शिमला: नदियां, झीलें, झरनें हिमाचल का श्रृंगार हैं. नदियों के पानी पर लहराती लहरों से मधुर संगीत सुनाई देता है, लेकिन क्या आपकों मालूम है की एक समय ऐसा भी था जब हिमाचल का श्रृंगार करने वाली इन नदियों को प्रदूषण की काली नजर लग चुकी थी. इन जीवनदायिनी नदियों का पानी जहर बन चुका था. 2018 की एक रिपोर्ट बेहद डराने वाली थी. रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल की सात नदियां बुरी तरह से प्रदूषित थी.
इन सात नदियों में सिरसा, मार्कंडेय, सुकना, ब्यास, गिरी, अश्वनी और पब्बर थीं. इन नदियों से पीने के पानी की सप्लाई भी होती थी, लेकिन इनका पानी पीने लायक तो छोड़िए नहाने लायक भी नहीं था. इनमें प्रदूषण का मुख्य कारण फैक्ट्रियों का रासायनिक कचरा, सीवरेज के पानी को बिना ट्रीट किए नदी नालों में बहाना, लोगों और पर्यटकों का नदियों-नालों में कूड़ा कचरा फेंकना था.
एनजीटी की रिपोर्ट के बाद प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड हरकत में आया. नदियों को प्रदूषण के श्राप से मुक्ती दिलाने के लिए एक खाका तैयार किया गया. आईआईटी और प्रदेश के वैज्ञानिकों ने साथ मिलकर काम किया. सॉलिड वेस्ट,सीवरेज वेस्ट को मैनेज करने की दिशा में काम किया शुरू. प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए इन सभी नदी नालों को अलग-अलग 4 कैटेगरी में बांटा गया.
नदियों के पानी को साफ करने के लिए फैक्ट्रियों के रासायनिक कचरे ओर सीवरेज के पानी को बिना ट्रीट किए नदी नालों में बहाने पर रोक लगाई गई. लोगों और पर्यटकों की नदियों नालों में कूड़ा कचरा डालने पर प्रतिबंध लगाया गया. इसके साथ ही पानी से प्रदूषण की मात्रा कम करने वाले पौधे नदियों में लगाए गए.
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की मेहनत और कोरोना के चलते लगाया गया लॉकडाउन सोने पर सुहागा हो गया. लॉकडाउन में फैक्ट्रियां और पर्यटन सहित अन्य गतिविधियां बंद रही, जिससे चार नदियों का जल निर्मल हो गया, जो पानी कभी नहाने के लायक नहीं था अब वो इतना शुद्ध हो चुका है कि इसे सिर्फ ऊबाल कर पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
बता दें कि एनजीटी की ओर से पूरे देश में 351 पॉल्यूटेड रिवर्स स्ट्रेच चिन्हित किए गए थे. जिसमें हिमाचल के 7 नदी नाले शामिल थे. इसके बाद एनजीटी के निर्देशों पर इन्हें साफ करने की जो योजना बनाई गई उसमें सॉलिड वेस्ट,सीवरेज वेस्ट को मैनेज करने की दिशा में काम किया गया.
इन सभी नदी नालों को अलग-अलग 4 कैटेगरी में बांटा गया. इसमें सबसे पहली प्राथमिकता सिरसा, दूसरी मार्कडेय, तीसरी में सुकना और चौथे पर ब्यास, गिरी, अश्वनी और पब्बर को दी गई. इन अलग-अलग कैटेगरी में पहली तीन प्राथमिकताओं पर रखी गई नदियों में बीओडी यानी बॉयोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड सबसे ज्यादा थी जो कि कैटेगरी 4 में रखी गई. यही वजह भी रही कि सबसे पहले कैटेगरी चार की नदियों को साफ करने पर ही काम किया गया और उसमें सफलता मिली.
इस तरह से किया गया पूरा काम
इन चार नदियों को साफ करने के लिए नदियों के किनारे 40 हजार पौधे रोपे गए. गंदे पानी को रोकने के लिए चेक डेम बनाए गए. ठोस कचरा प्रबंधन सुविधा को बेहतर कर अत्याधुनिक उपकरण स्थापित किए गए. सीवरेज लाइन बिछाई गई और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लान स्थापित किए. तरल कचरा प्रबंधन को बेहतर करने के साथ इन नदियों के आसपास रहने वाले लोगों को म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट को वैज्ञानिक तरीके से डिस्पोज ऑफ करने के बारे में बताया गया. अब इन नदियों के साफ होने से हिमाचल के साथ ही दिल्ली,पंजाब,उत्तराखंड,उत्तरप्रदेश को राहत मिलेगी.