शिमला: सरकार ने प्रदेश में लोकल फल मंडियां इसलिए खोली हैं, ताकि बागवानों को उनके घर द्वार पर सेब और अन्य फलों के अच्छे दाम मिलें. लोकल मंडियों तक सेब पहुंचाने में लागत भी कम बागवानों को वहन करनी पड़ती है. इसके बावजूद बागवान हिमाचल के बजाए बाहरी राज्यों में सेब बेचने को तवज्जो दे रहे हैं. कारण साफ है कि यहां की मंडियों में बागवानों को उनके सेब के सही दाम नहीं मिल रहे हैं. कई जगह आढ़ती मनमाने तरीके से सेब बेच रहे हैं. जिसके चलते बागवान अन्य राज्यों की मंडियों का रूख करने लगे हैं. प्रदेश के करीब 50 फीसदी बागवान बाहरी मंडियों का रूख कर रहे हैं. आने वाले समय में इनकी संख्या और भी बढ़ने की पूरी संभावना है.
प्रदेश में अबकी बार बागवान अन्य राज्यों की मंडियों का रूख करने लगे हैं. प्रदेश की मंडियों में सेब बेचने की बजाए ये बागवान चंडीगढ, दिल्ली और अन्य राज्यों की मडियों को जा रहे हैं. हालांकि इन दिनों नेशनल हाइवे नंबर-5 के बंद होने के कारण बागवान चंडीगढ़, दिल्ली और अन्य बाहरी मंडियों को नहीं ले जा पा रहे, लेकिन जैसे ही रोड पूरी तरह से खुल जाएगा तो बागवान फिर से बाहरी मंडियों को अपना सेब भेजना शुरू कर देंगे.
यहां की मंडियों से नहीं संतुष्ट नहीं है बागवान: बागवान प्रदेश की मंडियों में काम करने वाले आढ़तियों और लदानियों से संतुष्ट नहीं हैं. इसकी वजह है कि कई जगह आढ़ती मनमर्जी से सेब बेचे रहे हैं. बागवानों की मानें तो सरकार द्वारा निर्धारित 24 किलो तक की वजन वाली पेटियों के बेचने में कई आढ़ती कोई रूचि नहीं दिखा रहे, वे उन पेटियों को बेचने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं जिनका वजन 28 से 30 किलो तक है. यही नहीं भारी वजन की पेटियों के बोलियां भी मंडियों में ज्यादा लगा रही हैं. इसकी वजह यह भी है कि लदानी ज्यादा वजन की पेटियां खरीदने को प्राथमिकता दे रहे हैं. इसके लिए उनका तर्क है कि उनको बाहर ले जाने का भाड़ा पेटियों के हिसाब से देना पड़ रहा है.
बागवानों की मानें तो मंडियों में कुछ जगह 20 या 24 किलो वजन की पेटियों के सेब की बोलियां जहां 30 या 35 प्रति किलो से शुरू हो कर 60 से 70 रुपए तक खत्म की जा रही हैं. वहीं, 30 किलो तक ज्यादा वजन की पेटियों की बोलियां 60 से 60 रुपए प्रति किलो से लग रही है, क्योंकि अभी भी 24 किलो से ज्यादा की पेटियां मंडियों में आ रही है. इन ज्यादा वजन वाली पेटियों को मंडियों पहले बेचने को भी प्राथमिकता दे रहे हैं. हालांकि सरकार ने किलो के हिसाब से सेब बेचने के आदेश दिए हैं, लेकिन 24 किलो से ज्यादा वजन की पेटियां मंडियों में पहुंच रही हैं. इसका फायदा कई आढ़ती और खरीदार उठा रहे हैं.
शिमला जिले से 6 लाख पेटियां बाहरी मंडियों को सीधी गईं: हालांकि लोकल मंडियों में सेब की ट्रांसपोर्टेशन लागत कम रहती है और बाहर सेब ले जाने में ज्यादा किराया भी लगता है, लेकिन बाहर सेब की कीमतें बागवानों को अच्छी मिल रही हैं. ऐसे में बागवान भी बाहर जाना पसंद कर रहे हैं. यहां की मंडियों की बजाए बाहरी मंडियों से 600-700 रुपए प्रति पेटी ज्यादा रेट बागवानों को मिल रहे हैं. इसके चलते बागवान भी बाहर जा रहे हैं. शिमला जिले की बात करें तो सेब सीजन शुरू होने से अब तक जिले की मंडियों में करीब 7.22 लाख सेब की पेटियां बिकी हैं. वहीं, करीब 6 लाख पेटियां बाहरी मंडियों में सीधे यहां से जा चुकी हैं. सेब सीजन जैसे जैसे बढ़ेगा, वैसे-वैसे सीधे बाहर जाने वाले सेब की मात्रा भी बढ़ने की संभावना है.
मंडियों में लूटा जा रहा कानून का पालन करने वाला बागवान: सेब बहुल क्षेत्र की सहकारी सभाओं के संयोजक सतीश भलैक कहते हैं कि कई मंडियों में आढ़ती मनमर्जी से सेब की बोलियां लगा रहे हैं. आढ़ती कम वजन की पेटियों की बोलियां कम और ज्यादा वजन वाली पेटियों की बोलियां अधिक लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मंडियों में अधिकतम 30 किलो तक की पेटियां भी आ रहीं हैं और इन पेटियों की बोलियां 70 रुपए प्रति किलो के हिसाब शुरू हो रही है, लेकिन जिन पेटियों में 20 से 24 किलो सेब आ रहा है उनकी बोली 30 रुपये से शुरू हो कर 70 रूपए तक खत्म की जा रही है.
सतीश भलैक का कहना है कि खरीदार एक ही बात पर अड़े हैं कि उनको भाड़ा प्रति पेटी देना पड़ रहा है. वजन करने के हिसाब के लिए सरकार द्वारा धर्मकांटों का प्रबंध नहीं किया गया है और न ही सरकार वजन के हिसाब से भाड़ा तय कर पा रही है. उन्होंने सरकार और प्रशासन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि सेब की एक समान ग्रेडिंग बाजार में आए. इसके लिए समय समय पर संबंधित अधिकारी मार्केट का निरीक्षण करें, नहीं तो छोटा किसान या कानून का पालन करने वाला किसान आढ़तियों के हाथों यूं ही लुटता रहेगा.
उन्होंने कहा कि कई आढ़तियों का यह भी तर्क है कि उनको नए आदेशों की कॉपी उपलब्ध नहीं करवाई गई है जिसमें 2 किलो काट करने पर मनाही लगाई गई है. उन्होंने कहा कि अगर समय रहते इसको लेकर कदम नहीं उठाए गए तो इससे बागवानों और आढ़तियों के बीच के बेहतर संबंध भी खराब जाएंगे और अधिकतर बागवान बाहरी मंडियों का रूख करेंगे.
उधर संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि कुछ आढ़ती किलो के हिसाब से सेब बेचने की सरकार की व्यवस्था को फेल करने पर तुले हुए हैं. इनका पूरा प्रयास है कि बागवानों को फायदे वाली इस व्यवस्था को बंद कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मंडियों में कानून का पालन और बागवानों को समय पर पेमेंट मिले.
कानून का पालन सुनिश्चित करेगी सरकार: उधर, बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि सरकार ने यह फैसला लिया है कि मंडियों में सेब किलो के हिसाब से बिके. सरकार अपने फैसले का ग्राउंड लेवल पर सख्ती से पालन भी सुनिश्चित भी कर रही है. उन्होंने कहा कि एपीएमसी के अलावा एसडीएम और तहसीलदारों को अधिकार दिए हैं. अगर मंडियों में किसी तरह का उल्लंघन किया जाता है तो वे इसको लेकर कार्रवाई के लिए अधिकृत है. उन्होंने कहा कि सरकार ने दो किलो काट भी बंद कर दी है. यह सबके साथ विचार विमर्श के बाद तय किया था.
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