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साल 2020: भाजपा के मुखिया को देना पड़ा इस्तीफा, कांग्रेस को मिला नया प्रभारी

साल 2020 में जब पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में था, इस दौरान हिमाचल की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव रहे. हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष को जहां इस्तीफा देना पड़ा तो वहीं, हिमाचल कांग्रेस प्रभारी को भी बदला गया. देखिए विशेष रिपोर्ट...

political happenings in himachal in year 2020
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Published : Dec 26, 2020, 10:49 AM IST

शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा को कठिन समय से गुजरना पड़ा. स्वास्थ्य विभाग में खरीद को लेकर अनियमितताओं के आरोप के बाद विभाग के निदेशक को इस्तीफा देना पड़ा तो आंच भाजपा के मुखिया डॉ. राजीव बिंदल पर भी आई.

भाजपा का राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि राजीव बिंदल को पार्टी अध्यक्ष पद से हटना पड़ा. वहीं, इस दौरान राज्य के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में भी भाजपा फूट का शिकार हुई. आलम ये था कि संगठन महामंत्री और ज्वालाजी के विधायक रमेश ध्वाला की खींचतान सार्वजनिक हो गई.

बाद में वरिष्ठ भाजपा नेता रमेश ध्वाला ने बेशक सोशल मीडिया पर खेद पत्र जारी कर दिया, लेकिन बगावत की चिंगारी अभी भी राख के नीचे सुलग रही है. कोरोना के इस दौर में ही हिमाचल सरकार में कैबिनेट का विस्तार हुआ और इंदु गोस्वामी को राज्यसभा सांसद बनने का मौका मिला.

उधर, विपक्षी दल कांग्रेस की हालत भी कोई अच्छी नहीं रही. पार्टी को कोरोना संकट से पहले पिछले साल यानी 2019 में हुए उपचुनाव में हार मिली थी और इस साल कोरोना फैलने के बाद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भी बदले गए. राजीव शुक्ला को नया प्रभारी बनाया गया. सितंबर महीने में रजनी पाटिल को कांग्रेस के प्रभारी पद से हटाकर राजीव शुक्ला को जिम्मेदारी दी गई.

वीडियो.

भाजपा के मुखिया को देना पड़ा इस्तीफा

दिसंबर 2017 में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई भाजपा के लिए कोरोना काल उथल-पुथल वाला रहा. खासतौर पर संगठन के लिहाज से भाजपा को कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ा. पार्टी ने पहले तो कद्दावर नेता डॉ. राजीव बिंदल को विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाकर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी, लेकिन ऐन कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग में हुए कथित भ्रष्टाचार के छींटे उनके दामन पर आए और डॉ. बिंदल को अपमानजनक तरीके से अध्यक्ष पद से विदा होना पड़ा.

बिंदल की जगह विपिन सिंह परमार विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए. परमार पहले स्वास्थ्य मंत्री थे. उन्हें मंत्री पद छोड़ते समय राजनीतिक पीड़ा हुई. वहीं, लंबे अरसे से खाली पड़े मंत्री पदों पर तीन नेताओं की ताजपोशी हुई. साथ ही हिमाचल से खाली राज्यसभा सीट पर इंदु गोस्वामी को चुना गया.

कांगड़ा जिला के तेजतर्रार नेता राकेश पठानिया को वन विभाग मिला, सिरमौर के वरिष्ठ भाजपा नेता सुखराम चौधरी के हिस्से उर्जा विभाग आया तो पहली बार एमएलए बने जेपी नड्डा के करीबी राजेंद्र गर्ग को खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग मिला.

डॉ. राजीव सैजल को मिली नई जिम्मेदारी

वहीं, राजीव सैजल का कद बढ़ाकर उन्हें अहम माने जाने वाले स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा दिया गया. सरवीण चौधरी से शहरी विकास छिन गया. सुरेश भारद्वाज से शिक्षा विभाग लिया गया. सरवीण चौधरी को अपना पुराना सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग मिला. बिक्रम ठाकुर को परिवहन विभाग मिला. उनके पास पहले से ही उद्योग विभाग था. सुरेश भारद्वाज को शिक्षा छोडक़र शहरी विकास विभाग में जाना पड़ा.

पढ़ेंः तीन साल का कार्यकाल बेमिसाल, हिमाचल में अब होगी ट्रिपल इंजन की सरकार: वीरेंद्र कंवर

मई महीने में स्वास्थ्य विभाग में निदेशक डॉ. अजय गुप्ता का एक ऑडियो वायरल हुआ. उसमें पैसों के लेन-देन की बात हो रही थी. निदेशक को इस्तीफा देना पड़ा तो राजीव बिंदल का नाम भी कथित भ्रष्टाचार में जोड़ा जाने लगा. पार्टी को किरकिरी से बचाने के लिए हाईकमान ने राजीव बिंदल का इस्तीफा ले लिया. हालांकि कहा ये गया कि नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दिया गया है, लेकिन ये सियासी बयानबाजी ही मानी गई.

किंगमेकर कांगड़ा जिला में भाजपा में फूट

जून महीने में भाजपा के सीनियर लीडर रमेश ध्वाला ने संगठन महामंत्री पवन राणा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. हालांकि बाद में हाईकमान के हस्तक्षेप से मामला सुलझ गया. कोरोना संकट के इस दौर में ही पीएम नरेंद्र मोदी ने सामरिक महत्व की अटल टलन का शुभारंभ किया.

जेपी नड्डा व अनुराग सिंह ठाकुर ने भी हिमाचल के दौरे किए. सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मसले पर तो अनुराग ठाकुर व जयराम ठाकुर के बीच मंच पर से बयानबाजी भी हुई. बाद में हाईकमान ने हस्तक्षेप किया तो अनुराग ठाकुर ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी देहरा के लिए जयराम सरकार के प्रयासों को सराहने वाला संदेश सोशल मीडिया पर डाला.

वैसे तो हिमाचल भाजपा में राजीव बिंदल की गिनती चुनावी राजनीति के माहिर खिलाड़ी के तौर पर जरूर होती है, लेकिन उनके नाम के साथ इस्तीफा शब्द चिपक कर रह गया. पांचवीं बार विधायक बने राजीव बिंदल मौजूदा सरकार में पहले विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए. देश की पहली ई-विधानसभा का अध्यक्ष बने हुए उन्हें दो साल का अर्सा ही हुआ था कि घटनाक्रम घूम गया.

सतपाल सिंह सत्ती का कार्यकाल पूरा होने के बाद हिमाचल भाजपा के नए मुखिया की ताजपोशी होनी थी. बिंदल विधानसभा अध्यक्ष थे और भाजपा हाईकमान को भेजे गए पैनल में अध्यक्ष के लिए उनका नाम तक नहीं था. नियती का खेल देखिए कि हाईकमान ने प्रदेश भाजपा की तरफ से भेजे गए पैनल को दरकिनार करते हुए डॉ. राजीव बिंदल को नया अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया गया.

बाद में बिंदल को विधानसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा और इसी साल कोरोना संकट आने से पहले जनवरी में उन्होंने पार्टी मुखिया के पद की कमान संभाली. अब उन्हें अध्यक्ष बने छह महीने भी नहीं हुए थे कि घूसकांड की आंच उनके दामन तक पहुंच गई.

स्वास्थ्य विभाग में खरीद को लेकर घूसखोरी से जुड़ा एक ऑडियो वायरल हुआ और उसने बिंदल की कुर्सी की बलि ले ली. राजीव बिंदल ने इस्तीफे पर जेपी नड्डा ने लिखा-श्री राजीव बिंदल जी भारतीय जनता पार्टी (हिमाचल प्रदेश) के अध्यक्ष पद से आपका त्यागपत्र मुझे मिला है. मैं उसे स्वीकार करता हूं.

खोई हुई जमीन तलाश रही कांग्रेस

इधर, कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री लगातार सरकार पर हमलावर रहे. कोरोना के दौर में अगस्त महीने में सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा जरूर शिमला आई. लेकिन उन्होंने किसी कांग्रेस नेता से मुलाकात नहीं की.

वहीं, प्रदेश प्रभारी बनने के बाद राजीव शुक्ला ने भी हिमाचल का दौरा किया. उन्होंने शिमला में वीरभद्र सिंह के आवास होलीलॉज पर लंच किया. बाद में मंडी दौरे में वे पंडित सुखराम से भी मिले और उनके साथ भी लंच पर कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने भी राज्य का दौरा कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने का अभियान छेड़ा है. साथ ही कांग्रेस ने लगातार भाजपा सरकार पर हमला कर आरोप लगाए हैं कि कोरोना से निपटने में सरकार नाकाम रही है. कुल मिलाकर कोरोना संकट का ये साल राजनीतिक रूप से भी सुर्खियों में रहा है.

ये भी पढ़ेंः 2020 राउंडअप : इन बड़े प्रदर्शनों, दंगों और घोटालों का गवाह बना ये साल

शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा को कठिन समय से गुजरना पड़ा. स्वास्थ्य विभाग में खरीद को लेकर अनियमितताओं के आरोप के बाद विभाग के निदेशक को इस्तीफा देना पड़ा तो आंच भाजपा के मुखिया डॉ. राजीव बिंदल पर भी आई.

भाजपा का राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि राजीव बिंदल को पार्टी अध्यक्ष पद से हटना पड़ा. वहीं, इस दौरान राज्य के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में भी भाजपा फूट का शिकार हुई. आलम ये था कि संगठन महामंत्री और ज्वालाजी के विधायक रमेश ध्वाला की खींचतान सार्वजनिक हो गई.

बाद में वरिष्ठ भाजपा नेता रमेश ध्वाला ने बेशक सोशल मीडिया पर खेद पत्र जारी कर दिया, लेकिन बगावत की चिंगारी अभी भी राख के नीचे सुलग रही है. कोरोना के इस दौर में ही हिमाचल सरकार में कैबिनेट का विस्तार हुआ और इंदु गोस्वामी को राज्यसभा सांसद बनने का मौका मिला.

उधर, विपक्षी दल कांग्रेस की हालत भी कोई अच्छी नहीं रही. पार्टी को कोरोना संकट से पहले पिछले साल यानी 2019 में हुए उपचुनाव में हार मिली थी और इस साल कोरोना फैलने के बाद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भी बदले गए. राजीव शुक्ला को नया प्रभारी बनाया गया. सितंबर महीने में रजनी पाटिल को कांग्रेस के प्रभारी पद से हटाकर राजीव शुक्ला को जिम्मेदारी दी गई.

वीडियो.

भाजपा के मुखिया को देना पड़ा इस्तीफा

दिसंबर 2017 में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई भाजपा के लिए कोरोना काल उथल-पुथल वाला रहा. खासतौर पर संगठन के लिहाज से भाजपा को कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ा. पार्टी ने पहले तो कद्दावर नेता डॉ. राजीव बिंदल को विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाकर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी, लेकिन ऐन कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग में हुए कथित भ्रष्टाचार के छींटे उनके दामन पर आए और डॉ. बिंदल को अपमानजनक तरीके से अध्यक्ष पद से विदा होना पड़ा.

बिंदल की जगह विपिन सिंह परमार विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए. परमार पहले स्वास्थ्य मंत्री थे. उन्हें मंत्री पद छोड़ते समय राजनीतिक पीड़ा हुई. वहीं, लंबे अरसे से खाली पड़े मंत्री पदों पर तीन नेताओं की ताजपोशी हुई. साथ ही हिमाचल से खाली राज्यसभा सीट पर इंदु गोस्वामी को चुना गया.

कांगड़ा जिला के तेजतर्रार नेता राकेश पठानिया को वन विभाग मिला, सिरमौर के वरिष्ठ भाजपा नेता सुखराम चौधरी के हिस्से उर्जा विभाग आया तो पहली बार एमएलए बने जेपी नड्डा के करीबी राजेंद्र गर्ग को खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग मिला.

डॉ. राजीव सैजल को मिली नई जिम्मेदारी

वहीं, राजीव सैजल का कद बढ़ाकर उन्हें अहम माने जाने वाले स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा दिया गया. सरवीण चौधरी से शहरी विकास छिन गया. सुरेश भारद्वाज से शिक्षा विभाग लिया गया. सरवीण चौधरी को अपना पुराना सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग मिला. बिक्रम ठाकुर को परिवहन विभाग मिला. उनके पास पहले से ही उद्योग विभाग था. सुरेश भारद्वाज को शिक्षा छोडक़र शहरी विकास विभाग में जाना पड़ा.

पढ़ेंः तीन साल का कार्यकाल बेमिसाल, हिमाचल में अब होगी ट्रिपल इंजन की सरकार: वीरेंद्र कंवर

मई महीने में स्वास्थ्य विभाग में निदेशक डॉ. अजय गुप्ता का एक ऑडियो वायरल हुआ. उसमें पैसों के लेन-देन की बात हो रही थी. निदेशक को इस्तीफा देना पड़ा तो राजीव बिंदल का नाम भी कथित भ्रष्टाचार में जोड़ा जाने लगा. पार्टी को किरकिरी से बचाने के लिए हाईकमान ने राजीव बिंदल का इस्तीफा ले लिया. हालांकि कहा ये गया कि नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दिया गया है, लेकिन ये सियासी बयानबाजी ही मानी गई.

किंगमेकर कांगड़ा जिला में भाजपा में फूट

जून महीने में भाजपा के सीनियर लीडर रमेश ध्वाला ने संगठन महामंत्री पवन राणा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. हालांकि बाद में हाईकमान के हस्तक्षेप से मामला सुलझ गया. कोरोना संकट के इस दौर में ही पीएम नरेंद्र मोदी ने सामरिक महत्व की अटल टलन का शुभारंभ किया.

जेपी नड्डा व अनुराग सिंह ठाकुर ने भी हिमाचल के दौरे किए. सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मसले पर तो अनुराग ठाकुर व जयराम ठाकुर के बीच मंच पर से बयानबाजी भी हुई. बाद में हाईकमान ने हस्तक्षेप किया तो अनुराग ठाकुर ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी देहरा के लिए जयराम सरकार के प्रयासों को सराहने वाला संदेश सोशल मीडिया पर डाला.

वैसे तो हिमाचल भाजपा में राजीव बिंदल की गिनती चुनावी राजनीति के माहिर खिलाड़ी के तौर पर जरूर होती है, लेकिन उनके नाम के साथ इस्तीफा शब्द चिपक कर रह गया. पांचवीं बार विधायक बने राजीव बिंदल मौजूदा सरकार में पहले विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए. देश की पहली ई-विधानसभा का अध्यक्ष बने हुए उन्हें दो साल का अर्सा ही हुआ था कि घटनाक्रम घूम गया.

सतपाल सिंह सत्ती का कार्यकाल पूरा होने के बाद हिमाचल भाजपा के नए मुखिया की ताजपोशी होनी थी. बिंदल विधानसभा अध्यक्ष थे और भाजपा हाईकमान को भेजे गए पैनल में अध्यक्ष के लिए उनका नाम तक नहीं था. नियती का खेल देखिए कि हाईकमान ने प्रदेश भाजपा की तरफ से भेजे गए पैनल को दरकिनार करते हुए डॉ. राजीव बिंदल को नया अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया गया.

बाद में बिंदल को विधानसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा और इसी साल कोरोना संकट आने से पहले जनवरी में उन्होंने पार्टी मुखिया के पद की कमान संभाली. अब उन्हें अध्यक्ष बने छह महीने भी नहीं हुए थे कि घूसकांड की आंच उनके दामन तक पहुंच गई.

स्वास्थ्य विभाग में खरीद को लेकर घूसखोरी से जुड़ा एक ऑडियो वायरल हुआ और उसने बिंदल की कुर्सी की बलि ले ली. राजीव बिंदल ने इस्तीफे पर जेपी नड्डा ने लिखा-श्री राजीव बिंदल जी भारतीय जनता पार्टी (हिमाचल प्रदेश) के अध्यक्ष पद से आपका त्यागपत्र मुझे मिला है. मैं उसे स्वीकार करता हूं.

खोई हुई जमीन तलाश रही कांग्रेस

इधर, कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री लगातार सरकार पर हमलावर रहे. कोरोना के दौर में अगस्त महीने में सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा जरूर शिमला आई. लेकिन उन्होंने किसी कांग्रेस नेता से मुलाकात नहीं की.

वहीं, प्रदेश प्रभारी बनने के बाद राजीव शुक्ला ने भी हिमाचल का दौरा किया. उन्होंने शिमला में वीरभद्र सिंह के आवास होलीलॉज पर लंच किया. बाद में मंडी दौरे में वे पंडित सुखराम से भी मिले और उनके साथ भी लंच पर कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने भी राज्य का दौरा कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने का अभियान छेड़ा है. साथ ही कांग्रेस ने लगातार भाजपा सरकार पर हमला कर आरोप लगाए हैं कि कोरोना से निपटने में सरकार नाकाम रही है. कुल मिलाकर कोरोना संकट का ये साल राजनीतिक रूप से भी सुर्खियों में रहा है.

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