शिमला: नगर निगम का मेयर शहर का प्रथम नागरिक माना जाता है. यह पद अहम होता है, क्योंकि मेयर ही नगर निगम की अगुवाई करता है. शिमला नगर निगम के मेयर होने का अपना ही महत्व है. प्रदेश का सबसे बड़ा नगर निगम होने के साथ-साथ यह हिमाचल की राजधानी भी है. यही वजह है कि शिमला के नगर निगम के मेयर पद पर राजनीतिक दलों की भी नजरें रहती है. अबकी बार भी कांग्रेस और भाजपा की नजरें इस पद पर टिकी हैं. नगर निगम में जो पार्टी बहुमत से आएगी, जाहिर तौर पर मेयर उसका ही बनेगा. हालांकि मेयर पद पर रोस्टर लागू है और शिमला नगर निगम का मेयर पद अबकी बार ओपन यानि जनरल वर्ग लिए है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अबकी बार इस पद पर कौन काबिज होता है.
शिमला MC के 34 वार्डों के लिए चुने जाएंगे पार्षद: शिमला नगर निगम के 34 वार्डों के लिए पार्षदों के लिए चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई है. 86 हजार से अधिक मतदाता अबकी बार नगर निगम शिमला के चुनाव के लिए मतदान कर 34 पार्षदों को चुनेंगे. नगर निगम के चुनावों के लिए कांग्रेस और भाजपा ने सभी 34 वार्डों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने 21 वार्डों और माकपा ने 4 वार्डों से अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. नगर निगम के चुनाव में किस पार्टी को कितनी सीटें मिलती हैं, यह शहर की जनता तय करेगी. लेकिन, फिलहाल मुख्य लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है. शहर में इनमें से किस पार्टी का मेयर बनता है, यह चुनावी नतीजों पर ही निर्भर करेगा.
मेयर पद पर सभी की निगाहें: नगर निगम शिमला के मेयर पद पर कांग्रेस और भाजपा की नजरें टिकी हुई हैं. मेयर उसी पार्टी का बनेगा जिसका बहुमत होगा. हालांकि बहुमत होने पर भी कौन इस पद पर काबिज होता है, इसको लेकर भी लोगों में दिलचस्पी है. हालांकि एक बात यह है कि अबकी बार मेयर पद आरक्षित नहीं है. यानी इस पद पर कोई भी पार्षद पहुंच सकता है, केवल एक शर्त है कि उसके पास 18 पार्षद समर्थन हो.
नगर निगम के मेयर पद के लिए रिजर्वेशन और रोस्टर का नियम: राज्य सरकार ने नगर निगम चुनाव नियम 2012 बनाया है. इसमें नगर निगम के मेयर पद के लिए लिए रिजर्वेशन और रोस्टर तय किया गया है. इसके मुताबिक पहले अढ़ाई साल के लिए मेयर पद अनुसूचित जाति, उसके बाद अढ़ाई साल से लिए अनुसूचित जनजाति का मेयर होगा. इसके बाद अगले पांच सालों में पहले अढ़ाई साल सामान्य वर्ग के लिए और इसके अगले अढ़ाई साल यह पद महिलाओं के लिए आरक्षित रखा गया है. रोस्टर सिस्टम के अनुसार इसके अगले पांच साल में फिर यह पद ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रहता है. लेकिन शिमला में अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए कोई भी वार्ड आरक्षित नहीं है. ऐसे में कोई भी पार्षद इन वर्गों से चुनकर सदन में नहीं आता, जाहिर तौर पर इन दोनों वर्गों से कोई भी मेयर यहां नहीं बन पाता है. इस तरह यहां पर अनुसूचित जाति, सामान्य वर्ग और महिलाओं के लिए ही यह पद रहता है.
2012 में मेयर, डिप्टी मेयर पद के लिए करवाए थे प्रत्यक्ष चुनाव: हालांकि नगर निगम चुनाव नियम साल 2012 में बनाए गए लेकिन ये तब के चुनाव पर लागू नहीं हुए. 2012 में तत्कालीन धूमल सरकार ने शिमला नगर निगम चुनाव में मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव करवाने का फैसला लिया. इसमें नगर निगम के मेयर पद पर माकपा के संजय चौहान और डिप्टी मेयर पद पर टिकेंद्र पंवर पांच साल के लिए चुने गए थे. यह एक अपवाद था जब नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर के सीधे चुनाव कराए गए. इससे पहले और इसके बाद फिर इन दोनों पदों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव नहीं करवाए गए.
2017 में मेयर पद एससी वर्ग के लिए था आरक्षित: साल 2017 में नगर निगम चुनाव के मेयर पद पर रोस्टर सिस्टम लागू किया गया. इसके मुताबिक शिमला नगर निगम का मेयर का पद पहले अढ़ाई साल के लिए अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुआ और तब कुसुम सदरेट मेयर बनी. रोस्टर सिस्टम के मुताबिक ढाई साल बाद यह पद एसटी वर्ग को दिया जाना था. लेकिन, इस वर्ग का कोई भी पार्षद न होने से यह पद एक तरह से ओपन हो गया. इसके चलते मेयर पद पर सत्या कौंडल को भाजपा की ओर से मेयर चुना गया. रोस्टर के मुताबिक अब नगर निगम शिमला के मेयर का पद सामान्य वर्ग के लिए है. इस तरह इस पद पर कोई भी पार्षद मेयर चुना जा सकता है.
ये रहे हैं आज तक मेयर: बता दें कि शिमला नगर निगम में आज तक 14 मेयर रहे हैं, जिनमें दो मेयर बीजेपी के और एक मेयर सीपीएम का रहा है, बाकी 11 बार शिमला नगर निगम में कांग्रेस के मेयर रहे हैं. इनमें कांग्रेस के आदर्श कुमार सूद तीन बार, जैनी प्रेम दो बार, मनोज कुमार दो बार, सोहन लाल दो बार नगर निगम शिमला के मेयर के पद पर रहे हैं. कांग्रेस के नरेंद्र कटारिया और मधु सूद एक-एक बार मेयर नियुक्त किए गए. माकपा के संजय चौहान भी एक बार मेयर रहे. वहीं, भाजपा की कुसुम सदरेट व सत्या कौंडल एक-एक बार मेयर रहीं. अबकी बार किस पार्टी का मेयर बनता है कि चुनाव के बाद ही तय हो कि किस पार्टी को बहुमत मिलता है और पार्टी में भी किसका दबदबा रहता है.
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