शिमला: हिमाचल प्रदेश में 16 जनवरी से देश के साथ-साथ कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हो गया है. कोरोना वैक्सीन से जुड़े ज्यादातर लोगों के सवाल वैक्सीन लगाने और उसके बाद वैक्सीन का कोई साइड इफैक्ट ना हो, यहीं पर खत्म हो जाते हैं, लेकिन कोरोना वैक्सीनेशन के बाद इक्कट्ठा होने वाले कंटामिनटेड बॉयो वेस्ट का निष्पादन कैसे किया जाता है, यह भी बड़ा सवाल है.
हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े असप्ताल आईजीएमसी में कोविड वैक्सीन लगाने के लिए दो सेंटर बनाय गए हैं. प्रत्येक सेंटर में 100 लाभार्थी को वैक्सीन लगाई जा रही है और अब तक 500 से अधिक कोरोना वारियर्स को वैक्सीन लगवा चुके हैं. ऐसे में बायोमेडिकल वेस्ट का दुरुपयोग न हो और ठीक से डिसपोज किया जाए, इसके लिए विशेष निर्देश दिए गए हैं.
पहले से तय है बायोमेडिकल वेस्ट के लिए नियम
इस संबंध में जब आईजीएमसी में कोरोना वैक्सीन के नोडल अधिकारी डॉ. शाद रिजवी ने बताया कि पॉल्यूशन बोर्ड की ओर से बायोमेडिकल वेस्ट के लिए पहले से ही नियम तय हैं. उन्ही के आधार पर डिसपोज ऑफ किया जाता है. जो वैक्सीन बच जाती है, उसे भी नियमों के तहत 48 घंटे फ्रीज करने के बाद डिसकार्ड किया जाता है.
वहीं, वैक्सीन को लेकर डॉ. शाद ने बताया कि जो कोरोना वैक्सीन एक बार खुल गई, वह चार घंटे तक इस्तेमाल में लाई जा सकती है, उसके बाद उसे डिसकार्ड कर दिया जाता है. इसके अलावा अलग-अलग रंग के कंटेनर में सिरेजं, कॉटन, गलब्ज को फैंक दिया जाता है. जिसके बाद इस वेस्ट को एक हाइपो सोल्यूशन में धो कर डिसकार्ड किया जाता है.
वैक्सिनेशन अधिकारी कल्पना ने बताई प्रक्रिया
इसी सम्बंध में कोरोना वैक्सीन लगाने वाले वैक्सिनेशन अधिकारी कल्पना से बात कि गयी तो उन्होंने बताया कि हम बायोमेडिकल वेस्ट को सावधानी से डिसकार्ड करते हैं. सबसे पहले सिरेंज की निडल को मशीन द्वारा जलाया जाता है फिर उसे विशेष प्रकार के कचरे के लिए बनाए गए डिब्बे में फेंक दिया जाता है. कॉटन या वाइल को तीन तरह अलग-अलग रंग के बनाए गए डिब्बे में डिसकार्ड किया जाता है. जहां से सफाई कर्मचारी उसे उठा कर ले जाते हैं.
निजी कंपनी के साथ हुआ है करार
वहीं, डेंटल कॉलेज में भी हर दिन 100 लोगों को वैक्सीन लगाने की व्यवस्था की गई है. वहां किस तरह बायोमेडिकल वेस्ट का डिसपोज किया जाता है. इस बारे में डेंटल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. आशु गुप्ता ने बताया कि लाभार्थी को कोरोना वैक्सीन लगाने के बाद जो भी बायोमेडिकल वेस्ट होता है. जैसे सिरेंज, कॉटन, या वाईल उसे तीन तरह अलग अलग रंग के बनाए गए डिब्बे में डिसकार्ड किया जाता है और उसे बार कोड लगा कर एक आउट सोर्स की हुई निजी कंपनी को सौंप दिया जाता है, जो उसे डिसपोज कर देते हैं. वहीं, जो वैक्सीन बच जाती है, उसे आइजीएमसी को वापस कर दिया जाता है.
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