शिमला: शिमला नगर निगम को अब दोबारा से वन क्षेत्र और कर्मचारी मिलने की उम्मीद जगी है. नगर निगम ने सदन से प्रस्ताव पारित कर सरकार को भेजा था जिस पर सरकार ने वन विभाग से इसको लेकर जानकारी देने को कहा है. ऐसे में दोबारा से वन विभाग के कर्मचारी और अन्य संपत्तियों को निगम में मर्ज किया जा सकता है.
नगर निगम शिमला में बहुत से ऐसे कार्य है जो लंबे समय से एफसीए की मंजूरी न मिलने के चलते लटके हुए हैं. इसके अलावा नगर निगम के पास शहर के खतरनाक पेड़ों को काटने के आवेदन तो पहुंचते हैं, लेकिन निगम पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दे सकता है. ऐसे में निगम ने सरकार से वन क्षेत्र वापस देने की गुहार लगाई है, जिससे शहर में रुके पड़े विकास कार्य को जल्द शुरू किया जा सके.
वन क्षेत्र को नगर निगम में मर्ज करने का किया आग्रह
नगर निगम की महापौर सत्या कौंडल ने कहा कि नगर निगम ने सदन में प्रस्ताव पारित कर वन क्षेत्र को नगर निगम में मर्ज करने को लेकर सरकार से आग्रह किया गया है. उन्होंने कहा कि शहर में काफी विकास कार्य स्मार्ट सिटी के तहत शुरू किए गए हैं लेकिन वन विभाग से समय पर एफसीए की मंजूरी न मिलने के चलते कई कार्य लटक गए हैं. ऐसे में यदि वन क्षेत्र नगर निगम के पास होगा तो अनुमति लेने में आसानी होगी और शहर में विकास कार्यों को गति मिलेगी.
साथ ही खतरनाक पेड़ों को काटने में भी आसानी होगी. उन्होंने कहा कि शहरी विकास मंत्री के समक्ष भी इस मामले को उठाया गया है. उन्होंने भी वन क्षेत्र नगर निगम को वापस देने का आश्वासन दिया है.
नगर निगम को हो रहा आर्थिक नुकसान
बता दें शिमला शहर में वन क्षेत्र नगर निगम के अधीन था, लेकिन 2006 में प्रदेश सरकार ने वन क्षेत्र को वन विभाग को सौंप दिया जिसे नगर निगम को काफी आर्थिक नुकसान भी हुआ है. नगर निगम हर साल करोड़ों की लकड़ी की बिक्री करता था और इस राशि को जंगलों के रखरखाव पौधारोपण अन्य कार्यों के साथ शहर के विकास कार्यों पर खर्च करता था. शिमला शहर नगर निगम की परिधि के भीतर 1880 हेक्टेयर क्षेत्र जंगलों के तहत आता है.
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