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हिमाचल को किसने धकेला कर्ज के दलदल में, श्वेत पत्र में सामने आएगी सच्चाई

हिमाचल की सुखविंदर सरकार आर्थिक हालत पर श्वेत पत्र लाएगी. इसको लेकर कमेटी का गठन किया गया है. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में कमेटी बनाई गई है. हिमाचल को कर्ज के दलदल में डालने के लिए भाजपा-कांग्रेस का अपना-अपना दावा है.

हिमाचल को किसने धकेला कर्ज के दलदल में
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Published : May 4, 2023, 8:34 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाने का ऐलान किया है. मार्च महीने में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था उनकी सरकार वित्तीय हालत पर व्हाइट पेपर लाएगी. फिर विधानसभा में बजट सत्र के दौरान भी नियम-130 के तहत चर्चा के जवाब में सीएम सुखविंदर सिंह ने कहा था कि कांग्रेस सरकार श्वेत पत्र लाकर सच्चाई जनता के समक्ष रखेगी. अब बुधवार को कैबिनेट मीटिंग में सरकार ने हिमाचल की आर्थिक हालत को लेकर व्हाइट पेपर लाने का फैसला लिया. इसके लिए बाकायदा कमेटी का गठन किया गया है. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में कमेटी बनाई गई है.

हिमाचल पर 75 हजार से ज्यादा कर्ज : हिमाचल पर इस समय 75 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. हालत ये है कि सीएम का पद संभालने के बाद सुखविंदर सिंह ने यहां तक बयान दे दिया था कि हिमाचल श्रीलंका बनने की राह पर है. कर्ज को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे की सरकार को जिम्मेदार बताते रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि दोनों ही सरकारों ने कर्ज लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. इस समय हालत ये हैं कि कांग्रेस सरकार को नए वेतन आयोग के लागू होने के बाद एरियर की देनदारी चुकानी है. ये कम से कम 9 हजार करोड़ रुपए बनते हैं. इसके अलावा डीए की बकाया किश्तों व एरियर को चुकाने के लिए भी करोड़ों रुपए चाहिए. आलम ये है कि बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. खजाने को राहत देने के लिए सरकार ने वाटर सेस लगाने का फैसला लिया, लेकिन उसके रास्ते में भी अड़चन आ रही है. कर्मचारियों को एरियर व अन्य वित्तीय लाभ देने का सरकार पर बहुत दबाव है. इसी प्रेशर को रिलीज करने के लिए शायद सुखविंदर सिंह सरकार ने श्वेत पत्र का दांव खेला है.

ये है हिमाचल की वित्तीय स्थिति: हिमाचल सरकार पर इस समय 75 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. आंकड़ों पर नजर डालें तो हिमाचल पर वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में 68 हजार 630 करोड़ रुपए का कर्ज था. तब इस कुल कर्ज में 45 हजार 297 करोड़ रुपए मूल कर्ज था और 23333 करोड़ रुपए ब्याज की देनदारी के रूप में था. हिमाचल की स्थिति ये है कि सरकार को कर्ज पर चढ़े ब्याज को चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. कैग रिपोर्ट में भी दर्ज है कि आगामी 5 साल के भीतर राज्य सरकार को 27,677 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के कर्ज का आंकड़ा लें तो एक साल में ही कुल लोन का 10 प्रतिशत यानी 6992 करोड़ एक साल में अदा करना है. राज्य सरकार को अगले 2 से 5 साल की अवधि में कुल लोन का 40 फीसदी यानी 27677 करोड़ रुपए चुकाना है. इसके अलावा अगले 5 साल के दौरान यानी 2026-27 तक ब्याज सहित लोक ऋण की अदायगी प्रति वर्ष 6926 करोड़ होगी.

कमजोर आर्थिक हालत का कारण यह भी: हिमाचल की कमजोर आर्थिक हालत की एक बानगी कर्मचारियों व पेंशनर्स पर हो रहे खर्च से मिलती है. प्रदेश में सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च निरंतर बढ़ रहा है. वर्ष 2017-18 में वेतन व मजदूरी पर 10765.83 करोड़ रुपए खर्च हुए. इस दौरान पेंशन पर 4708.85 करोड़ रुपए व ब्याज के भुगतान पर सरकार ने 3788 करोड़ रुपए खर्च किए, फिर 2018-19 में ये खर्च और बढ़ा. वेतन पर 11210.42 करोड़ रुपए, पेंशन पर 4974.77 करोड़ व ब्याज भुगतान पर 4021.52 करोड़ रुपए खर्च किए गए. फिर वित्त वर्ष 2020-21 में वेतन पर खर्च बढकऱ 12192.52 करोड़ रुपए, पेंशन पर 6398.91 व ब्याज भुगतान पर 4640.79 करोड़ रुपए खर्च हुआ.

हर सरकार में बढ़ता गया कर्ज: हिमाचल में जब 2012 में प्रेम कुमार धूमल सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. फिर वीरभद्र सिंह सरकार के समय में ये कर्ज बढक़र 47906 करोड़ रुपए हो गया. बाद में जयराम सरकार सत्ता में आई तो प्रदेश पर कर्ज 64904 करोड़ रुपए से अधिक हो गया. अब ये कर्ज 76 हजार करोड़ रुपए के करीब है. फिलहाल, सुखविंदर सिंह सरकार की तरफ से गठित कमेटी के जो श्वेत पत्र लाएगी, उसमें सारा ब्यौरा होगा. ये कमेटी हिमाचल को कर्ज के बोझ से निजात दिलाने के लिए उपायों को भी सुझाएगी. हिमाचल प्रदेश में पूर्व में सरकार के खर्च कम करने के लिए कई दावे किए गए, लेकिन उनमें गंभीरता नहीं दिखाई दी.

भाजपा-कांग्रेस का अपना-अपना दावा: पूर्व में वीरभद्र सिंह सरकार के समय विद्या स्टोक्स की अगुवाई में संसाधन जुटाने व खर्च कम करने के उपाय तलाशने के लिए कमेटी बनी थी. रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी की क्या सिफारिशें थीं और उन पर क्या अमल हुआ, ये कोई नहीं जानता. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर पहले ही श्वेत पत्र लाने की कवायद का स्वागत कर चुके हैं. भाजपा का मानना है कि राज्य पर कर्ज का बोझ लादने में कांग्रेस जिम्मेदार है, जबकि कांग्रेस कर्ज की ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ती है. अब देखना है कि सुखविंदर सिंह सरकार की ये कमेटी राज्य की आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र में क्या-क्या पहलू शामिल करती है और इसकी रिपोर्ट क्या औपचारिकता होगी या फिर इसमें कोई गंभीरता होगी.

ये भी पढ़ें : 'हालात ऐसे हैं कि पिछली सरकार के कर्ज को चुकाने के लिए लेना पड़ रहा कर्ज'

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाने का ऐलान किया है. मार्च महीने में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था उनकी सरकार वित्तीय हालत पर व्हाइट पेपर लाएगी. फिर विधानसभा में बजट सत्र के दौरान भी नियम-130 के तहत चर्चा के जवाब में सीएम सुखविंदर सिंह ने कहा था कि कांग्रेस सरकार श्वेत पत्र लाकर सच्चाई जनता के समक्ष रखेगी. अब बुधवार को कैबिनेट मीटिंग में सरकार ने हिमाचल की आर्थिक हालत को लेकर व्हाइट पेपर लाने का फैसला लिया. इसके लिए बाकायदा कमेटी का गठन किया गया है. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में कमेटी बनाई गई है.

हिमाचल पर 75 हजार से ज्यादा कर्ज : हिमाचल पर इस समय 75 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. हालत ये है कि सीएम का पद संभालने के बाद सुखविंदर सिंह ने यहां तक बयान दे दिया था कि हिमाचल श्रीलंका बनने की राह पर है. कर्ज को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे की सरकार को जिम्मेदार बताते रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि दोनों ही सरकारों ने कर्ज लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. इस समय हालत ये हैं कि कांग्रेस सरकार को नए वेतन आयोग के लागू होने के बाद एरियर की देनदारी चुकानी है. ये कम से कम 9 हजार करोड़ रुपए बनते हैं. इसके अलावा डीए की बकाया किश्तों व एरियर को चुकाने के लिए भी करोड़ों रुपए चाहिए. आलम ये है कि बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. खजाने को राहत देने के लिए सरकार ने वाटर सेस लगाने का फैसला लिया, लेकिन उसके रास्ते में भी अड़चन आ रही है. कर्मचारियों को एरियर व अन्य वित्तीय लाभ देने का सरकार पर बहुत दबाव है. इसी प्रेशर को रिलीज करने के लिए शायद सुखविंदर सिंह सरकार ने श्वेत पत्र का दांव खेला है.

ये है हिमाचल की वित्तीय स्थिति: हिमाचल सरकार पर इस समय 75 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. आंकड़ों पर नजर डालें तो हिमाचल पर वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में 68 हजार 630 करोड़ रुपए का कर्ज था. तब इस कुल कर्ज में 45 हजार 297 करोड़ रुपए मूल कर्ज था और 23333 करोड़ रुपए ब्याज की देनदारी के रूप में था. हिमाचल की स्थिति ये है कि सरकार को कर्ज पर चढ़े ब्याज को चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. कैग रिपोर्ट में भी दर्ज है कि आगामी 5 साल के भीतर राज्य सरकार को 27,677 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के कर्ज का आंकड़ा लें तो एक साल में ही कुल लोन का 10 प्रतिशत यानी 6992 करोड़ एक साल में अदा करना है. राज्य सरकार को अगले 2 से 5 साल की अवधि में कुल लोन का 40 फीसदी यानी 27677 करोड़ रुपए चुकाना है. इसके अलावा अगले 5 साल के दौरान यानी 2026-27 तक ब्याज सहित लोक ऋण की अदायगी प्रति वर्ष 6926 करोड़ होगी.

कमजोर आर्थिक हालत का कारण यह भी: हिमाचल की कमजोर आर्थिक हालत की एक बानगी कर्मचारियों व पेंशनर्स पर हो रहे खर्च से मिलती है. प्रदेश में सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च निरंतर बढ़ रहा है. वर्ष 2017-18 में वेतन व मजदूरी पर 10765.83 करोड़ रुपए खर्च हुए. इस दौरान पेंशन पर 4708.85 करोड़ रुपए व ब्याज के भुगतान पर सरकार ने 3788 करोड़ रुपए खर्च किए, फिर 2018-19 में ये खर्च और बढ़ा. वेतन पर 11210.42 करोड़ रुपए, पेंशन पर 4974.77 करोड़ व ब्याज भुगतान पर 4021.52 करोड़ रुपए खर्च किए गए. फिर वित्त वर्ष 2020-21 में वेतन पर खर्च बढकऱ 12192.52 करोड़ रुपए, पेंशन पर 6398.91 व ब्याज भुगतान पर 4640.79 करोड़ रुपए खर्च हुआ.

हर सरकार में बढ़ता गया कर्ज: हिमाचल में जब 2012 में प्रेम कुमार धूमल सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. फिर वीरभद्र सिंह सरकार के समय में ये कर्ज बढक़र 47906 करोड़ रुपए हो गया. बाद में जयराम सरकार सत्ता में आई तो प्रदेश पर कर्ज 64904 करोड़ रुपए से अधिक हो गया. अब ये कर्ज 76 हजार करोड़ रुपए के करीब है. फिलहाल, सुखविंदर सिंह सरकार की तरफ से गठित कमेटी के जो श्वेत पत्र लाएगी, उसमें सारा ब्यौरा होगा. ये कमेटी हिमाचल को कर्ज के बोझ से निजात दिलाने के लिए उपायों को भी सुझाएगी. हिमाचल प्रदेश में पूर्व में सरकार के खर्च कम करने के लिए कई दावे किए गए, लेकिन उनमें गंभीरता नहीं दिखाई दी.

भाजपा-कांग्रेस का अपना-अपना दावा: पूर्व में वीरभद्र सिंह सरकार के समय विद्या स्टोक्स की अगुवाई में संसाधन जुटाने व खर्च कम करने के उपाय तलाशने के लिए कमेटी बनी थी. रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी की क्या सिफारिशें थीं और उन पर क्या अमल हुआ, ये कोई नहीं जानता. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर पहले ही श्वेत पत्र लाने की कवायद का स्वागत कर चुके हैं. भाजपा का मानना है कि राज्य पर कर्ज का बोझ लादने में कांग्रेस जिम्मेदार है, जबकि कांग्रेस कर्ज की ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ती है. अब देखना है कि सुखविंदर सिंह सरकार की ये कमेटी राज्य की आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र में क्या-क्या पहलू शामिल करती है और इसकी रिपोर्ट क्या औपचारिकता होगी या फिर इसमें कोई गंभीरता होगी.

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