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पंचायत प्रतिनिधियों को हटाने वाली याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने लगाई दस हजार की कॉस्ट, पैसे आपदा राहत कोष में जमा करने के आदेश - हिमाचल प्रदेश न्यूज

Himachal High Court News: हिमाचल हाईकोर्ट ने प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर को पद से हटाने से जुड़ी याचिका को खारिज कर याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति को दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है. क्या है पूरा मामला पढ़ें पूरी खबर...

Himachal High Court News
हिमाचल हाईकोर्ट (फाइल फोटो).
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 27, 2023, 9:38 PM IST

शिमला: जिला सिरमौर की पंचायत कोटी धीमान के प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर को पद से हटाने से जुड़ी याचिका को हिमाचल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. साथ ही अदालत ने याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति को दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है. हाईकोर्ट ने कॉस्ट की रकम को मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में जमा करने के आदेश जारी किए हैं. जिला सिरमौर की तहसील ददाहू के प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर को उनके पद से हटाने की मांग करते हुए दिलीप आजाद नामक शख्स ने याचिका दायर की थी.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए कॉस्ट की राशि को चार सप्ताह के भीतर सीएम आपदा राहत कोष में जमा करने के आदेश दिए. प्रार्थी दिलीप आजाद ने ग्राम पंचायत कोटी धीमान के तीनों प्रतिनिधियों के खिलाफ सरकारी धन के गबन सहित अन्य अवैध काम करने का आरोप लगाया था. प्रार्थी ने डिविजनल कमिश्नर शिमला की तरफ से एक मामले में 25 नवंबर को पारित आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

डिविजनल कमिश्नर शिमला ने प्रार्थी की अपील को खारिज करते हुए डीसी सिरमौर के उन आदेशों को बरकरार रखा था जिसके तहत उपरोक्त पंचायत प्रतिनिधियों के निलंबन आदेशों को खारिज कर दिया गया था. प्रार्थी दिलीप आजाद ने इन तीन पंचायत प्रतिनिधियों पर सीमेंट के 600 बैग के अनुचित उपयोग का आरोप लगाया था. आरोप के अनुसार सरकार से मिले इस सीमेंट का उपयोग पंचायत की बेहतरी के लिए किया जाना था.

प्रार्थी का कहना था कि पंचायत के तहत आने वाले कुछ गांवों ने पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ यह आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की थी. शिकायत की प्रारंभिक जांच के बाद जिला पंचायत अधिकारी ने प्रधान को निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए थे. अपने निलंबन के खिलाफ प्रधान ने डीसी सिरमौर के समक्ष अपील दायर की थी. अपील को स्वीकारते हुए डीसी सिरमौर ने प्रधान को क्लीन चिट दे दी थी. बाद में मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा और अदालत ने याचिकाकर्ता को दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाते हुए याचिका खारिज कर दी.

ये भी पढ़ें- कोटी वन रेंज में 416 पेड़ों के अवैध कटान पर हाईकोर्ट ने तलब की विभागीय कार्रवाई, शपथ पत्र दाखिल करने के भी आदेश

शिमला: जिला सिरमौर की पंचायत कोटी धीमान के प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर को पद से हटाने से जुड़ी याचिका को हिमाचल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. साथ ही अदालत ने याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति को दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है. हाईकोर्ट ने कॉस्ट की रकम को मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में जमा करने के आदेश जारी किए हैं. जिला सिरमौर की तहसील ददाहू के प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर को उनके पद से हटाने की मांग करते हुए दिलीप आजाद नामक शख्स ने याचिका दायर की थी.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए कॉस्ट की राशि को चार सप्ताह के भीतर सीएम आपदा राहत कोष में जमा करने के आदेश दिए. प्रार्थी दिलीप आजाद ने ग्राम पंचायत कोटी धीमान के तीनों प्रतिनिधियों के खिलाफ सरकारी धन के गबन सहित अन्य अवैध काम करने का आरोप लगाया था. प्रार्थी ने डिविजनल कमिश्नर शिमला की तरफ से एक मामले में 25 नवंबर को पारित आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

डिविजनल कमिश्नर शिमला ने प्रार्थी की अपील को खारिज करते हुए डीसी सिरमौर के उन आदेशों को बरकरार रखा था जिसके तहत उपरोक्त पंचायत प्रतिनिधियों के निलंबन आदेशों को खारिज कर दिया गया था. प्रार्थी दिलीप आजाद ने इन तीन पंचायत प्रतिनिधियों पर सीमेंट के 600 बैग के अनुचित उपयोग का आरोप लगाया था. आरोप के अनुसार सरकार से मिले इस सीमेंट का उपयोग पंचायत की बेहतरी के लिए किया जाना था.

प्रार्थी का कहना था कि पंचायत के तहत आने वाले कुछ गांवों ने पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ यह आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की थी. शिकायत की प्रारंभिक जांच के बाद जिला पंचायत अधिकारी ने प्रधान को निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए थे. अपने निलंबन के खिलाफ प्रधान ने डीसी सिरमौर के समक्ष अपील दायर की थी. अपील को स्वीकारते हुए डीसी सिरमौर ने प्रधान को क्लीन चिट दे दी थी. बाद में मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा और अदालत ने याचिकाकर्ता को दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाते हुए याचिका खारिज कर दी.

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