शिमला: हिमाचल प्रदेश में एपीएमसी यानी कृषि उपज मार्केटिंग बोर्ड की आर्थिक स्थिति बेहतर है. मंडियों में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं और धान की खरीद की जा रही है. यह खरीद केंद्रीय एजेंसियां करती हैं. इसके अलावा एपीएमसी किसानों से कुछ बेमौसमी सब्जियों की खरीद भी करती है. पिछले साल कोरोना संकट के दौरान एपीएमसी सोलन ने किसानों से 9.20 करोड़ रुपए की मटर खरीदी थी. गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में एपीएमसी के तहत 62 मंडियां हैं.
एमएसपी पर हो बेमौसमी सब्जियों की खरीद
पिछले साल कोरोना वायरस के दौरान सोलन एपीएमसी में 24 मार्च से 6 मई तक 4000 मीट्रिक टन मटर खरीदी थी. यहां सोलन के साथ-साथ सिरमौर, शिमला और मंडी के करसोग से भी किसान उपज बेचने आते हैं. हिमाचल में एपीएमसी का ढांचा मजबूत है. इसी कारण किसान संगठन चाहते हैं कि प्रदेश में पैदा होने वाली बेमौसमी सब्जियों की खरीद भी एमएसपी पर की जाए. किसान चाहते हैं कि मटर, टमाटर, बीन, बंदगोभी और फूलगोभी आदि की खरीद भी एमएसपी पर हो. कुछ समय पहले कृषि सुधार बिल को लेकर उपजे विवाद के दौरान एपीएएमसी और मार्केटिंग बोर्ड के अस्तित्व पर भी सवाल उठे थे, लेकिन राज्य सरकार ने यह स्पष्ट किया था कि एपीएमसी पहले की तरह क्रियाशील रहेगी.
लाभ में हैं सभी कृषि उपज विपणन समितियां
हिमाचल प्रदेश फल राज्य भी है, इस कारण यहां एपीएमसी के साथ एचपीएमसी यानी हॉर्टिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी का भी अस्तित्व है. हिमाचल प्रदेश में स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन बलदेव भंडारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश में स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड की स्थिति बेहतर है. उन्होंने बताया कि प्रदेश भर में 8 खरीद केंद्रों पर गेहूं एमएसपी पर खरीदी जा रही है. पांवटा साहिब खरीद केंद्र पर 30 हजार क्विंटल गेहूं खरीदी गई. यह खरीद केंद्रीय एजेंसियां करती हैं, क्योंकि एपीएमसी मार्केट फीस और यूजर चार्ज वसूल करती है, ऐसे में घाटे का सवाल ही पैदा नहीं होता. प्रदेश की सभी मंडियां लाभ में हैं और कृषि
एपीएमसी में होने वाली गतिविधियों पर नजर
एपीएमसी को हिमाचल प्रदेश स्टेट मार्केटिंग बोर्ड रेगुलेट करता है. बोर्ड किसानों के हित में नीतियों का निर्धारण करता है. वहीं, एपीएमसी में किसानों की उपज खरीदी बेची जाती है. कोई भी खरीददार एपीएमसी में जाकर कृषि उपज खरीद सकता है. इस खरीद-फरोख्त में 1 फीसदी मार्केट फीस एपीएमसी को मिलती है. प्रदेश भर में 60 से अधिक एपीएमसी में इकट्ठे होने वाली मार्केट फीस का 25 फीसदी हिस्सा मार्केटिंग बोर्ड को जाता है. एक तरह से मार्केटिंग बोर्ड जो कृषि विभाग के तहत आता है, वह एपीएमसी में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखता है. इसके अलावा एसपीएमसी की कार्यप्रणाली अलग से है. एचपीएमसी बागवानी विभाग के तहत आती है. वहां एक कॉरपोरेशन है. एचपीएमसी खुद के उत्पाद भी बनाती है और उसकी बिक्री भी करती है. हिमाचल में एचपीएमसी जूस, जैम, विनेगर आदि तैयार करती है.
सोलन एपीएमसी में हुआ करोड़ों का कारोबार
हिमाचल प्रदेश मार्केटिंग बोर्ड के निदेशक नरेश ठाकुर ने कहा कि हमारी मंडियों में गेहूं और धान की एमएसपी पर खरीद होती है. फ़ूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया खरीद एजेंसी है. कोरोना काल में भी यहां अच्छी खरीद हुई है. इसके अलावा मंडियों में देश के विभिन्न कोनों से आए आढ़ती भी किसानों से उत्पाद खरीदते हैं. हिमाचल प्रदेश के हर जिले में कम से कम एक एपीएमसी है. सोलन जिले की एपीएमसी की पहचान पूरे देश में है. यह हिमाचल की पहली मंडी है जिसका चयन इनाम के तहत हुआ है. यहां मटर, टमाटर और अन्य बेमौसमी सब्जियां खरीदी बेची जाती है. कोविड-19 के संकट में भी पिछले साल एपीएमसी सोलन में 60 करोड़ रुपये का ऑनलाइन कारोबार हुआ. किसानों को उनके खाते में भुगतान मिला. यहां शिमला, सोलन, कुल्लू, मंडी और सिरमौर से लहसुन की खरीद भी की जाती है. इस साल 35 क्विंटल से अधिक लहसुन का कारोबार हुआ है. यहां का लहसुन तमिलनाडु तक जाता है.
एपीएमसी में किसानों को दी जाती हैं कई सुविधाएं
राज्य सरकार का कृषि विभाग समय-समय पर एपीएमसी की समीक्षा बैठक करता है. मंडी समिति का सालाना बजट भी पारित किया जाता है. साथ ही कारोबारियों के लिए सुविधाएं भी जुटाई जाती हैं. किसानों को भी उपज बेचने के लिए एपीएमसी में कई तरह की सुविधाएं दी जाती हैं. एपीएमसी कुल्लू और लाहौल-स्पीति का इस साल का बजट 10 करोड़ 84 लाख से अधिक है. विश्व बैंक की तरफ से यहां बंदरोल और शाट मंडी में 16 करोड़ से अधिक के काम किए जा चुके हैं. अन्य मंडियों में भी किसानों की सहूलियत के लिए सुविधाओं का विस्तार किया जाता है. राज्य सरकार किसानों की शिकायतों को सुनने के लिए अधिकारियों की तैनाती भी करती है. हिमाचल में इस समय बेमौसमी सब्जियों का सीजन है. इसके बाद सेब सीजन शुरू होगा जिसमें एपीएमसी की अहम भूमिका होगी.
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