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किस्सा सेब का: एक परिवार ऐसा जिसने सेब के लिए छोड़ी सरकारी नौकरियां.. - सेब और हिमाचल

सेब से अपनी पहचान बनाने वाले हिमाचल प्रदेश में बागवानी को आय का मुख्य साधन माना जाता है. यही कारण है कि आज हिमाचल को एप्पल बाउल के नाम से जाना जाता है.

special story on apple cultivation in himachal
किस्सा सेब का
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Published : Feb 19, 2020, 11:31 PM IST

शिमला: सेब और हिमाचल आज एक सिक्के के दो पहलू हैं. सेब की बदौलत ही हिमाचल के बागवानों की चांदी हुई है. आज प्रदेश की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा इसी सेब की बदौलत आता है. यही वजह है कि बीते कुछ दशकों में सेब के उत्पादन के प्रति बागवानों का रुझान बढ़ा है. ठियोग के विनोद चौहान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

विनोद चौहान पिछले करीब 3 दशक से सेब उगा रहे हैं. सेब के साथ ऐसी शिद्दत से जुड़े कि दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की हुई. बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर और गाड़ी तक, सब कुछ सेब की बदौलत पाया. पहले कोटगढ़ में बगीचा बनाया. कारोबार फला फूला तो ठियोग तक जा पहुंचे.

नौकरी छोड़ पिता का हाथ बंटा रहे सुहैल चौहान को भी लगता है कि आजकल पढ़े लिखे युवा नौकरी से महरूम हैं. डिग्री लेने पर भी नौकरी नहीं मिलती,ऐसे में सेब का सौदागर बनना फायदे का सौदा है.

वीडियो.

चौहान परिवार के पास आज अपने बगीचों के अलावा नर्सरी भी है. वक्त के साथ बदलती तकनीक को अपनाकर इस परिवार ने अपनी मेहनत के दम पर जो किया वो एक मिसाल है... सेब की कई वैरायटी उगाने वाला ये परिवार हर साल लाखों का मुनाफा कमाता है.

चौहान परिवार सेब के उत्पादन के जरिये एक मुकाम पर पहुंच चुका है. आज वो कई वैरायटी के नाशपति और सेब अपने बगीचों में उगाते हैं विनोद चौहान की पत्नी और बहू ने तो सरकारी नौकरी छोड़ सेब के बगीचों की राह पकड़ी थीऔर उसी फैसले की बदौलत ये परिवार इस इलाके में सेब उत्पादन को लेकर जाना-माना नाम है.

ये भी पढे़ं: किस्सा सेब का: इस अमरीकी शख्स ने हिमाचल को बनाया था एप्पल स्टेट

शिमला: सेब और हिमाचल आज एक सिक्के के दो पहलू हैं. सेब की बदौलत ही हिमाचल के बागवानों की चांदी हुई है. आज प्रदेश की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा इसी सेब की बदौलत आता है. यही वजह है कि बीते कुछ दशकों में सेब के उत्पादन के प्रति बागवानों का रुझान बढ़ा है. ठियोग के विनोद चौहान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

विनोद चौहान पिछले करीब 3 दशक से सेब उगा रहे हैं. सेब के साथ ऐसी शिद्दत से जुड़े कि दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की हुई. बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर और गाड़ी तक, सब कुछ सेब की बदौलत पाया. पहले कोटगढ़ में बगीचा बनाया. कारोबार फला फूला तो ठियोग तक जा पहुंचे.

नौकरी छोड़ पिता का हाथ बंटा रहे सुहैल चौहान को भी लगता है कि आजकल पढ़े लिखे युवा नौकरी से महरूम हैं. डिग्री लेने पर भी नौकरी नहीं मिलती,ऐसे में सेब का सौदागर बनना फायदे का सौदा है.

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चौहान परिवार के पास आज अपने बगीचों के अलावा नर्सरी भी है. वक्त के साथ बदलती तकनीक को अपनाकर इस परिवार ने अपनी मेहनत के दम पर जो किया वो एक मिसाल है... सेब की कई वैरायटी उगाने वाला ये परिवार हर साल लाखों का मुनाफा कमाता है.

चौहान परिवार सेब के उत्पादन के जरिये एक मुकाम पर पहुंच चुका है. आज वो कई वैरायटी के नाशपति और सेब अपने बगीचों में उगाते हैं विनोद चौहान की पत्नी और बहू ने तो सरकारी नौकरी छोड़ सेब के बगीचों की राह पकड़ी थीऔर उसी फैसले की बदौलत ये परिवार इस इलाके में सेब उत्पादन को लेकर जाना-माना नाम है.

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