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शिमला संसदीय क्षेत्र में 5 साल गूंजे ये मुद्दे, देखिए ETV BHARAT की स्पेशल रिपोर्ट

प्रदेश की चार लोकसभा सीटों में से शिमला संसदीय सीट आरक्षित है. इस सीट पर भाजपा के वीरेंद्र कश्यप लगातार दो बार जीत चुके हैं. इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट कर सुरेश कश्यप को टिकट दिया है.

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Published : May 8, 2019, 9:03 AM IST

शिमला: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए हिमाचल के वोटर्स तैयार हैं और सरकार के पिछले 5 सालों के काम कसौटी पर कसे जाएंगे. चुनावी वादों को अमलीजामा पहनाया गया या नहीं इस पर जनता ने विचार कर रही है. अकसर देखा जाता है कि चुनाव के दौरान जितनी आसानी से लोगों के साथ विकास के वादे किए जाते हैं उनको जमीनी स्तर पर उतारने के लिए बाद में उतनी ही परेशानियां दिखाई जाती है.

प्रदेश की चार लोकसभा सीटों में से शिमला संसदीय सीट आरक्षित है. इस सीट पर भाजपा के वीरेंद्र कश्यप लगातार दो बार जीत चुके हैं. इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट कर सुरेश कश्यप को टिकट दिया है. हालांकि वीरेंद्र कश्यप ये दावा करते रहे हैं कि उनके 10 साल के कार्यकाल में क्षेत्र में विकास के नए आयाम स्थापित किए गए हैं. लेकिन जनता की कुछ ऐसी मांगें थी जिन्हें सांसद पूरा नहीं कर पाए.

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शिमला संसदीय सीट पर पिछले 5 साल में कुछ ऐसे मुद्दे रहे जिसके लिए लोग सड़कों पर उतरे और अभी तक लोगों की मांग पूरी नहीं हो पाई है.

पढ़ेंः 2 राज्यों की भरी झोली... पौंग विस्थापित दर-दर भटके, कांगड़ा संसदीय सीट पर 5 साल गूंजे ये मुद्दे

दशकों से पूरी नहीं हुई गिरीपार की मांग

करीब 52 सालों से सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा नहीं मिला है. सिरमौर की करीब 132 पंचायतों की करीब पौने 3 लाख आबादी दशकों से इस मुद्दे के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल इस मुद्दे को पूरा करवाने में असफल साबित हुए है. वहीं लाखों हाटियों की इस मुख्य मांग को पूरा करवाने के लिए संघर्ष में जुटी हाटी समीति भी इस चुनाव में अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है.

शिमला संसदीय सीट पर स्पेशल रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव 2019 के आते ही कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही दल इस अहम मुद्दे को फिर से भुनाने में जुट गए है. हाटियों को पिछले 5 दशक से केवल आश्वासन ही मिल पाया है. केंद्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में भी हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने का मुद्दा पीएम मोदी तक भी पहुंचा, लेकिन आज तक कुछ नहीं बना.

ये भी पढ़ेंः CM की जनसभा में भीड़ रोकने के लिए कार्यकर्ताओं ने जब मंच पर लगाए ठुमके... देखें Video

मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे किसान-बागवान

हिमाचल प्रदेश की कुल आबादी का अस्सी फीसदी किसान-बागवान हैं. शिमला संसदीय क्षेत्र के अधिकतर लोगों की आर्थिकी का सबसे बड़ा साधन कृषि और बागवानी है. किसानों-बागवानों की सबसे बड़ी मांग स्वामीनाथन कमीशन के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य की है. कमीशन के अनुसार किसानों को उत्पादन लागत का पचास फीसदी अधिक मूल्य दिया जाए. ये मांग अधूरी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से पूर्व हिमाचल में हुई चुनावी रैलियों में कहा था कि यहां के किसानों को उनके स्थानीय उत्पादन जैसे शहद, दूध, सेब, ऊन आदि का भी समर्थन मूल्य दिया जाएगा. ये नहीं मिला है.

संसदीय क्षेत्र की अधिकांश जनता खेती और बागवानी पर निर्भर है. शिमला जिला में जहां लोगों की आर्थिकी सेब पर निर्भर करती है. वहीं सिरमौर और सोलन जिला में किसान अदरक और लहसुन की खेती पर हैं. ऐसे में किसानों और बागवानों की किसी भी सूरत में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है.

शिमला जिला में कोल्ड स्टोरेज की मांग भी बागवान लंबे समय से कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह मांग भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. दोनों ही मुद्दों पर बागवान भाजपा और कांग्रेस से नाखुश हैं. इसके अलावा वर्ल्ड बैंक द्वारा स्वीकृत 1100 करोड़ का बागवानी प्रोजेक्ट भी अधर में लटका हुआ है.

NH पर नहीं शुरू हो पाया काम

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हिमाचल 69 एनएच की घोषणा की थी उन में से सबसे अधिक संख्या शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली सड़कों की ही थी, लेकिन धरातल पर काम शुरू होना तो दूर की बात है इन एनएच की अभी तक डीपीआर भी तैयार नहीं हो पाई है ऐसे में जिसके कारण लोगों में खासा रोष है भाजपा इसके लिए कांग्रेस को आरोपी मान रही है और डीपीआर में अडंगा फंसाने की बात की जा रही है.

इसके साथ ही अप्पर शिमला की सड़कों की स्थिति भी हमेशा से ही चिंता का विषय है क्योंकि सेब ढुलाई के समय बागवानों को सड़क ठीक ना होने के कारण लंबे समय से भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है.

ये भी पढ़ेंः सांसद शांता के बयान पर पूर्व CM ने खूब लगाए ठहाके, राफेल पर पाटिल ने BJP पर साधा निशाना

राजधानी में पानी के लिए 'त्राहिमाम'

लंबे समय शिमला शहर में पानी की किल्लत से जूझ रहे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. प्रदेश में चाहे कांग्रेस सरकार की हो या भाजपा की इस मामले में कोई भी गंभीर होता नजर नहीं आया है.

2018 में पैदा हुए जलसंकट ने कई तरह सवाल पैदा किए थे. हालांकि जयराम सरकार के सत्ता में काबिज होते ही आए जलसंकट के बाद प्रदेश सरकार ने ये दावा किया है कि पानी मुहैया करवाने के लिए प्रोजेक्ट तैयार है और जल्द ही राजधानी के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी दिया जाएगा. चाबा पेयजल परियोजना के तहत सतलुज का पानी शिमला पहुंचाया जाना है और सरकार का दावा है कि प्रोजेक्ट का काम अंतिम चरण में है.

कानून व्यवस्था पर उठे सवाल

शिमला संसदीय क्षेत्र में कानून व्यवस्था पर विपक्ष अकसर सवाल उठाता आया है. बात चाहे महिला सुरक्षा की हो या नशा माफिया समेत अन्य अपराधों को रोकने की. गुड़िया रेप और मर्डर केस के बाद शिमला संसदीय क्षेत्र के सिरमौर में केदार जिंदान हत्याकांड से कानून व्यवस्था पर सवाल उठे हैं. इसके साथ ही राजधानी में सक्रिय हुए नशा माफिया भी चिंता का विषय बना हुआ है.

शिमला: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए हिमाचल के वोटर्स तैयार हैं और सरकार के पिछले 5 सालों के काम कसौटी पर कसे जाएंगे. चुनावी वादों को अमलीजामा पहनाया गया या नहीं इस पर जनता ने विचार कर रही है. अकसर देखा जाता है कि चुनाव के दौरान जितनी आसानी से लोगों के साथ विकास के वादे किए जाते हैं उनको जमीनी स्तर पर उतारने के लिए बाद में उतनी ही परेशानियां दिखाई जाती है.

प्रदेश की चार लोकसभा सीटों में से शिमला संसदीय सीट आरक्षित है. इस सीट पर भाजपा के वीरेंद्र कश्यप लगातार दो बार जीत चुके हैं. इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट कर सुरेश कश्यप को टिकट दिया है. हालांकि वीरेंद्र कश्यप ये दावा करते रहे हैं कि उनके 10 साल के कार्यकाल में क्षेत्र में विकास के नए आयाम स्थापित किए गए हैं. लेकिन जनता की कुछ ऐसी मांगें थी जिन्हें सांसद पूरा नहीं कर पाए.

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शिमला संसदीय सीट पर पिछले 5 साल में कुछ ऐसे मुद्दे रहे जिसके लिए लोग सड़कों पर उतरे और अभी तक लोगों की मांग पूरी नहीं हो पाई है.

पढ़ेंः 2 राज्यों की भरी झोली... पौंग विस्थापित दर-दर भटके, कांगड़ा संसदीय सीट पर 5 साल गूंजे ये मुद्दे

दशकों से पूरी नहीं हुई गिरीपार की मांग

करीब 52 सालों से सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा नहीं मिला है. सिरमौर की करीब 132 पंचायतों की करीब पौने 3 लाख आबादी दशकों से इस मुद्दे के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल इस मुद्दे को पूरा करवाने में असफल साबित हुए है. वहीं लाखों हाटियों की इस मुख्य मांग को पूरा करवाने के लिए संघर्ष में जुटी हाटी समीति भी इस चुनाव में अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है.

शिमला संसदीय सीट पर स्पेशल रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव 2019 के आते ही कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही दल इस अहम मुद्दे को फिर से भुनाने में जुट गए है. हाटियों को पिछले 5 दशक से केवल आश्वासन ही मिल पाया है. केंद्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में भी हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने का मुद्दा पीएम मोदी तक भी पहुंचा, लेकिन आज तक कुछ नहीं बना.

ये भी पढ़ेंः CM की जनसभा में भीड़ रोकने के लिए कार्यकर्ताओं ने जब मंच पर लगाए ठुमके... देखें Video

मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे किसान-बागवान

हिमाचल प्रदेश की कुल आबादी का अस्सी फीसदी किसान-बागवान हैं. शिमला संसदीय क्षेत्र के अधिकतर लोगों की आर्थिकी का सबसे बड़ा साधन कृषि और बागवानी है. किसानों-बागवानों की सबसे बड़ी मांग स्वामीनाथन कमीशन के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य की है. कमीशन के अनुसार किसानों को उत्पादन लागत का पचास फीसदी अधिक मूल्य दिया जाए. ये मांग अधूरी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से पूर्व हिमाचल में हुई चुनावी रैलियों में कहा था कि यहां के किसानों को उनके स्थानीय उत्पादन जैसे शहद, दूध, सेब, ऊन आदि का भी समर्थन मूल्य दिया जाएगा. ये नहीं मिला है.

संसदीय क्षेत्र की अधिकांश जनता खेती और बागवानी पर निर्भर है. शिमला जिला में जहां लोगों की आर्थिकी सेब पर निर्भर करती है. वहीं सिरमौर और सोलन जिला में किसान अदरक और लहसुन की खेती पर हैं. ऐसे में किसानों और बागवानों की किसी भी सूरत में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है.

शिमला जिला में कोल्ड स्टोरेज की मांग भी बागवान लंबे समय से कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह मांग भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. दोनों ही मुद्दों पर बागवान भाजपा और कांग्रेस से नाखुश हैं. इसके अलावा वर्ल्ड बैंक द्वारा स्वीकृत 1100 करोड़ का बागवानी प्रोजेक्ट भी अधर में लटका हुआ है.

NH पर नहीं शुरू हो पाया काम

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हिमाचल 69 एनएच की घोषणा की थी उन में से सबसे अधिक संख्या शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली सड़कों की ही थी, लेकिन धरातल पर काम शुरू होना तो दूर की बात है इन एनएच की अभी तक डीपीआर भी तैयार नहीं हो पाई है ऐसे में जिसके कारण लोगों में खासा रोष है भाजपा इसके लिए कांग्रेस को आरोपी मान रही है और डीपीआर में अडंगा फंसाने की बात की जा रही है.

इसके साथ ही अप्पर शिमला की सड़कों की स्थिति भी हमेशा से ही चिंता का विषय है क्योंकि सेब ढुलाई के समय बागवानों को सड़क ठीक ना होने के कारण लंबे समय से भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है.

ये भी पढ़ेंः सांसद शांता के बयान पर पूर्व CM ने खूब लगाए ठहाके, राफेल पर पाटिल ने BJP पर साधा निशाना

राजधानी में पानी के लिए 'त्राहिमाम'

लंबे समय शिमला शहर में पानी की किल्लत से जूझ रहे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. प्रदेश में चाहे कांग्रेस सरकार की हो या भाजपा की इस मामले में कोई भी गंभीर होता नजर नहीं आया है.

2018 में पैदा हुए जलसंकट ने कई तरह सवाल पैदा किए थे. हालांकि जयराम सरकार के सत्ता में काबिज होते ही आए जलसंकट के बाद प्रदेश सरकार ने ये दावा किया है कि पानी मुहैया करवाने के लिए प्रोजेक्ट तैयार है और जल्द ही राजधानी के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी दिया जाएगा. चाबा पेयजल परियोजना के तहत सतलुज का पानी शिमला पहुंचाया जाना है और सरकार का दावा है कि प्रोजेक्ट का काम अंतिम चरण में है.

कानून व्यवस्था पर उठे सवाल

शिमला संसदीय क्षेत्र में कानून व्यवस्था पर विपक्ष अकसर सवाल उठाता आया है. बात चाहे महिला सुरक्षा की हो या नशा माफिया समेत अन्य अपराधों को रोकने की. गुड़िया रेप और मर्डर केस के बाद शिमला संसदीय क्षेत्र के सिरमौर में केदार जिंदान हत्याकांड से कानून व्यवस्था पर सवाल उठे हैं. इसके साथ ही राजधानी में सक्रिय हुए नशा माफिया भी चिंता का विषय बना हुआ है.

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