वाले वीरभद्र सिंह देश के पहले राजनेता थे. कांग्रेस सरकार के मुखिया रहते हुए उन्होंने सबसे पहले धर्मांतरण विरोधी विधेयक लाया. उनके निधन पर विश्व हिंदू परिषद ने भी बकायदा अपने लेटर हैड पर शोक संदेश जारी किया था. वीरभद्र सिंह विपक्ष व सत्तापक्ष में समान रूप से लोकप्रिय थे. इस समय हिमाचल की राजनीति में उनके विराट अनुभव की कमी साफ महसूस की जाती है.
सिंह इज किंग के नाम से जाने जाते थे: वीरभद्र सिंह के लिए अकसर सिंह इज किंग का संबोधन दिया जाता था. जिस तरह से सियासत में जुझारू प्रवृति के थे, उसी प्रकार वीरभद्र सिंह ने दो बार कोविड संक्रमण को भी मात दी थी. वर्ष 2021 में अप्रैल महीने से वे आईजीएमसी अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष करते रहे थे. दो बार कोविड से उबरना उनके जीवट की निशानी थी, लेकिन उम्र के उस पड़ाव में अन्य गंभीर बीमारियों से वे पार नहीं पा सके थे.
छह दशक का विशाल सियासी अनुभव: वीरभद्र सिंह ने छह बार हिमाचल के सीएम पद की कमान संभाली. करीब छह दशक के सुदीर्घ सियासी जीवन में उन्होंने हिमाचल की जनता के दिल में खास जगह बनाई थी. एक स्वर में ये स्वीकार किया जाता है कि इस पहाड़ी राज्य की नींव हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार ने रखी और वीरभद्र सिंह ने उस नींव पर विकास का मजबूत ढांचा खड़ा किया. देश के महान सपूत और कांग्रेस के कद्दावर राजनेता लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा से वीरभद्र सिंह राजनीति में आए थे. राजनीति में रहकर उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ काम किया. अटल बिहारी वाजपेयी से भी उनके अच्छे संबंध रहे. अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान पर शिमला में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वीरभद्र सिंह प्रमुखता के साथ शामिल हुए थे.
वीर भी और भद्र भी, जनता के प्रति संवेदनशील: वीरभद्र सिंह सियासी वीर थे तो जनता के लिए भद्र स्वभाव वाले भी. साधनहीन लोगों के प्रति उनके मन में करुणा थी. एक राजनेता का प्रमुख गुण अफसरशाही पर पकड़ का होता है. वीरभद्र सिंह की अफसरशाही पर गजब की पकड़ थी. इसके अलावा जनता के साथ वे लोकल बोली में कनेक्ट करते थे. छोटे और बड़े लोगों में समान रूप से लोकप्रिय वीरभद्र सिंह के निजी आवास होलीलॉज के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले रहते थे. सीएम रहते हुए वीरभद्र सिंह सरकारी आवास ओक ओवर में न के बराबर रहते थे. तब सरकार होली लॉज से ही चलती थी.
वीरभद्र का हिमाचल को लेकर विजन क्रिस्टल क्लियर: वीरभद्र सिंह एक कुशल प्रशासक के तौर पर तो जाने ही जाते थे, उनका प्रदेश के विकास को लेकर भी क्रिस्टल क्लियर विजन था. हिमाचल प्रदेश में इस समय स्वास्थ्य व अन्य क्षेत्रों में जो आधारभूत ढांचा है, उसके पीछे वीरभद्र सिंह का ही विजन रहा है. आईजीएमसी अस्पताल में सुपर स्पेशिएलिटी डिपार्टमेंट्स शुरू करवाने में उनका योगदान है. यहां ओपन हार्ट सर्जरी की सुविधा इनके ही कार्यकाल में आरंभ हुई थी. तब वीरभद्र सिंह के प्रयासों से ही एम्स की टीम ने वर्ष 2005 में यहां आकर शुरुआती ऑपरेशन किए थे.
भाजपा के मिशन रिपीट को मिलाया था धूल में: वर्ष 2012 के चुनाव से पूर्व हिमाचल में भाजपा काफी अच्छी स्थिति में थी. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार को भरोसा था कि भाजपा मिशन रिपीट में कामयाब होगी. तब वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से वापिस हिमाचल आए और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में ले आए. सीएम के तौर पर ये उनका आखिरी कार्यकाल था. अलबत्ता 2017 के चुनाव में वे अर्की से जीत कर आए, लेकिन कांग्रेस चुनाव हार गई और जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी.
जनता की नब्ज पहचाने थे वीरभद्र: जिस तरह एक अनुभवी वैद्य नब्ज पकड़ते ही रोग का पता लगा लेता है, उसी तरह वीरभद्र सिंह भी सियासी वैद्य के रूप में जनता की नब्ज पहचानते थे. अपने निजी आवास होली लॉज पहुंचने वाले हर जरूरतमंद को वीरभद्र सिंह ने कभी खाली हाथ नहीं लौटाया. बहुत कम लोगों को ये तथ्य मालूम है कि वीरभद्र सिंह अपने निजी पैसे से साधनहीन छात्रों की फीस आदि भरते रहे. हिमाचल के मीडिया संसार की वरिष्ठतम पीढ़ियों में शुमार प्रकाश लोहुमी, कृष्ण भानु, डॉ. एमपीएस राणा, धनंजय शर्मा, संजीव शर्मा, अर्चना फुल्ल, पंकज शर्मा आदि ने वीरभद्र सिंह के राजनीतिक जीवन को करीब से देखा. इन सभी का कहना है कि वीरभद्र सिंह का कद इतना विशाल रहा है कि उसे पक्ष-विपक्ष के दायरे में नहीं बांधा जा सकता.
6 बार मुख्मंत्री चुने गए वीरभद्र सिंह: जो राजनेता छह बार प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, उसके जनता से जुड़ाव का अंदाजा लगाया जा सकता है. हिमाचल का पत्रकारिता जगत एक मत से स्वीकार करता है कि वीरभद्र सिंह विजनरी नेता रहे और उनका अफसरशाही पर जबरदस्त कंट्रोल था. यही कारण है कि विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने में वे सफल रहे थे. जनता से सीधा संवाद और समर्थकों का आंख मूंदकर भरोसा करना वीरभद्र सिंह को वीरभद्र सिंह बनाता था.
वीरभद्र सिंह की राजनीतिक पारी: तेरह साल की आयु में बुशहर रियासत की गद्दी संभालने वाले वीरभद्र सिंह का जन्म वर्ष 1934 में हुआ था. लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा से वे राजनीति में आए. वीरभद्र सिंह इतिहास के अध्यापन का शौक रखते थे, लेकिन किस्मत उन्हें सियासत में ले आई. पहली बार वर्ष 1983 में वे हिमाचल के मुख्यमंत्री बने थे. उसके बाद वीरभद्र सिंह ने छह बार सीएम पद संभाला. वीरभद्र सिंह ने 1983 से 1985, फिर 1985 से 1990 तक दूसरी बार, वर्ष 1993 से 1998 की अवधि में तीसरी बार, 1998 में रोचक सियासी परिस्थितियों में सीएम की शपथ ली थी, लेकिन बाद में सरकार भाजपा की बनी. तकनीकी रूप से चौथी बार वे सीएम रहे. फिर 2003 से 2007 पांचवीं बार और 2012 से 2017 छठी बार मुख्यमंत्री बने.
लोकसभा से शुरू की सियासी पारी: सियासत में शुरुआत वीरभद्र सिंह ने लोकसभा से की थी. वीरभद्र सिंह सबसे पहले महासू सीट से 1962 में सांसद चुने गए थे. फिर 1967, 1971, 1980 और 2009 में लोकसभा सांसद चुने गए. वे केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी रहे और राज्यमंत्री भी. इंदिरा गांधी सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक पर्यटन व नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री रहे. मनमोहन सिंह सरकार में वे इस्पात मंत्री रहे. साथ ही एमएसएमई विभाग भी संभाला. बाद में वे 2012 में फिर से हिमाचल की राजनीति में आ गए थे.
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