शिमला: हिमाचल की नदियों के बेसिन पर झीलों की संख्या पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है. उत्तराखंड त्रासदी ने हिमाचल को भी अलर्ट किया है. उत्तराखंड जैसी दुखद घटना होने पर न केवल हिमाचल बल्कि पंजाब और हरियाणा भी खतरे में आ सकते हैं.
एक साल पहले जब विज्ञान, पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी परिषद के क्लाइमेंट चेंज सेंटर शिमला ने अध्ययन किया था, तब ये खतरे सामने आए थे. अब उत्तराखंड की दुर्घटना से हिमाचल के लिए भी चिंता के बादल मंडराने लगे हैं. तत्कालीन अध्ययन से पता चला था कि सतलुज बेसिन पर झीलों की संख्या में 16 प्रतिशत, चिनाब बेसिन पर 15 प्रतिशत और रावी बेसिन पर 12 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई है.
ऐसी परिस्थितियों में हिमाचल के लिए गर्मियों के दिन खतरे के हो सकते हैं. खासकर जुलाई से सितंबर महीने में सतर्कता बरता जरूरी है. हिमाचल ऐसे दुख के पहाड़ को 2005 में झेल चुका है. तब तिब्बत के साथ बनी पारछू झील ने तबाही मचाई थी.
प्रदेश में लगातार बढ़ रही झीलों की संख्या
हिमाचल के लिहाज से देखें तो यहां सतलुज में 2017 में 642 झीलें थीं, जो 2018 में बढक़र 769 हो गई थीं. इसी तरह चिनाब में 2017 में 220 और 2018 में 254 झीलें बनीं. रावी नदी के बेसिन पर ये आंकड़ा क्रमश: 54 व 66 का रहा है.
इसी तरह ब्यास नदी पर 2017 में 49 व 2018 में 65 झीलें बन गईं. सतलुज बेसिन पर 769 में से 49 झीलों का आकार 10 हैक्टेयर से अधिक हो गया है. कुछ झीलों का क्षेत्रफल तो लगभग 100 हैक्टेयर भी आंका गया.
संख्या के साथ-साथ आकार में भी बदलाव
अध्ययन से पता चला कि यहां 57 झीलें 5 से 10 हैक्टेयर और 663 झीलें 5 हैक्टेयर से कम क्षेत्र में हैं. हिमालयी रीजन में चिनाब बेसिन पर भी 254 में से चार झीलों का आकार 10 हैक्टेयर से ज्यादा है. इसके अलावा रावी नदी के बेसिन पर 66 झीलों में से 3 का आकार 10 हैक्टेयर से अधिक है.
ग्लेशियरों से जुड़े अध्ययनों पर सरकार गंभीर- मुख्य सचिव
हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव अनिल खाची के अनुसार राज्य सरकार ग्लेशियरों से जुड़े अध्ययनों को गंभीरता से ले रही है. साथ ही नदियों के बेसिन पर झीलों के आकार को लेकर भी स्थिति का आंकलन किया जा रहा है.
ग्लेशियरों के पिघलने से झीलें बनना हमेशा से चिंता की बात रही है. पारछू झील का निर्माण भी कृत्रिम रूप से हुआ था. हिमाचल के क्षेत्रफल का 4.44 फीसदी हिस्सा गलेशियर से ढंका है. इस रीजन में कम से कम 20 गलेशियर खतरे का सबब हैं.
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