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फिर कानूनी जाल में फंसे बिंदल, जिस मामले को एचसी ने किया था खारिज, अब एससी ने जारी किया नोटिस

सोलन नगर परिषद में भर्तियों में भ्रष्टाचार से जुड़े जिस मामले को हिमाचल हाईकोर्ट ने एक साल खारिज कर दिया था, वो केस सुप्रीम कोर्ट में फिर से खुल गया है. इसी केस में भाजपा नेता डॉ. राजीव बिंदल को हाईकोर्ट से राहत मिली थी, लेकिन अब उसी केस में वे फिर से कानूनी पेच में फंसते नजर आ रहे हैं.

Rajeev bindal news
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Published : Dec 18, 2020, 8:00 AM IST

Updated : Dec 18, 2020, 3:22 PM IST

शिमला: स्पेशल जज सोलन की अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. दिसंबर 2019 में हाईकोर्ट ने बिंदल के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले को खारिज कर दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट में ये केस नए रूप में खुला है और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया गया है. सोलन नगर परिषद में भर्तियों में भ्रष्टाचार से जुड़े जिस मामले को हिमाचल हाईकोर्ट ने एक साल खारिज कर दिया था, वो केस सुप्रीम कोर्ट में फिर से खुल गया है. इसी केस में भाजपा नेता डॉ. राजीव बिंदल को हाईकोर्ट से राहत मिली थी, लेकिन अब उसी केस में वे फिर से कानूनी पेच में फंसते नजर आ रहे हैं.

एक साल पहले 19 दिसंबर को राजीव बिंदल सोलन नगर परिषद में भर्ती मामले में हुए भ्रष्टाचार को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट से केस खारिज होने के बाद राहत पा चुके थे. बाद में उस केस में एक याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट गए थे.

सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के बाद अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है. चूंकि इस केस में राज्य सरकार भी पार्टी है और ये केस सुप्रीम कोर्ट में अनिल कुमार वर्सेज स्टेट के तौर पर लिस्ट हुआ है, लिहाजा हिमाचल सरकार को नोटिस जारी हुआ है.

जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार समेत 35 लोगों नोटिस जारी किया है और 4 हफ्ते में जवाब मांगा गया है. दरअसल, राज्य सरकार ने बीते साल बिंदल के खिलाफ इस केस को वापस ले लिया था और इसके बाद मामले को कोर्ट ने भी खारिज कर दिया था. बाद में नाहन के एक समाजसेवी अनिल कुमार की ओर से दायर याचिका पर SC ने मामले में सरकार से जवाब मांगा है.

22 साल पुराना है मामला

मामला 1998 का है. नगर परिषद सोलन में बहुत से पदों को भरने के लिए कमेटी बनाई गई थी. उस कमेटी के मुखिया भाजपा नेता बिंदल थे. कमेटी में अन्य लोग भी शामिल थे. आरोप है कि डॉ. बिंदल की अगुवाई वाली कमेटी ने प्रदेश नगर सेवा अधिनियम 1994 का उल्लंघन करते हुए अपात्र लोगों को नौकरी दी.

यही नहीं, दस्तावेज भी फर्जी बनाए गए. कांग्रेस सरकार के समय जून 2003 में ये मामला तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह के समक्ष आया. विजिलेंस जांच हुई और मामला कोर्ट पहुंचा. ये बात जुलाई 2013 की है. बाद में स्पेशल जज सोलन की अदालत ने बिंदल व अन्यों के खिलाफ मामला वापस लेने की इजाजत दे दी.

ये भी पढ़ेंः मोटापे के साथ हाई ब्लड प्रेशर व ब्लड शुगर का शिकार हो रहे हिमाचली, देखिये हिमाचल का हेल्थ रिपोर्ट कार्ड

शिमला: स्पेशल जज सोलन की अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. दिसंबर 2019 में हाईकोर्ट ने बिंदल के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले को खारिज कर दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट में ये केस नए रूप में खुला है और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया गया है. सोलन नगर परिषद में भर्तियों में भ्रष्टाचार से जुड़े जिस मामले को हिमाचल हाईकोर्ट ने एक साल खारिज कर दिया था, वो केस सुप्रीम कोर्ट में फिर से खुल गया है. इसी केस में भाजपा नेता डॉ. राजीव बिंदल को हाईकोर्ट से राहत मिली थी, लेकिन अब उसी केस में वे फिर से कानूनी पेच में फंसते नजर आ रहे हैं.

एक साल पहले 19 दिसंबर को राजीव बिंदल सोलन नगर परिषद में भर्ती मामले में हुए भ्रष्टाचार को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट से केस खारिज होने के बाद राहत पा चुके थे. बाद में उस केस में एक याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट गए थे.

सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के बाद अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है. चूंकि इस केस में राज्य सरकार भी पार्टी है और ये केस सुप्रीम कोर्ट में अनिल कुमार वर्सेज स्टेट के तौर पर लिस्ट हुआ है, लिहाजा हिमाचल सरकार को नोटिस जारी हुआ है.

जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार समेत 35 लोगों नोटिस जारी किया है और 4 हफ्ते में जवाब मांगा गया है. दरअसल, राज्य सरकार ने बीते साल बिंदल के खिलाफ इस केस को वापस ले लिया था और इसके बाद मामले को कोर्ट ने भी खारिज कर दिया था. बाद में नाहन के एक समाजसेवी अनिल कुमार की ओर से दायर याचिका पर SC ने मामले में सरकार से जवाब मांगा है.

22 साल पुराना है मामला

मामला 1998 का है. नगर परिषद सोलन में बहुत से पदों को भरने के लिए कमेटी बनाई गई थी. उस कमेटी के मुखिया भाजपा नेता बिंदल थे. कमेटी में अन्य लोग भी शामिल थे. आरोप है कि डॉ. बिंदल की अगुवाई वाली कमेटी ने प्रदेश नगर सेवा अधिनियम 1994 का उल्लंघन करते हुए अपात्र लोगों को नौकरी दी.

यही नहीं, दस्तावेज भी फर्जी बनाए गए. कांग्रेस सरकार के समय जून 2003 में ये मामला तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह के समक्ष आया. विजिलेंस जांच हुई और मामला कोर्ट पहुंचा. ये बात जुलाई 2013 की है. बाद में स्पेशल जज सोलन की अदालत ने बिंदल व अन्यों के खिलाफ मामला वापस लेने की इजाजत दे दी.

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Last Updated : Dec 18, 2020, 3:22 PM IST
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