शिमला: एक तरफ सरकार सहारा योजना को ऐतिहासिक बताकर जनता के सामने अपनी पीठ थपथपा रही है. वहीं, दूसरी तरफ अफसरशाही योजना की फाइल को अटकाने के जुगाड़ में दिख रही है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा योजना का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजने पर विभाग ने इसपर आपत्तियां लगा दी.
सहारा योजना पर वित्त विभाग का कहना है कि अगर इस तरह से योजना को लागू किया गया, तो सरकार पर हर साल 48 करोड़ का खर्च आएगा, इसलिए योजना को सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों तक ही रखा जाए. विभाग की इस आपत्ति से अब योजना कैबिनेट में जाने के कारण अटक गई है. बता दें कि सहारा योजना के तहत जिन सात रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को सहायता मिलनी है, वो ऐसे रोग हैं कि एक बार किसी को लग जाए तो मौत के बाद ही पीछा छोड़ते हैं.
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मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए, यह योजना शुरू की थी कि इन रोगियों की देखभाल की लगातार जरूरत रहती है. ताकि ये लोग भी आर्थिक रूप से कुछ हद तक आत्मनिर्भर हो सके और परिवार वाले इन्हें बोझ न समझे. ऐसे में सहारा योजना यदि उसी तरह लागू होती है जैसी वित्त विभाग ने आपत्तियां लगाई है, तो मुख्यमंत्री की इस योजना को लागू करने के पीछे का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा.