शिमला: चुनावी राजनीति में बंपर वोटिंग के अपने अपने अर्थ और संदर्भ होते हैं. हिमाचल में इस बार अब तक का सबसे अधिक मतदान प्रतिशत दर्ज किया गया. राज्य में भाजपा सत्ता में है और ये रिकॉर्डतोड़ मतदान किसके लिए संजीवनी बनेगा और किस पर चोट करेगा इसे लेकर विशलेषण, तर्क और तथ्य दिए जा रहे हैं.
इस लोकसभा चुनाव में हिमाचल में 71 फीसदी मतदान हुआ है, जबकि पिछले चुनाव में ये आंकड़ा 64.42 प्रतिशत था. हिमाचल में इस बार युवाओं में मतदान के लिए खासा उत्साह देखा गया. इसे भी मतदान प्रतिशत बढ़ने का कारण माना जा रहा है. प्रदेश में इस बार 13 लाख मतदाता 30 वर्ष की आयु से कम थे, जबकि करीब सवा लाख युवाओं ने पहली बार मतदान किया. इसके साथ ही सोशल मीडिया के बढ़ते प्रचलन ने भी मतदान के लिए लोगों को जागरूक करने में भूमिका निभाई.
चुनाव आयोग द्वारा लोकतंत्र के पर्व में अधिक से अधिक मतदान दर्ज करवाने के लिए भरसक प्रयास किए. अलग-अलग कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को मतदान के लिए जागरूक किया गया. स्वीप, होर्डिंग, बैनर, पोस्टर और दर्जनों कार्यक्रमों से लोगों को मतदान के लिए प्रेरित किया गया. मतदान केंद्रों में दिव्यांगों और बुजुर्गों के लिए बेहतर सुविधाएं दी गई. राजनीतिक पार्टियों ने भी अपने स्तर पर लोगों को वोट डालने के लिए सोशल मीडिया और प्रत्यक्ष रूप से लोगों के बीच पहुंच संदेश दिया और भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पार्टियां रिकॉर्ड मतदान को अपने पक्ष में बता रही है.
प्रदेश के दिग्गज नेताओं की साख इस चुनाव में लगी हुई है. जीत की हैट्रिक लगाने वाले सांसद एवं भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर ने फील्ड में खूब पसीना बहाया. वहीं, सांसद शांता कुमार बेशक खुद चुनाव में नहीं उतरे हैं, लेकिन अपने शिष्य किशन कपूर को उन्होंने मैदान में उतारा है. वहीं, सीएम जयराम ठाकुर इस लोकसभा चुनाव से कसौटी पर कसे जाएंगे. हॉट सीट मंडी में सीएम ने पूरा फोकस रखा और इस सीट के नतीजे से उनकी परफोर्मेंस भी आंकी जाएगी. इसके साथ ही कांग्रेस का गढ़ रही शिमला सीट पर भी जीत दर्ज करने का कौशल उन्हें दिखाना पड़ेगा.
वहीं, वीरभद्र का प्रभाव इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कितना फायदा दिला पाता है ये देखना भी रोचक रहेगा. ऐन मौके पर पलटी मारने वाले सुखराम परिवार की साख भी दांव पर है. पिछले लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करने वाली कांग्रेस इस बार रिकॉर्ड मतदान को अपने पक्ष में होने का दावा कर रही है.
भाजपा ये चुनाव राष्ट्रवाद के नारे के साथ लड़ रही है. वहीं हिमाचल में भाजपा को सतपाल सिंह सत्ती की बदजुबानी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं. बात करें कांग्रेस की तो वीरभद्र सिंह के खुले मंच से अपनी ही पार्टी के नेताओं पर दिए गए बयान भारी पड़ सकते हैं.