शिमला: हिमाचल में टॉप मोस्ट अफसरशाही को लेकर अकसर विवाद सामने आते रहते हैं. इस बार विवाद का केंद्र 1987 बैच के आईएएस अफसर राम सुभग सिंह हैं. पूर्व में भाजपा सरकार के दौरान मुख्य सचिव रहे राम सुभग सिंह को जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार में ही पहले पर्यटन, आयुर्वेद के विभागों से हटाया गया और अंतत: वे मुख्य सचिव बने, लेकिन इस टॉप मोस्ट पोस्ट से भी पूर्व सरकार को उन्हें हटाना पड़ा. अब सुखविंदर सिंह सरकार के समय में राम सुभग सिंह को सेवानिवृति के बाद प्रधान सलाहकार का पद दिए जाने पर विरोध हो रहा है.
विपक्षी दल भाजपा ने भी इस मामले में सुखविंदर सिंह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. आखिर, ऐसा क्या है कि राम सुभग सिंह का विवादों से इस कदर गहरा नाता है. वर्ष 1987 बैच के इस सीनियर आईएएस अफसर के साथ कब-कब कौन-कौन सा विवाद जुड़ा, इसकी पड़ताल यहां दर्ज करना जरूरी है.
पूर्व में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के समय राम सुभग सिंह अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर थे. बाद में उन्हें मुख्य सचिव बनाया गया. अचरज की बात है कि राम सुभग सिंह अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर रहते हुए भी विवादों से घिरे रहे और उन्हें विवादों के कारण ही मुख्य सचिव के पद से भी हटाना पड़ा.
विवादों का साल था 2019: हिमाचल में जयराम सरकार के कार्यकाल के दौरान अगस्त 2019 में राम सुभग सिंह अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर थे. जयराम सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के लिए पर्यटन विभाग ने एक ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया. राम सुभग सिंह पर्यटन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव थे. उस पोर्टल पर एक विवादित डॉक्यूमेंट अपलोड हो गया. वो डॉक्यूमेंट लैंड सीलिंग एक्ट से जुड़ा हुआ था. हिमाचल में लैंड सीलिंग एक्ट और लैंड रिफॉर्म्स बहुत संवेदनशील मामले हैं. विवादित डॉक्यूमेंट के अपलोड होने से जुड़ा खुलासा हुआ तो जयराम सरकार पर दबाव पड़ा. उसी दबाव का परिणाम था कि जयराम सरकार को राम सुभग सिंह से पर्यटन विभाग वापस लेना पड़ा. राज्य सरकार की तरफ से अगस्त 2019 के आखिर में जारी अधिसूचना में राम सुभग सिंह को तत्काल प्रभाव से पर्यटन विभाग के कार्यभार से मुक्त कर दिया गया था.
इंवेस्टर्स मीट के लिए जयराम सरकार ने राइजिंग हिमाचल पोर्टल बनाया था. उस पोर्टल पर पर्यटन निगम के 14 होटलों को लीज पर देने और चाय बागानों में लैंड सीलिंग एक्ट के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए कमर्शियल गतिविधियां चलाने से संबंधित एक डॉक्यूमेंट अपलोड हुआ था. अचरज ये कि इस बारे में न तो कैबिनेट को पता था और न ही मुख्यमंत्री कार्यालय को. तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पूरे मामले की जांच के लिए आदेश जारी किए. उस समय के मुख्य सचिव बीके अग्रवाल से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन उससे पहले ही सरकार ने राम सुभग सिंह को हटा दिया. आरोप है कि इन्वेस्टर्स मीट के बहाने लैंड सीलिंग एक्ट बदलने और पर्यटन निगम के घाटे वाले होटल बेचने की गुपचुप तरीके से कोशिश की गई. मामले में चौतरफा घिरी जयराम सरकार ने तुरंत विवादित डॉक्यूमेंट को पोर्टल से हटाया और जांच का ऐलान किया था. तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने मानसून सत्र के दौरान बाकायदा सदन में स्वीकार किया कि इस किस्म का विवादित दस्तावेज सरकारी पोर्टल पर अपलोड होना दुर्भाग्यपूर्ण है. फिर अक्टूबर 2019 में ही राम सुभग सिंह को आयुर्वेद विभाग भी दिया गया, लेकिन पांच दिन बाद ही ये विभाग भी उनसे वापिस ले लिया गया.
डस्ट्री सेक्टर में भी लगे घोटाले के आरोप: जयराम सरकार के समय ही इंवेस्टर्स मीट में एक सीमेंट उद्योग का मामला सिरे चढ़ना था. ये सीमेंट प्लांट चौपाल इलाके में लगना था. पहले इसमें रिलायंस समूह की रुचि थी, लेकिन सीमेंट उद्योग लगने से पहले ही वो सरकारी सिस्टम की भेंट चढ़ गया. यहां भी आरोप लगाया गया कि इसमें करोड़ों रुपए का गोलमाल हुआ है. हरियाणा के एक चर्चित इंडस्ट्रियल हब माने जाने वाले शहर में करोड़ों रुपए कीमत के फ्लैट का विवाद भी राम सुभग सिंह से जुड़ा. रामसुभग सिंह तब जयराम सरकार में मुख्य सचिव बन चुके थे. उस समय विवाद सामने आने पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस मामले में सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अपनाया था. बाद में इन्हीं विवादों में राम सुभग सिंह की मुख्य सचिव की कुर्सी से विदाई भी हुई. इस मामले से जुड़ी शिकायत पीएमओ तक गई थी.
पीएमओ से भी एक्शन के निर्देश हुए थे और जयराम सरकार को जुलाई 2022 में राम सुभग सिंह को मुख्य सचिव के पद से हटाना पड़ा था. उसके बाद आरडी धीमान मुख्य सचिव बनाए गए थे. यानी राम सुभग सिंह जब अतिरिक्त मुख्य सचिव थे, तब भी उनसे पर्यटन और फिर आयुर्वेद विभाग वापिस लिया गया और जब वे मुख्य सचिव बने तो 11 माह बाद ही पीएमओ तक पहुंची शिकायत के बाद उनकी कुर्सी गई थी. अब सेवानिवृति के बाद सुखविंदर सरकार में इन्हें प्रधान सलाहकार बनाया है तो भी विवाद का साया इनके साथ-साथ चल रहा है. हैरत की बात है कि जब राम सुभग सिंह की पीएमओ तक शिकायत हुई थी तो, उस समय सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विपक्ष में रहते हुए बाकायदा विधानसभा में उनके खिलाफ कई आरोप जड़े थे.
अब उन्हीं सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सीएम बनने के बाद रामसुभग सिंह पर मेहरबानी की है. पहले विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस भाजपा को कोसती थी कि रिटायरमेंट के बाद अफसरों को पुनः रोजगार के तोहफे दिए गए. अब भाजपा विपक्ष में है और इसी मुद्दे पर कांग्रेस को कोस रही है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा के अनुसार हिमाचल में नौकरशाही को लेकर ये विवाद कोई पुराना नहीं है. कभी सीनियोरिटी को सुपरसीड कर जूनियर अफसर मुख्य सचिव बनाए जाते रहे हैं तो कभी सीनियर अफसर अपने हक के लिए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल में केस करते रहे हैं. अब राम सुभग सिंह को लेकर पैदा हुआ विवाद इस कड़ी में नया जुड़ा है.